धर्म एवं देवता के प्रति श्रद्धा के बल पर ही भारत को हिन्दू राष्ट्र के कार्य को आगे ले जाना होगा !

वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव में हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी द्वारा किया गया समापनीय मार्गदर्शन

१६ से २२ जून २०२३, इन ७ दिनों में ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ का विचारयज्ञ संपन्न हुआ । देवता, कर्म एवं यजमान में एकरूपता आने के उपरांत यज्ञ का फल मिलता है । इस प्रकार सर्वशक्तिमान देवताओं के आशीर्वाद, आप सभी के द्वारा आनेवाले समय में होनेवाला कर्मरूपी धर्मकार्य तथा यजमानपद भूषित करनेवाली हिन्दू जनजागृति समिति की एकता से ही हिन्दू राष्ट्र का अमृतफल मिलेगा, इसके प्रति आप आश्वस्त रहिए ! ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ के समापन के उपलक्ष्य में यहां कुछ तथ्य दे रहा हूं ।

सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी

१. हिन्दू संगठनों का दिशादर्शन

१ अ. हिन्दू संगठनों में समन्वय स्थापित करने के लिए ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ ! : अनेक लोग हिन्दू जनजागृति समिति से पूछते हैं, ‘‘हिन्दुत्व का कार्य करनेवाले अनेक संगठन हैं; तो ऐसे में हिन्दू जनजागृति समिति का भिन्न अस्तित्व किसलिए ?’ उनका यह प्रश्न स्वाभाविक है । विशाल हिन्दू समुदाय की दृष्टि से ‘हिन्दू जनजागृति समिति जैसे छोटे-छोटे अनेक संगठन होने की अपेक्षा एक ही संगठन क्यों न हो ?’, ऐसा वे सुझाना चाहते हैं । हिन्दू समाज जितना विशाल है, उतना वह भिन्न-भिन्न प्रकृतिवाले समुदायों का समूह है । कोई आध्यात्मिक होगा, कोई कर्मवादी, कोई शारीरिक स्तर पर कार्य करने का इच्छुक होगा, कोई वैचारिक स्तर पर, कोई आर्थिक सहायता करने का इच्छुक होगा; तो कोई न्यायालयीन लडाई लडने की इच्छा प्रकट करता होगा । ऐसी अनेक प्रकृति, क्षमता एवं गुणोंवाले लोगों के लिए एक ही कार्यशैली का संगठन हो, तो क्या वह सचमुच उन्हें न्याय दे सकेगा ? ऐसे सभी लोगों को उनकी अपनी कार्यशैली, प्रकृति एवं क्षमता के अनुसार कार्य उपलब्ध करनेवाले संगठनों का होना हिन्दूहित का ही है ! बाजार में जाने पर वहां कपडों की अनेक दुकानें होती हैं । जैसे हम स्वयं की व्ययशक्ति, प्रतिष्ठा एवं रुचि के अनुसार दुकान का चयन करते हैं, वैसे ही हिन्दू उनके स्वभाव के लिए अनुकूल संगठन चुनते हैं । भले ही ऐसा हो; परंतु तब भी ऐसे संगठनों में हिन्दूहित का लक्ष्य रखकर समन्वय स्थापित करना आवश्यक है तथा इसीलिए इस ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ का प्रयोजन है ।

१ आ. हिन्दू संगठन का प्रयोजन अर्थात लक्ष्य सुनिश्चित होना चाहिए ! : आज के समय में भारत में तथा भारत के बाहर अनेक हिन्दू संगठन कार्यरत हैं । कुछ लोकसंग्रह कर रहे हैं, तो कोई शिक्षाक्षेत्र में कार्यरत हैं । अधिवक्ताओं एवं उद्योगपतियों के संगठन हैं तथा आध्यात्मिक संगठन भी हैं । कला, विद्या एवं संस्कृति के संदर्भ में कार्य करनेवाले संगठन हैं । हिन्दुत्व का विचार सामने रखकर प्रसारमाध्यम एवं प्रकाशन संस्थाएं भी हैं । ये सभी हिन्दू धर्म के लिए कार्यरत संगठन हैं; परंतु प्रत्येक संगठन का प्रयोजन अथवा लक्ष्य सुनिश्चित होना चाहिए । केवल ‘हिन्दुत्व का विचार प्रसारित करने के लिए अथवा हिन्दू-संगठन करने के लिए संगठन’, ऐसा उसका स्वरूप नहीं होना चाहिए । लक्ष्य निर्धारित हो, तो उसे पूर्ण करने के ळिए समयबद्ध सुनियोजित प्रयास किए जाते हैं । इसका तात्पर्य यह है कि संस्थाओं अथवा संगठनों में हिन्दुत्व का विचार होना अच्छी बात है; परंतु ‘उस संगठन ने क्या लक्ष्य निर्धारित किया है ?’, यह उससे महत्त्वपूर्ण है । हिन्दुत्व का विचार फैलाने के लिए संगठन आवश्यक होता है, ऐसा नहीं है । एक सामान्य व्यक्ति भी ‘हिन्दुत्व का प्रचारक’ हो सकता है । जब दो अथवा दो से अधिक हिन्दुओं का समूह एकत्र होकर संगठन बनता है, तब वह हिन्दूहित का अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का लक्ष्य साध्य करनेवाला ध्येयप्रेरित आंदोलन होना चाहिए । इसलिए सभी हिन्दू संगठन अपना लक्ष्य सुनिश्चित करें ।

‘हिन्दू जनजागृति समिति’ ने आरंभ से ही धर्मशिक्षा, धर्मजागृति एवं हिन्दू-संगठन, इन क्षेत्रों में कार्य करना सुनिश्चित किया, उस समय उसने ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ का लक्ष्य रखा । उसके अनुसार निरंतर २० वर्ष उपक्रम एवं नीतियां चलाईं । आज २० वर्ष उपरांत इस लक्ष्यप्राप्ति के निकट जाने का संतोष है । अभी भी बहुत बडा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयासों की पराकाष्ठा करनी है । उसके लिए समिति समयबद्ध योजना एवं उपक्रम चला रही है । किसी संगठन का प्रयोजन पूर्ण होने के उपरांत उसकी आवश्यकता नहीं रहती, उसी प्रकार ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ का लक्ष्य पूर्ण होने पर भी उसकी आवश्यकता नहीं रहेगी, यह मैं यहां बताना चाहता हूं ।

१ इ. ‘हिन्दू-संगठनों को हिन्दू राष्ट्र का निःस्वार्थ कार्य कर क्या लाभ मिलता है ?’ : ‘हिन्दू संगठनों को हिन्दू राष्ट्र का निःस्वार्थ कार्य कर क्या लाभ मिलता है ?’, यह प्रश्न कुछ लोग पूछते रहते हैं । उनका प्रश्न व्यावाहारिक होता है । उन्हें ‘क्या आपको भविष्य में पद एवं प्रतिष्ठा मिलनेवाली है ?’, यह पूछना होता है । मैं यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि हम सभी एक निष्काम कर्मयोगी साधक हैं, जिनका ध्यान प्रभु श्रीराम हैं तथा लक्ष्य रामराज्य अर्थात ही हिन्दू राष्ट्र है । हम रामराज्य के भोगी नहीं हैं, अपितु रामराज्य लानेवाले भक्त हैं । रामराज्य आने से हमारी आध्यात्मिक साधना होकर हमारी पारलौकिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होनेवाला है, यही हमारा लाभ है !

२. हिन्दू राष्ट्र का ध्येय साकार करने के लिए आवश्यक प्रयास

२ अ. हिन्दुओं के लिए धर्मशिक्षावर्ग आरंभ करें ! : भारत को धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र बनाने से पूर्व हमें ‘हिन्दू धर्म क्या है ?’ तथा ‘प्राचीन काल में सनातन धर्म के अनुसार प्रचालित राष्ट्र कैसा था ?’, इसे समझ लेना आवश्यक है । आज के ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र में समाज को ‘धर्म क्या है ?’, यह सिखाए ही न जाने से आज प्रत्येक व्यक्ति अधर्मतापूर्वक आचरण कर रहा है । इसमें प्रतिदिन दूधवाले द्वारा मिलावटी दूध बेचने से लेकर डॉक्टर के द्वारा रोगियों को लूटने तक तथा राजनेताओं के द्वारा ‘सरकारी’ कर्मचारियों की भांति भ्रष्ट आचरण करने के अनुभव मिल रहे हैं । इस अधर्म के विरुद्ध जागृति लाना, अधर्म रोकने के लिए प्रत्यक्ष कार्य करना तथा अधर्म रोकने के उपरांत वह व्यवस्था पुनः धर्म के लिए अनुकूल हो इसके लिए प्रयास करने का कार्य आज के समय में करना आवश्यक है । आज के इस आधुनिक काल में यही धर्मसंस्थापना है ।

धर्मसंस्थापना का अर्थ केवल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करना नहीं है, अपितु धर्मग्लानि से ग्रस्त राष्ट्र एवं समाज में निहित प्रत्येक घटक को धर्ममय बनाना है ! इसके लिए भविष्य में बडे स्तर पर धर्मशिक्षा का प्रसार करना पडेगा । धर्मशिक्षा से समाज धर्माचरणी बन जाने से भ्रष्टाचार, अनैतिकता, गुंडागर्दी जैसी सामाजिक समस्याएं दूर होंगी । धर्मशिक्षा के प्रसार के कारण ‘लव जिहाद’, धर्मांतरण आदि हिन्दुओं की समस्याओं को जड से रोकना भी संभव होगा । ‘नास्तिकतावाद’, ‘वामपंथ’, ‘सेक्युलरवाद’ (धर्मनिरपेक्षतावाद) इत्यादि अधर्मी विचारधाराएं समूल नष्ट होंगी । इसके लिए भविष्य में अर्थात ही हिन्दू राष्ट्र आने तक तथा हिन्दू राष्ट्र आने के उपरांत भी आप जैसे सभी धर्मवादी संगठनों को हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देने का कार्य करना पडेगा ।

आज के समय में ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ की ओर से भारत में ५०० से अधिक स्थानों पर निःशुल्क धर्मशिक्षावर्ग लिए जाते हैं । आप भी अपने क्षेत्र में इस प्रकार के निःशुल्क धर्मशिक्षावर्ग आरंभ कर हिन्दू समाज को धर्मसाक्षर बनाने का कार्य करें ! ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ इसमें आपकी सहायता करेगी !

२ आ. लोकतंत्र में निहित दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध कार्य करें ! : भारत को राजनीतिक दृष्टि से घोषित होने के उपरांत भारत में तुरंत ही रामराज्य अवतरित नहीं होगा । हम सभी वर्तमान लोकतंत्र की दुर्दशा का अनुभव कर ही रहे हैं । आज लोकतंत्र के चारों स्तंभ भ्रष्टाचार, अनैतिकता एवं अराजकता से खोखले बन चुके हैं । रेशन की दुकानों, पुलिस थानों, सरकारी कार्यालयों, न्यायालयों आदि में भ्रष्टासुर जीवित हैं । आज की व्यवस्था भी कालबाह्य व्यवस्था बन चुकी है । इसका एक छोटासा उदाहरण देता हूं । आज के समय में मोबाइल के लिए संपूर्ण माह तक अनलिमिटेड कॉल एवं २ जीबी डाटा चाहिए, तो वह किसी भी कंपनी में ३९९ रुपए में उपलब्ध है; परंतु आज भी भारत के सांसदों को प्रतिमाह १५ सहस्र रुपए टेलिफोन भत्ता दिया जा रहा है । सामान्यतः ८०० सांसदों के १५ सहस्र रुपए अर्थात जनता से मिलनेवाले कर के पैसों में से प्रतिमाह १२ करोड रुपए उडाए जा रहे हैं । तो क्या इस व्यवस्था में परिवर्तन नहीं लाया जाना चाहिए ? इसीलिए वर्तमान लोकतंत्र में रामराज्य लाने का कार्य करना तो शिवधनुष उठाने के समान है ।

अभी से लोकतंत्र में निहित दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध जागृति एवं प्रत्यक्ष कार्य करने की आवश्यकता है, तभी जाकर सर्वत्र हिन्दू राष्ट्र के लिए अभिप्रेत वैचारिक क्रांति होगी !

