जब लोग व्यवस्था अथवा उसके ठेकेदारों से भयभीत होते हैं, तब वहां उत्पीडन आरंभ होता है ! – कर्नाटक उच्च न्यायालय

बेंगलुरू – जब व्यवस्था अथवा उसके ठेकेदार लोगों से भयभीत होते हैं, इसका अर्थ वहां स्वतंत्रता होती है; परंतु जब लोग व्यवस्था तथा उसके ठेकेदारों से भयभीत होते हैं, तब वहां दमनचक्र (उत्पीडन) आरंभ होता है, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ऐसा वक्तव्य किया । दक्षिण कन्नड जिले के २३ वर्षीय अधिवक्ता कुलदीप शेट्टी द्वारा प्रविष्ट याचिका पर सुनवाई करते समय न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने यह वक्तव्य किया ।

बेळ्तंगडि के पूंजालकट्टे गांव में अधिवक्ता कुलदीप की पुलिस उपनिरीक्षक सुतेश के.पी. ने पिटाई की थी । पुलिस ने इस घटना की परिवाद प्रविष्ट करने में टालमटोल की तो अधिवक्ता कुलदीप ने न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । (एक अधिवक्ता का परिवाद प्रविष्ट करने में टालमटोल करनेवाली पुलिस सामान्य जनता के साथ कैसे आचरण करती होगी, इसका विचार न करना ही अच्छा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) न्यायालय के आदेश देने पर भी पुलिस द्वारा प्रथमदर्शनी ब्यौरा (एफआईआर) प्रविष्ट न करने पर अधिवक्ता कुलदीप न्यायालय पहुंच गए । (न्यायालय के आदेश का पालन न करनेवाली कानूनद्रोही पुलिस ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) न्यायालय ने राज्य के पुलिस महासंचालक को पुलिस उपनिरीक्षक सुतेश के.पी. तथा उनके सहयोगियों की कार्यालयीन जांच करने तथा अधिवक्ता कुलदीप को क्षतिपूर्ति करने का आदेश दिया । इसके साथ न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मारपीट के प्रकरण की कार्यालयीन जांच में अपराधी पाई गई पुलिस के वेतन से यह राशि दी जानी चाहिए ।