१७.१२.२०१८ को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा प.पू. देवबाबा के किन्नीगोळी (कर्नाटक) के ‘शक्तिदर्शन योगाश्रम’ में ‘भारतीय (देसी) गाय एवं बैल पर शास्त्रीय गायन का क्या परिणाम होता है ?’ इसका अध्ययन किया गया । इस समय ठाणे, महाराष्ट्र के श्री. प्रदीप चिटणीस (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत, आयु ५९ वर्ष) ने ‘शंकरा’ राग पर आधारित शिव संबंधी धृपद का अत्यंत भावपूर्ण गायन प्रस्तुत किया । श्री. चिटणीस तथा वहां पर उपस्थित साधकों को वहां की गाएं एवं ‘मुरली’ नामक बैल के संदर्भ में ध्यान में आए मुद्दे आगे दिए हैं ।
१. श्री. प्रदीप चिटणीस (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) द्वारा ‘शंकरा’ राग पर आधारित शिव संबंधी धृपद का गायन आरंभ करने पर ध्यान में आए सूत्र –
१ अ. सभी गायों का गर्दन हिलाना तथा ‘मुरली’ नामक बैल के गर्दन हिलाकर प्रतिसाद देने से लगना कि ‘वह गायन से मानो जुगलबंदी ही कर रहा है’ : ‘इस प्रयोग के समय मुझे लगा कि ‘शंकरा’ राग में धृपद का गायन करे ।’ धृपद के आरंभ में नोम-तोम (‘नोम-तोम’ ऐसे शब्दों का उपयोग कर किया स्वर विस्तार) आलाप आरंभ करते ही सभी गायों ने अच्छा प्रतिसाद देना आरंभ किया । सभी गाएं मेरी ओर देखकर गर्दन हिला रही थीं । ५-६ गायों ने गोमूत्र का, जबकि १-२ गायों ने गोमय का (गोबर का) एक साथ उत्सर्जन किया । ‘मुरली’ नामक बैल गायन सुनने में लीन हो गया था । वह तेजी से गर्दन हिला रहा था । मुझे ऐसा लगा कि ‘वह मेरे गायन के साथ जुगलबंदी ही कर रहा है ।’ – श्री. प्रदीप चिटणीस (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) ठाणे, महाराष्ट्र.
१ आ. श्री. प्रदीप चिटणीस का गायन सुनते समय सभी गायों का उठकर खडे रहना, ‘गौरी’ नामक गाय का उनकी ओर जाने का प्रयास करना, उसकी आंख में आंसू देखकर लगना कि ‘गायन सुनकर उसकी भावजागृति हुई है’ : ‘जब गायन हो रहा था, उस समय चिटणीसजी के पीछे की सभी गाएं उठकर खडी हुईं तथा उनकी ओर देखने लगी । स्वर विस्तार सुनते समय ‘गौरी’ नामक गाय उनकी ओर मुडी एवं उनकी ओर जाने का प्रयास करने लगी । उसे बांधकर रखा था, इसलिए वह आगे नहीं जा पाई । गायन सुनते समय ‘गौरी’ की आंखों में आंसू निकल आएं । उसकी उस भावस्थिति को देखकर मेरे भी भाव जागृत हुए । गायन सुनते समय कुछ क्षण मुझे लगा कि नृत्य करें ।’ – होमियोपैथी वैद्या (कु.) आरती तिवारी (‘इस गाय का नाम ‘गौरी’ है । इसलिए मुझे लगा कि ‘शंकरा’ राग से प्रक्षेपित शिवतत्त्व की ओर वह आकर्षित हुई ।’ – कु. तेजल पात्रीकर)
१ इ. श्री. चिटणीस के ‘शंकरा’ राग के आरंभ में ‘ॐ’ कार कहते ही आंखें बंद कर बैठी गाय का श्री. चिटणीस की ओर मुडकर देखना : ‘एक गाय गर्दन नीचे झुकाकर बैठी थी एवं कान हिला रही थी । ‘शंकरा’ राग के आरंभ में चिटणीसजी के केवल ‘ॐ’ कार से ही उस गाय ने अचानक उनकी ओर मुडकर देखा । यह बात अत्यंत विशेष लगी । मुझे लगा कि ‘उस गाय को ‘शंकरा’ राग में अंतर्भूत शिव के स्पंदन पहले से ही अनुभूत हुए । कुछ गायों ने धृपद गाने पर अधिक प्रतिसाद दिया । मुझे लगा कि ‘वे गाएं शिवतत्त्व से संबंधित हैं ।’
१ ई. लगना कि ‘मुरली’ नामक बैल का प्रतिसाद राग की प्रकृति अनुसार ही है’ : ‘मुरली’ नामक बैल रंभाने के साथ-साथ गर्दन हिलाकर प्रतिसाद दे रहा था । ‘शंकरा’ शिवतत्त्व से संबंधित वीररस प्रधान राग है । इसलिए लगा कि ‘मुरली का प्रतिसाद उस राग की प्रकृति अनुसार ही है ।’
१ उ. निष्कर्ष : केवल मनुष्य ही संगीतप्रिय नहीं है; अपितु पशु भी संगीत को कितने आनंद से प्रतिसाद देते हैं, यह सूत्र हम इस प्रयोग से प्रत्यक्ष अनुभव कर पाए ।’
– सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत), संगीत विशारद, संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (३.२.२०२३)