२ इ. हिन्दू राष्ट्र का कार्य करते समय स्वभाषाशुद्धि का आग्रह रखें ! : आज के समय में धर्मांतरित लोगों की ‘घरवापसी’ अर्थात ही उनका शुद्धीकरण करने के लिए अनेक संगठन आग्रही हैं । इस प्रकार का आग्रह स्वभाषा के शुद्धीकरण के संदर्भ में भी होना चाहिए ! स्वभाषा के प्रति गर्व भी एक प्रकार से धर्माभिमान वृद्धिंगत करनेवाला होता है । आजकल हम स्वभाषा में बातें करते समय हम अनेक अंग्रेजी, उर्दू, पर्शियन, अरबी जैसी विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करते हैं ।

विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग करने से हमारी भाषा चैतन्यहीन बन जाती है, इसे हमें ध्यान में लेना होगा ! भारत की सभी भाषाएं संस्कृति से उत्पन्न हुई हैं । उसके कारण हिन्दू राष्ट्र का कार्य करते समय भाषण देना, संवाद करना, लेखन करना इत्यादि कृत्यों में आप संस्कृतनिष्ठ स्वभाषा का प्रयोग करें ! उदाहरण ही देना हो, तो इस अधिवेशन में अनेक वक्ताओं ने बोलते समय ‘विश्व’ शब्द के लिए ‘दुनिया’ शब्द का प्रयोग किया । वास्तव में ‘दुनिया’ एक टर्की शब्द हैं । उसके लिए हमारी भाषा में ‘संसार’, ‘जगत’ जैसे अनेक शब्द उपलब्ध होते हुए भी हम सभी को विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग टालना होगा !

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उपरांत हम सभी भारतीय भाषाओं के शुद्धीकरण का कार्य करेंगे !

२ ई. सर्वधर्मसमभाव इस शब्द का प्रयोग टालें ! : आज के समय में कपोलकल्पित तथ्य अर्थात ‘नैरेटिव’ बनाकर हिन्दुओं को मूर्ख बनाया जा रहा है । ‘सर्वधर्मसमभाव’ भी एक नैरेटिव है, इसे ध्यान में लें ! धर्म एक ही है तथा वह है सनातन हिन्दू धर्म ! शेष सभी पंथ हैं । सभी पंथों की उपासना भिन्न है; तो ‘सर्वधर्मसमभाव’ शब्द का प्रयोग किसलिए ? अनेक वर्ष पूर्व तत्कालीन महात्माओं-पंडितों ने ‘ईश्वर-अल्लाह एक ही हैं’ का ‘नैरेटिव’ बनाया तथा इन ४ शब्दों से हिन्दू शाश्वत रूप से मृत हुए । अभी भी हिन्दू साधु-संतों को सर्वधर्मसमभाव के प्रतीक के रूप में ‘जमियत-उलेमा-ए-हिन्द’ के राष्ट्रीय अधिवेशन में जाने की क्यों इच्छा होती है ?’, इसका उत्तर इस ‘नैरेटिव’ में छिपा है । सौभाग्यवश इस वर्ष हिन्दू धर्मगुरुओं ने ‘जमियत-उलेमा-ए-हिन्द’ के राष्ट्रीय अधिवेशन का बहिष्कार करते हुए मंच छोडा । इसके आगे हिन्दू नेतृत्व को ‘सर्वधर्मसमभाव’ जैसी हीनतापूर्ण भूमिका न अपनाकर अपनी भूमिका रखना आरंभ करना चाहिए ।

२ उ. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए सनातन ज्ञानपरंपरा एवं शौर्यपरंपरा के संदर्भ में जागृति लाएं ! : हिन्दू राष्ट्र के पुनरुत्थान के २ महत्त्वपूर्ण आधारभूत बिन्दु हैं । पहला है ज्ञानपरंपरा अर्थात ब्राह्मतेज तथा दूसरा है शौर्यपरंपरा अर्थात क्षात्रतेज ! आनेवाले समय में हम सभी को इन दोनों परंपराओं का जागरण करना पडेगा ।

