‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’द्वारा ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल औरा स्कैनर)’ उपकरण से किया गया वैज्ञानिक परीक्षण
‘भूमि खरीदने के उपरांत ‘भूमि की शुद्धि होकर स्थानदेवता का आशीर्वाद मिले’, इस उद्देश्य से सर्वप्रथम भूमि का विधिवत पूजन किया जाता है । इस पूजा के समय पृथ्वी, वराह, कूर्म एवं शेष देवताओं का आवाहन कर उनका पूजन किया जाता है । भूमिपूजन करने के कारण देवता के आशीर्वाद से भूमि में समाहित दोष दूर होकर उसकी शुद्धि होती है । यह अनुष्ठान करने से स्वामी (मालिक) के लिए भूमि अनुकूल बन जाती है ।
४.५.२०२२ को गोवा में एक आध्यात्मिक संस्था की भूमि का भूमिपूजन किया गया । आध्यात्मिक दृष्टि से पूजा में समाहित घटकों पर ‘भूमिपूजन अनुष्ठान का क्या परिणाम होता है ?’, वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन करने के लिए ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल औरा स्कैनर)’ उपकरण से एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन तथा अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया गया है ।
१. परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन
इस परीक्षण में अनुष्ठान से पूर्व तथा अनुष्ठान के उपरांत ‘यू.ए.एस.’ उपकरण के द्वारा भूमिपूजन का स्थान (जहां पूजा की रचना की गई थी, वह स्थान), भूमि पर स्थित मिट्टी, पुरोहित एवं पूजा के यजमान के परीक्षण किए गए ।
१ अ. भूमि, पुरोहित एवं यजमान पर भूमिपूजन अनुष्ठान का सकारात्मक परिणाम होना : भूमिपूजन अनुष्ठान के उपरांत वह स्थान तथा भूमि पर स्थित मिट्टी में समाहित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर उनमें बडी मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि हुई, साथ ही पुरोहित एवं यजमान में समाहित नकारात्मक ऊर्जा बडी मात्रा में अल्प होकर उनमें भी सकारात्मक ऊर्जा बढी । आगे दी गई सारणी से यह स्पष्ट होता है ।
२. परीक्षण से प्राप्त निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
२ अ. भूमिपूजन अनुष्ठान के कारण भूमि का शुद्धीकरण होकर उसकी सात्त्विकता में वृद्धि : भूमिपूजन से पूर्व भूमिपूजन का स्थान तथा भूमि पर स्थित मिट्टी में बडे स्तर पर कष्टदायक स्पंदन थे; परंतु भूमिपूजन अनुष्ठान के कारण वहां चैतन्य उत्पन्न होकर भूमि में समाहित कष्टदायक स्पंदन नष्ट होकर भूमि की सात्त्विकता बहुत बढ गई । इससे हिन्दू धर्म में बताई गई भूमिपूजनादि अनुष्ठानों का महत्त्व स्पष्ट होता है ।
२ आ. भावपूर्ण पद्धति से भूमिपूजन अनुष्ठान करने से पुरोहित एवं यजमान को आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होना : इस भूमिपूजन अनुष्ठान के यजमान संत स्तर के थे, इसलिए परीक्षण से समझ में आया कि अनुष्ठान से पूर्व ही उनमें पर्याप्त सात्त्विकता थी । यजमान के द्वारा अत्यंत भावपूर्ण पद्धति से यह अनुष्ठान करने से वहां देवताओं का तत्त्व कार्यरत हुआ । उसके कारण अनुष्ठान के स्थान पर बडे स्तर पर चैतन्य उत्पन्न हुआ । पुरोहित एवं यजमान के द्वारा अनुष्ठान में समाहित चैतन्य ग्रहण किए जाने से उनके आस-पास कष्टदायक स्पंदनों का आवरण अल्प होकर उनकी सात्त्विकता में प्रचुर वृद्धि हुई ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (८.२.२०२३)
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सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । |