परिजनों में अनबन होना अथवा न होना; उनके स्वभावदोष, अहं, पूर्वजों के कष्ट आदि प्रारब्ध पर निर्भर होना

परिजनों में अनबन होना अथवा न होना, उनके स्वभावदोष, अहं, पूर्वजों के कष्ट आदि प्रारब्ध पर निर्भर होने के कारण साधकों को स्थिर रहकर साधना करना आवश्यक

‘पिछले ५-७ वर्षाें से हम दोनों पूर्णकालीन साधना कर रहे हैं । पूर्णकालीन साधना के लिए हम दोनों के ही परिवारों से कुछ लोगों का विरोध था । आज भी उन्हें ये अच्छा नहीं लगता । हम दोनों ने जब पूर्णकाल साधना करने का निर्णय लिया, तब दोनों अच्छी नौकरी कर रहे थे । तभी से दोनों के परिजनों को लगता है कि हम परिवार तथा व्यवहार दोनों संभालते हुए साधना करें । हमारे पारिवारों की आर्थिक एवं सामजिक स्थितियां भिन्न हैं । हमारे परिजनों की एक-दूसरे से नहीं बनती । उन्हें अन्य परिवारिक समस्याएं भी हैं । ‘इस परिस्थिति की ओर आध्यात्मिक दृष्टि से देखते हुए साधनारत कैसे रहें ?’ यह बात श्री गुरु ने हमारे ध्यान में लाई । उन्होंने ही हमसे इस पर प्रयत्न करवाए । अत: हम कृतज्ञतापूर्वक यह गुरुचरणों में अर्पण कर रहे हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

१. परिजनों के प्रति चिंता तथा उन्हें होनेवाले आध्यात्मिक कष्टों के कारण साधकों की साधना में बाधा आना; परंतु एक दूसरे से बात करने पर स्थिर रहना संभव हो पाना

पिछले १-२ माह में हमारे (मैं एवं मेरे आध्यात्मिक मित्र के) परिजनों के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों में वृद्धि हुई है । हमारे परिवारों की आर्थिक स्थिति भिन्न होने पर भी ‘परिजनों के प्रति चिंता तथा उन्हें होनेवाले आध्यात्मिक कष्टों के कारण हमारी साधना में बाधा आई है’, यह बात भगवान ने हमारे ध्यान में लाकर दी है । इस विषय पर एक-दूसरे से बात करने पर हम इस परिस्थिति में स्थिरता अनुभव कर पाए ।

२. साधक से परिजनों की अपेक्षाएं

२ अ. दोनों में से एक का परिवार संपन्न होने से भी परस्पर अनबन होने पर उनका अलग रहना एवं ‘परिजन एक साथ रहें’, इस हेतु ‘साधक को प्रयत्न करने चाहिए’, परिजनों की ऐसी अपेक्षा करना : हम दोनों में से एक के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी है तथा बडा घर, गाडी इत्यदि सबकुछ है; परंतु परिजनों में अनबन होने से वे अलग रहते हैं । ‘उनमें स्थित कटुता दूर होकर सब एक साथ रहें’, इसलिए ‘साधक को प्रयत्न करने चाहिए’, ऐसी उनकी अपेक्षा रहती है ।

२ आ. दोनों में से एक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने तथा आध्यात्मिक कष्ट होने के कारण परिजनों में अनबन एवं ‘साधक घर पर रहकर उनकी देखभाल करते हुए साधना करें’, ऐसी उनकी अपेक्षा होना : इसके विपरीत अन्य साधक के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने से वे आर्थिक संकटों का सामना कर रहे हैं । परिजनों की बीमारियां, तीव्र आध्यात्मिक कष्ट, एक दूसरे से मतभेद आदि कारणों से वे दु:खी हैं । इसलिए उन्हें लगता है कि ‘साधक घर पर रहकर एवं उनकी देखभाल करते हुए साधना करें ।’

ईश्वर द्वारा दिए विचार !

३ अ. आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, परिजनों के स्वभावदोष, अहं, आपस में लेन-देन तथा पितृदोष आदि कारणों से उनमें अनबन रहना : घर की परस्थिति के संदर्भ में जब हम एक-दूसरे से बात कर रहे थे, तब ईश्वर की कृपा से हमें ध्यान में आया कि परिजनों की आपसी अनबन, परस्पर अपेक्षा कर स्वयं को दु:खी करना’, उनके लेन-देन, प्राब्धभोग, उनके स्वभावदोष, अहं एवं पूर्वजों के कष्ट इत्यादि पर निर्भर है ।

३ आ. प्राप्त परिस्थिति स्वीकार कर स्थिर रहते हुए प्रयत्न करने से आपातकाल में स्थिर होकर साधना कर पाना : ईश्वर की कृपा से ध्यान में आया कि ‘साधक यदि परिजनों की व्यावहारिक तथा भौतिक सुविधाओं का विचार न कर गुरुदेवजी की शरण में जाकर ‘साधना के लिए सहायक कृति कैसे करें ? किसी भी परिस्थिति में मन स्थिर एवं सक्षम कैसे रहे ?’, इस पर ध्यान दें तो आनेवाले आपातकाल में स्थिर रहकर गुरुदेवजी को अपेक्षित साधना के प्रयत्न कर पाएंगे ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने यह ध्यान में लाया तथा हमसे अपेक्षित प्रयत्न करवाए, इसलिए उनके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !
आपके चरणों से एकरूप होने को आतुर, दो आध्यात्मिक मित्र, महाराष्ट्र, (२०.११.२०२२)

  • यहां प्रकाशित अनुभूतियां ‘जहां भाव वहां ईश्वर’ इस उक्तिनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । सभी को ऐसी अनुभूतियां हों ऐसी अपेक्षा न करें । – संपादक