देश के अमृत महोत्सव वर्ष में कुछ क्षेत्रों (बस्तियों) में मूलभूत सुविधाओं का अभाव होना,यह सर्वपक्षीय सरकारों के लिए लज्जास्पद !
रायगढ जनपद के खालापुर के इरशालवाडी क्षेत्र (बस्ती) में हुई दुर्घटना से महाराष्ट्र सहित पूरे देश में शोक व्यक्त किया जा रहा है । इस दुर्घटना में फंसे लोगों को बचाने का कार्य अभी भी चल रहा है । अनेक लोगों के मिट्टी के ढेर में फंसे होने से यंत्र का उपयोग नहीं कर सकते । चूंकि यह क्षेत्र (बस्ती) पहाड के किनारे स्थित है, इसलिए वहां तक जाने का कोई सुगम मार्ग भी नहीं है । गाडी केवल पहाड की तलहटी तक है । उसके उपरांत बस्ती तक पैदल जाने का कोई भी पर्याय नहीं है । चलकर जाने में डेढ घंटे का समय लगता है । ऐसा होते हुए भी राज्य के मुख्य मंत्री एकनाथ शिंदे एवं पर्यटन मंत्री गिरीश महाजन वहां पहुंचे । इससे सहायता कार्य अधिक गति से हुआ । शासन ने घटनास्थल पर ५० कंटेनर भेजकर पीडित परिवारों के निवास की व्यवस्था की । विधानसभा में मुख्य मंत्री एकनाथ शिंदे ने सभी पीडित परिवारों को स्थायी घर देने की घोषणा भी की । सरकार ने जिस गति से काम किया, वह निश्चित ही प्रशंसा के योग्य है; किंतु इस दुर्घटना में जिनकी मत्यु हुई, उनके प्राण पुन: नहीं लौटेंगे, यह त्रिस्तरीय सत्य है । पीडित परिवार पर छाया दुःख आकाश के जितना विशाल है । इसलिए ऐसी दुर्घटनाएं रोकने में हम कहां न्यून सिद्ध हो रहे हैं? सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है ।
इरशालवाडी की दुर्घटना के उपरांत मंत्रीमंडल की सभा में सरकार ने इस प्रकार से चट्टान खिसकने के संभावित क्षेत्र (बस्तियां) कहां कहां हैं ?, मुख्य मंत्री ने प्रशासन को इसे ढूंढने का आदेश दिया । रायगढ जनपद में विगत २-३ वर्षाें में भूस्खलन होकर चट्टानें खिसक रही हैं । उस समय भी भूस्खलन संभावित क्षेत्र ढूंढने की सूचना दी गई थी । उस समय इरशालवाडी की ओर ध्यान क्यों नहीं गया ? यह मूल प्रश्न है । ‘क्या सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने कार्यालय में बैठकर भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है ?’, इस स्थिति में ऐसा प्रश्न उपस्थित होता है । ऐसा हो, तो राज्य में ऐसे ओैर कितने क्षेत्र हैं ? समय रहते इसे ढूंढ लेना चाहिए, अन्यथा भविष्य में कुछ और नागरिकों को प्राण अपने गंवाने पडेंगे । विधानमंडल में सरकार की ओर से उपमुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, ‘चूंकि इरशालवाडी संभावित भूस्खलन क्षेत्र में नहीं है, इसलिए यहां के परिवारों का पुनर्वसन नहीं किया गया’। यदि केवल भूस्खलन संभावित क्षेत्र की कसौटी को लागू करके इरशालवाडी का पुनर्वसन नहीं किया गया है, तो यह पता लगाना चाहिए कि पहाडी घाटियों में ऐसे और कितने क्षेत्र बसे हैं?
स्थायी समाधान चाहिए !