२ उ १. सनातन ज्ञानपरंपरा का जागरण : सनातन धर्मग्रंथ हिन्दू राष्ट्र की ज्ञानशक्ति है । अखिल मनुष्यजाति के जीवन के विभिन्न अंगों को सकारात्मक रूप देनेवाला सनातन धर्मग्रंथों में समाहित ज्ञान संपूर्ण विश्व को प्रेरित करता है । यह ज्ञानपरंपरा ही आधुनिक विश्व के विकृत बन चुकी सभ्यताओं को आध्यात्मिक जीवनदृष्टि देगी । हमारे सनातन सिद्धांत तत्त्वज्ञान, विज्ञान एवं व्यवहार इन तीनों दृष्टिकोणों से प्रगत हैं । उनका पालन किए बिना व्यावहारिक एवं पारलौकिक प्रगति भी नहीं हो सकती, साथ ही ईश्वरप्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त नहीं हो सकता । इसीलिए सनातन धर्मदर्शन, विज्ञान एवं व्यवहार का समन्वय कर कार्य करें ! हिन्दू राष्ट्र की वैचारिक क्रांति में आपके सामने कोई भी टिक नहीं पाएगा !

भारत में आदर्श समाजव्यवस्था, राजनीतिक संगठन एवं धार्मिक संरचना निर्माण होने के लिए, साथ ही उन्हें आधुनिक पश्चिमी विचारों से दूर रखने के लिए सनातन ज्ञानपरंपरा की आवश्यकता है । इसका प्राथमिक स्तर है सनातन ज्ञानपरंपराओं का जागरण करनेवाले एवं शिक्षा देनेवाले गुरुकुलों एवं विद्यालयों की निर्मिति करना ! इसके आरंभ के रूप में गोवा में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की स्थापना हुई है !

२ उ २. शौर्यपरंपरा का जागरण : ज्ञानपरंपरा सहित शौर्यपरंपरा का जागरण करना समय की मांग तथा हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है । भारत के पराधीन क्षेत्र को स्वतंत्रता दिलाने के लिए प्रमुखता से २ संघर्ष हुए । एक था राजनीतिक तथा दूसरा था क्रांतिकारी ! ‘सेक्युलर’ इतिहासकारों ने राजनीतिक संघर्ष का श्रेय महात्मा-पंडितों को देनेवाला विकृत लेखन किया । मैं इस विषय पर विस्तार से नहीं बोलूंगा । दूसरा संघर्ष था राजपुरुषों एवं क्रांतिकारियों के पराक्रम एवं देशभक्ति पर समर्पण का ! राजस्थान के महाराणाओं ने १ सहस्र वर्ष तक विदेशी जिहादी आक्रांताओं से निरंतर धर्मयुद्ध किया । चाहे वे राणा कुंभा हों, राणा हमीर हों, महाराणा प्रताप हों अथवा बाप्पा रावल हों; उनका यह धर्मयुद्ध तो केवल हिन्दू राष्ट्र का अस्तित्व अक्षुण्ण रखने के लिए था । दक्षिण के विजयनगर का ‘हिन्दू साम्राज्य’ हो, छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘हिन्दवी स्वराज्य’ हो, मराठाओं का ‘हिन्दू साम्राज्य’ हो अथवा पंजाब के सिख गुरुओं का खालसा दल हो; इन सभी ने भी धर्मयुद्ध किया तथा वह केवल हिन्दू राष्ट्र की प्राप्ति के लिए था । हमारे राजपुरुषों एवं धर्मपुरुषों की इस हिन्दू राष्ट्र भावना को वीर सावरकर की भांति क्रांतिपुरुषों ने भी जीवित रखा था ।

आज के समय में शौर्यपरंपरा विलुप्त होने की स्थिति में है; इसीलिए हिन्दू समाज में शौर्यपरंपरा का जागरण करने के लिए ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ निःशुल्क शौर्यजागृति शिविरों का सर्वत्र आयोजन कर रही है । आप भी अपने क्षेत्रों में ऐसे शिविरों का आयोजन कर सकते हैं !

३. समापन

अंत में इतना ही कहना चाहूंगा कि आपके साथ सरकार है या नहीं ? व्यापारप्रणाली आपका समर्थन करती है या नहीं ? प्रसारमाध्यम आपका साथ देते हैं या नहीं ?, इसकी चिंता न करें ! संकल्प लें, ‘मुझे भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है तथा धर्म एवं देवताओं के प्रति श्रद्धा के बल पर हिन्दू धर्म का कार्य आगे ले जाना है !’

– (सद्गुरु) नीलेश सिंगबाळ, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृतिसमिति