घोर आपातकाल का आरंभ होने से पूर्व अधिक गति से आवश्यक ग्रंथ-रचना की सेवा में सम्मिलित होकर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति कर लें !

१. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के संकल्प के अनुसार साधकों ने गति से ग्रंथसेवा की, तो उससे समष्टि साधना होने से उनके आध्यात्मिक कष्ट शीघ्र न्यून होकर आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र हो पाना !

(पू.) संदीप आळशी

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने बताया है, ‘घोर आपातकाल का आरंभ होने से पूर्व अधिकाधिक ग्रंथों की निर्मिति कर उसके द्वारा समाज को साधक बनाना’ आज के समय की श्रेष्ठ समष्टि साधना है !’ इस प्रकार ग्रंथ-रचना का कार्य अधिक गति से करने का एक दृष्टि से परात्पर गुरु डॉक्टरजी का अव्यक्त संकल्प ही हुआ है । इसके अनुसार ग्रंथ-रचना की सेवा में सम्मिलित साधकों ने ग्रंथ-रचना अधिक गति से होने के लिए प्रयास आरंभ किए हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ग्रंथकार्य के लिए जो अव्यक्त संकल्प किया है, उस माध्यम से साधकों को आध्यात्मिक ऊर्जा मिलने के कारण उनके आध्यात्मिक कष्ट भी शीघ्र न्यून (कम) हो रहे हैं । आज के समय में सूक्ष्म के आपातकाल की (अनिष्ट शक्तियों के कष्टों की) तीव्रता बढते हुए भी ‘यदि गुरुदेवजी के संकल्प के अनुसार लगन से सेवा करने का प्रयास किया, तो गुरुतत्त्व (ईश्वरीय तत्त्व) कार्यरत होने की मात्रा भी कैसे बढती है’, यह इससे सीखने के लिए मिलता है । इसके कारण स्वाभाविक ही ग्रंथसेवा के माध्यम से साधकों की आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र हो सकती है ।

२. ११४ विषयों पर आधारित ग्रंथमाला के अंतर्गत ५ सहस्र से भी अधिक ग्रंथों के प्रकाशित होने के कार्य में सम्मिलित हों !

परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा संकलित ग्रंथों में से दिसंबर २०२२ तक ३६० ग्रंथों-लघुग्रंथों की रचना हुई है । सामान्य रूप से १०० पृष्ठों (५०० केबी) का एक ग्रंथ बनता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित मनुष्य, साधना, कला, समाज, राष्ट्र, विश्व, अध्यात्म, धर्म आदि विषयों पर आधारित ग्रंथमालाएं हैं । उसी प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की जीवनयात्रा, उनका कार्य एवं उनके उत्तराधिकारियों से संबंधित कुल ११४ विषयों की ग्रंथमालाएं भी हैं । उसके अंतर्गत ५ सहस्र से भी अधिक ग्रंथों की निर्मिति की प्रक्रिया चल रही है ।
उक्त विषयों की ग्रंथमालाएं अधिक गति से होने के लिए अनेक लोगों की सहायता की आवश्यकता है । आपकी रुचि एवं क्षमता के अनुसार ग्रंथ-रचना की सेवा में सम्मिलित होकर इस स्वर्णिम अवसर का अधिकाधिक लाभ उठाएं !

३. ग्रंथ-रचना की सेवा में सम्मिलित होने हेतु संपर्क करें !

उक्त सभी सेवाओं के लिए संगणक का सामान्य ज्ञान होना, साथ ही संगणकीय टंकण करने का ज्ञान आवश्यक है । ग्रंथ-रचना से संबंधित सेवा सीखने के लिए इच्छुक व्यक्ति सनातन के आश्रम में २-३ सप्ताह रह सकते हैं । आगे जाकर वे सनातन के आश्रम में रहकर अथवा घर पर ही सेवाएं कर सकेंगे ।’
– (पू.) संदीप आळशी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२३.१.२०२३)

३ अ. सेवा करने हेतु इच्छुक व्यक्तियों की आवश्यक जानकारी

यह सेवा करने के इच्छुक व्यक्ति उक्त सारणी के अनुसार अपनी जानकारी सनातन के साधकों को संगणकीय धारिका अथवा लिखित रूप में दें तथा साधक वह जानकारी जिलासेवकों के माध्यम से श्रीमती भाग्यश्री सावंत के नाम [email protected] इस संगणकीय पते पर अथवा निम्न डाक पते पर भेजें ।

डाक पता

श्रीमती भाग्यश्री सावंत, द्वारा ‘सनातन आश्रम’, रामनाथी, फोंडा, गोवा. पिन ४०३ ४०१.