नैसर्गिक आपत्ति बताकर नहीं आती । मनुष्य कितना भी प्रगतिशील हो जाए, निसर्ग के सामने उसकी कुछ नहीं चलती । यह सच हो, तो भी भूस्खलन, बाढ, भूकंप आदि नैसर्गिक आपत्तियों का मूल कारण ‘मनुष्य द्वारा निसर्ग के साथ किया गया हस्तक्षेप अर्थात छेडछाड’ ही है । राज्य में अनेक स्थानों पर पहाड को ‘जेसीबी’ यंत्र की सहायता से पूर्णतया काटकर वहां बडे-बडे भवन खडे किए गए हैं । राज्य के राष्ट्रीय एवं राज्य महामार्गाें पर पहाड काटकर बनाए गए होटेल्स, पेट्रोल पंप आदि देखने में आते हैं । अनेक स्थानों पर मिट्टी तथा खनिजों के लिए पहाड खोदे गए हैं । मुंबई, नाशिक, पुणे, नागपुर आदि बडे नगरों के पास पर्वतों पर मानव बस्ती बढ रही है । इसके लिए वहां बडी मात्रा में वृक्ष काटे जा रहे हैं । कुछ स्थानों पर खनिजों के लिए सुरंग खोदे जा रहे हैं । इसी से भूस्खलन की घटनाएं बढ रही हैं । राज्य में बाढ की स्थिति का मुख्य कारण है नदियों का उफनता पानी । नदी किनारे के वृक्ष मिट्टी पकडकर रखते हैं । बडी मात्रा में वृक्ष काटने से नदी के किनारे की मिट्टी नदी में आ गई है । अनेक नदियां गाद के कारण अवरुद्ध हो गई हैं । विगत २ वर्षाें से राज्य की कुछ नदियों से गाद निकालने का काम आरंभ किया गया हैे; किंतु यह समाधान स्थायी नहीं है । प्राकृतिक चक्र में हस्तक्षेप न करना ही इसका स्थायी समाधान है ।
…अमृत महोत्सवी वर्षाची लाज वाटते !
वर्तमान स्थिति में नगरों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी अधिकतर सुविधाएं उपलब्ध हैं । इतनी प्रगति होने पर भी कोई विश्वास नहीं करेगा कि देश में इरशालवाडी एक क्षेत्र है, जहां साइकिल भी नहीं जा सकती किंतु इस दुर्घटना के पश्चात यह बात सामने आई । कुछ दिन पूर्व सोशल मीडिया पर एक वीडियो प्रसारित किया गया था कि जल परिषद मित्र परिवार के युवा नाशिक के पेठ तहसील में ‘देवळाचा पाडा’ में नदी पार कर रहे थे । उनमें से कुछ छात्रों को भोजन के बडे बर्तनों के ऊपर बैठाकर नदी के पार ले जा रहे थे । इसमें कुछ लोग छात्रों को कंधे पर बैठाकर नदी पार करा रहे थे । यदि ‘किसी का पैर गड्ढे में गया, तो क्या होगा ?’, इस विचार से मेरे हृदय की धडकन ही बढ गई ! देश के अमृत महोत्सव वर्षं में जनप्रतिनिधि डेढ लाख रुपए का वेतन ले रहे हैं । राज्य की विधानसभा में करोडों रुपए के बजट (अर्थसंकल्प) रखे जा रहे हैं तथा दूसरी ओर इरशालवाडी जैसी मलिन बस्ती में सडक, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव हैं । उस समय यह कहना लज्जाजनक है कि देश अपना अमृत महोत्सव वर्ष मना रहा है ।
‘आज केक खाएं अथवा पिज्जा ? रात में किस पंचतारांकित (फाइव स्टार)होटेल में खाना खाएं ?’, इस पर विचार करने वाले लोग एक ओर, तो दूसरी ओर रात में रोटी का एक टुकडा भी पेट में जाएगा अथवा नहीं ? इसकी चिंता करनेवाला समाज भी इसी देश में है । इरशालवाडी के परिवारों का पुनर्वसन हो भी जाएगा; किंतु देश में ऐसे क्षेत्र मिलना, सर्वपक्षीय सरकारों लिए निश्चित ही लज्जास्पद है । इसलिए ऐसी किसी अन्य घटना की प्रतीक्षा न कर देश में इरशालवाडी जैसे कितने क्षेत्र हैं, इसे ढूंढकर समय पर उनका पुनर्वसन कर उन्हें आवश्यक सुविधाएं देना महत्त्वपूर्ण है !