रामनाथी, २२ जून (संवाददाता) – हमारे मुजफ्फरपुर शहर के नाम पर मुझे सदैव खेद होता था; इसलिए वर्ष १९८० में हम कुछ समविचारी मित्रों एवं संस्थाओं की बैठक की । उसमें शहर का नाम परिवर्तित करना सुनिश्चित हुआ । मुजफ्फरपूर लिची फलों के उत्पादन के लिए विख्यात है । इस शहर की जनसंख्या ६ लाख है, जिसमें ५० सहस्र मुसलमान हैं । वहां अनेक पशुवधगृह हैं । उन्हें बंद करने का प्रयास किया; परंतु वहां की पुलिस एवं प्रशासन से इन पशुवधगृहों की मिलीभगत होने के कारण उन पर कार्यवाही नहीं होती । शहर में अन्नप्रक्रिया उद्योग हैं, उसके नाम पर वहां रात के समय गोमांस का ‘पैकिंग’ किया जाता है । हमने केंद्र सरकार के अधिकारियों की सहायता लेकर एक रात में ५०० टन गोमांस पकडा । यह संपूर्ण कार्य हमारी १५ से २० संगठनों की समन्वय समिति की ओर से किया जाता है ।
गोतस्करी रोकते समय हम पर चोरी के अपराध लगाए जाते हैं । दुर्भाग्य से इस कार्य में हमारी सहायता के लिए जनता आगे नहीं आती । एक पशुवधगृह बंद होने पर उसे अन्य स्थान पर आरंभ किया जाता है, ऐसा क्षोभजनक प्रतिपादन उत्तर प्रदेश की ‘अंतरराष्ट्रीय सनातन हिन्दू वाहिनी’ के संस्थापक आचार्य चंद्र किशोर पाराशर ने किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के सांतवें दिन (२२.६.२०२३ को) उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।
उन्होंने आगे कहा, ‘‘राष्ट्रवादी विचारोंवाले साहित्यकारों को उचित व्यासपीठ उपलब्ध हो; इसके लिए हमारी समन्वय समिति ने विख्यात साहित्यकार दिनकर के नाम से एक एकादमी की स्थापना की । इस एकादमी की ओर से प्रतिवर्ष ३ दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया जाता है । कुछ दिन पूर्व बिहार के नौबतपुर में बागेश्वर धाम महाराज के कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसका बिहार सरकार से विरोध हुआ । उस समय यहां के किसानों ने इस कार्यक्रम के लिए उनकी फसलवाली १ सहस्र ५०० एकर भूमि समतल कर उपलब्ध कराई ।’’
‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव में आने पर मुझे मेरी ऊर्जा में ५ गुना वृद्धि प्रतीत हुई । जब मैं परमपूज्य गुरुदेवजी से (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी से) मिला, उस समय यह ऊर्जा १० गुना बढी हुई प्रतीत हुई ।’ – आचार्य चंद्र किशोर पाराशर, संस्थापक, अंतरराष्ट्रीय सनातन हिन्दू वाहिनी |