फ्रांस संरक्षण करार में पुन: ‘राफेल’ लढाऊ विमान ही क्यों ?

राफेल

१. ‘राफेल एम्’ लढाऊ विमान खरीदी करने के विषय में भारत का फ्रांस से करार

‘भारत-फ्रांस संरक्षण करार भारत के लिए कूटनीति की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है । फ्रांस का राष्ट्रीय दिन अर्थात ‘बास्तील दिवस’ १४ जुलाई को होता है । यह दिन १४ जुलाई १७८९ को फ्रांस में हुई ‘क्रांति का स्मरण’ के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है । इस वर्ष फ्रांस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रमुख अतिथि थे । भारत के प्रधानमंत्री मुख्य अतिथि का महत्त्व बताते समय फ्रांस के राष्ट्रपति मेक्रॉन के एक सहयोगी ने कहा, ‘‘भारत हमारा इंडो-पैसेफिक (भारत प्रशांत महासागरीय देश) रणनीति के आधारों में से एक है ।’’ इस प्रसंग में प्रधानमंत्री को फ्रांस का सर्वोच्च नागरी पुरस्कार ‘द ग्रैंड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर’से सम्मानित किया गया । ‘राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आंतरराष्‍ट्रीय चर्चा’ की दृष्टि से इस दौरे का सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र भारतीय नौदल के लिए ‘राफेल एम्’ (राफेल मरिन) लढाऊ विमान की खरीदी संबंधी करार था । फ्रांस से भारी मात्रा में शस्त्रास्त्र खरीदी करनेवालों में से भारत एक है । वर्ष २०१५ में मोदी ने भारतीय वायुसेना के लिए ३६ राफेल लढाऊ विमान खरीदी के ऐतिहासिक करार की घोषणा की थी । उस समय उनका मूल्य लगभग ४ अब्‍ज यूरो (४.२४ अब्ज डॉलर – तत्कालीन मूल्य ५८ सहस्र करोड रुपए थी । ये विमान अब भारतीय वायुसेना में समाविष्ट किए गए हैं । ‘राफेल एम्’के करार के विषय में फ्रांस ‘दसॉल्ट ए‍विएशन’ नामक प्रतिष्ठान ने एक वृत्तपत्र में कहा था कि, ‘‘भारत सरकार ने नौदल को आधुनिक लढाऊ विमानों से सुसज्ज करने के लिए ‘राफेल एम्’के चयन की घोषणा की है । ’’

प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस के साथ द्विपक्षीय मित्रता का सुरक्षाविषयक संबंध मूल आधार है । दोनों ही देश ३ अतिरिक्त पनडुब्बियां बनाने एवं लढाऊ जेट इंजिनों का एकदूसरे की सहायता से विकास करने पर सहमत हुए हैं । यह घोषणा होने के एक दिन पूर्व भारत सरकार की संरक्षण परिषद ने नौदल के लिए अतिरिक्त ‘राफेल एम्’ लढाऊ विमान २६ एवं ‘स्कॉर्पिन’ श्रेणी के ३ पनडुब्बियां खरीदने के लिए प्राथमिक स्तर पर सहमति दी थी । एक राफेल लढाऊ विमान का मूल्य लगभग ५ से ६ अब्ज डॉलर (अर्थात ४१ सहस्र करोड रुपए) होने की संभावना है । ‘राफेल एम्’की खरीदी का निर्णय भारतीय सुरक्षा अधिकारियों द्वारा आरंभ की गई आंतरराष्ट्रीय परीक्षण प्रतियोगिता अभियान के उपरांत लिया गया है । इसी काल में नौदल ने अभिप्राय दिया कि ‘राफेल विमान भारतीय नौदल के कार्य के विषय की आवश्यकता पूर्ण कर रहा है और यह विमान उनके विमानवाहक के (‘एअरक्राफ्ट कैरियर’की) विशेषताओं के कारण पूर्णरूप से अनुकूल हैं ।

मेजर सरस त्रिपाठी (निवृत्त)

२. भारतीय वायुदल एवं नौदल को राफेल ही क्यों इतना भाया ?

यहां सबसे मह‌त्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि, ‘जिस प्रतिष्ठान से सुरक्षा करार करने पर विरोधियों ने मोदी सरकार को घेरना का प्रयत्न किया, उसी प्रतिष्ठान से सरकार ने दूसरी बार राफेल खरीदी के लिए करार क्यों किया ?’ प्रत्यक्ष में भारतीय नौदल उसके विमानवाहक जहाजों के लिए लढाऊ विमान ढूंढ रहे थे । इस सूची में प्रारंभ में प्रतिस्पर्धी ‘अमेरिकी एफ्-१८’, ‘सुपर हार्नेट्‍स ब्‍लॉक ३ (बोईंग)’, ‘एफ्-३५ (लाकडीन मार्टीन)’ एवं ‘साब जे.एस्.एस्.-३९ ग्रिपेन’, इसके साथ ही ‘यूरोफाइटर’ इन विमानों का समावेश था । तदुपरांत अब ‘एफ्-१८’ एवं ‘राफेल’ में द्वेषपूर्ण स्पर्धा है । ऐसी स्थिति में भारतीय वायुदल एवं नौदल ने राफेल लेना ही पसंद किया । वर्ष २००६ में ये भारत की मनमोहन सिंह सरकार ने भी १२६ राफेल विमान खरीदी करने का निर्णय लिया था । यह निर्णय भी भारतीय वायुदल एवं नौदल द्वारा दिए हुए अभिप्रायों पर आधारित था । वर्ष २०१५ में मोदी सरकार ने राफेल की खरीदी का निर्णय लिया । इतना ही नहीं, अपितु यह वाद सर्वोच्च न्यायालय तक गया और सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल का सौदा योग्य होने का निर्णय दिया ।

फ्रांस निर्मित ‘मिराज २०००’ पहले से ही भारतीय वायुदल का एक भाग है । अब प्रश्न यह है कि ‘भारतीय वायुदल एवं नौदल को राफेल इतना क्यों भाया होगा ?’ इसके अनेक कारण हैं । सबसे बडा कारण है कि भारत की आवश्यकता अनुसार ये विमान उपयुक्त हैं । भारत को एक विविध कार्य करनेवाले ‘मध्यम श्रेणी’के (मल्टी रोल मीडियम रेंज) लढाऊ विमान चाहिए था । राफेल वैसा ही लढाऊ विमान है । उसमे अत्याधुनिक रडार यंत्रणा, विमान का अल्प वजन, उससे भी १० गुणा अधिक वजन ढोने की क्षमता, इसके साथ ही एक आसन अथवा दो आसनों का पर्याय इत्यादि बातों के कारण राफेल का चयन हुआ । ‘राफेल एम्’की एक और बात ने भारतीय नौदल को प्रभावित किया और वह है कि उस विमान की ‘इंटर ऑपरेबिलिटी’, अर्थात आंतरनिर्भरता । प्रारंभ में नौदल का पायलट वायुसेना के पायलेट के साथ प्रशिक्षण लेता था । राफेल की आंतरनिर्भरता काफी महत्त्वपूर्ण बात है । वैसे भी नौदल को हलके वजन का लढाऊ विमान चाहिए होता है; कारण वे भूमि पर से नहीं, अपितु विमानवाहक जहाज से उडान भरते हैं । इन सभी बातों के कारण भारतीय नौदल की दृष्टि से ‘राफेल एम्’ यह ‘सर्वश्रेष्ठ लढाऊ विमान’ की श्रेणी में आता है । ‘राफेल एम्’ विमान भारत के ‘आइ.एन्.एस्. विक्रमादित्य’ एवं ‘आइ.एस्.एस्. विक्रांत’ इन युद्धनौकाओं पर तैनात किए जाते हैं ।

३. सुरक्षा की दृष्टि से भारत के नए सहयोगी के रूप में फ्रांस का उदय 

कुछ रणनीति संबंधी बातें भी राफेल के समर्थन में जाती हैं । सुरक्षा के विषय में भारत को सर्वाधिक मात्रा में सहायता करनेवाला रूस इस समय यूक्रेन के साथ युद्ध में पूर्णरूप से व्यस्त है । रूस की अंतर्गत एवं आर्थिक स्थिति आजकल ठीक नहीं । इसलिए युद्ध सामग्री के लिए रूस के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी विचार करना भारत की दृष्टि से आवश्यक है । अमेरिका के ‘एफ्-१८’ अथवा ‘एफ्-३५’ विमानों के विषय में अडचन यह है कि इन विमानों की पुरानी आवृत्ति भारत के शत्रु पाकिस्तान के पास पहले से है । इसलिए अमेरिका उन्हें नई बनावट के विमान कब दे देगा, यह कह नहीं सकते । अमेरिका भी अब तक सुरक्षा के संदर्भ में भारत की सहायता करनेवाला विश्वसनीय राष्ट्र नहीं बन सका । इसके अतिरिक्त भारत-फ्रांस सुरक्षा संबंधी योजनाओं में ‘माजगांव डॉकयार्ड लिमिटेड’ एवं पनडुब्बियों के लिए नौदल के करार पर हस्ताक्षर भी हुए हैं । इससे पूर्व भारत द्वारा ६ ‘स्कॉर्पिन’ पनडुब्बियां तैयार की हैं । ब्योरे के अनुसार इस प्रकल्प के लिए व्यय लगभग ४.५ अब्ज डॉलर्स (लगभग ३७ सहस्र करोड रुपए) है ।) भारत एवं फ्रांस भारतीय पनडुब्बियां एवं उनकी कामगिरी का विकास करने के लिए अब भी अधिक महत्त्वाकांक्षी योजनाओं का शोध लेने के लिए तैयार हैं । भारत को परराष्ट्र मंत्रालय द्वारा प्रकाशित संरक्षण क्षेत्र के विषय में परिणाम बतानेवाले ‘होराईजन २०४७’के परिपत्रक में कहा है कि ‘लढाऊ विमानों के इंजिनों का विकास संयुक्त करने तक देश एकदूसरे को सहयोग करेंगे एवं वर्ष २०२३ के अंत तक उसकी योजना सिद्ध की जाएगी । उसमें ‘हिन्दुस्थान एरोनॉटिक्स लिमिटेड’ एवं फ्रांस में ‘सॉफरान हेलिकॉप्टर ‘इंजिन’की भागीदारी से भारतीय ‘मल्टी रोल हेलिकॉप्टर’ (आइ.एम्.आर्.एच्.) कार्यक्रम से ‘हेवी-लिफ्ट’ हेलिकॉप्टर्स के इंजनों का विकास किया जाएगा । लढाऊ विमानों के इंजिनों की निर्मिति में एकदूसरे को सहयोग करने के उपक्रम में फ्रांस को ‘सॉफरान’ भारत के ‘डी.आर्.डी.ओ.’ (संरक्षण शोधन एवं विकास संस्‍था) के साथ ही एक योजना तैयार करेगी । इसके साथ ही ‘डी.आर्.डी.ओ.’ पैरिस में भारतीय दूतावास में एक तांत्रिक कार्यालय स्थापन करेगा ।’

भारत एवं फ्रांस की रणनीति संबंधी साझेदारी निश्चितरूप से अधिक परिपक्‍व एवं सुदृढ हो रही है । फ्रांस के राष्‍ट्रपति मैक्रॉन ने चीन का नाम न लेते हुए चेतावनी दी है । वे बोले, ‘‘इंडो-पैसिफिक , ऐसा स्थान है जो सभी के लिए खुला और किसी के भी अधिकार से मुक्त होना चाहिए ।’’ अत: संरक्षण के संदर्भ में ऐसे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि भविष्य में भारत को रूस के स्थान पर फ्रांस से अधिक सहयोग मिलेगा ।’

लेखक : मेजर सरस त्रिपाठी (निवृत्त), लेखक एवं प्रकाशक, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश. (१७.७.२०२३)