राष्ट्रप्रेमियो, राष्ट्रकर्तव्य का निर्वहन करने के लिए ये अवश्य करें !

• स्वयं से राष्ट्रध्वज का अनादर न हो, इसकी ओर ध्यान दीजिए !
• अन्य किसी से कहीं राष्ट्रध्वज का अनादर हो रहा हो, तो संबंधित लोगों को राष्ट्रध्वज के महत्त्व का भान कराएं !
• गणतंत्र दिवस पर ‘मैं राष्ट्रध्वज का कभी भी अनादर नहीं होने दूंगा, साथ ही प्रतिदिन अंतर में राष्ट्रप्रेम जागृत रहेगा’, यह संकल्प लें !
• राष्ट्राभिमानी नागरिको, आतंकवाद का सामना करने के लिए संगठित हों !
• जनता में राष्ट्रीय भावना का अभाव ही भारत की समस्याओं का कारण होने से भारतीय लोगों में राष्ट्रीय भावना जागृत कर देश को संपन्नता की ओर ले जानेवाले राज्यकर्ताओं से युक्त हिन्दू राष्ट्र लाइए !

भारत का प्रतीक गणतंत्र

गणतंत्र की संकल्पना वेदों में है । ‘महाभारत के सभापर्व में अर्जुन अनेक गणराज्य जीत लेते हैं’, ऐसा उल्लेख है । राजसूय यज्ञ के समय में वे ये गणराज्य जीतते हैं । कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कुछ गणराज्यों का उल्लेख नाम सहित है । लिच्छवी, कंम्बोज ऐसे कुछ गणराज्यों के नाम हैं । पाश्चात्य मेगास्थेनिस ने भारत का जो वर्णन किया है, उसमें वह कहता है, ‘मैंने दो गणराज्यों में प्रवास किया है’ उसने जिन गणराज्यों में प्रवास किया, उन गणराज्यों में से एक है मालव एवं दूसरा शिबी ! अतः गणराज्य की संकल्पना भारत के लिए नई नहीं है अथवा वह अंग्रेजों से हमारे यहां आई है, ऐसा भी नहीं है । उसके कारण हिन्दू राष्ट्र आनेवाला है, इसका अर्थ कुछ भिन्न ही होनेवाला है, ऐसा अर्थ न निकाला जाए । यह संकल्पना प्राचीन है ।

(संदर्भ : हिन्दू जनजागृति समिति समर्थित ग्रंथ ‘हिन्दू राष्ट्र : आक्षेप एवं खंडन’) 

राष्ट्र के विविध नाम तथा उनका इतिहास

१. हिन्दुस्थान : भविष्यपुराण के अनुसार सिंधु का पश्चिमी भू-प्रदेश ‘हिन्दुस्थान’ के नाम से विख्यात है ।

२. भारत : सम्राट भरत ने कश्मीर से कन्याकुमारी और सिंधु नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक के प्रदेश में एकछत्र राज्य किया । उनके इस पराक्रम के कारण यह प्रदेश ‘भारत’ अथवा ‘भारतवर्ष’ के नाम से जाना जाने लगा ।

३. इंडिया : ‘सिंधु’ को ‘इण्डस’ कहनेवाले ग्रीकों के माध्यम से यूरोप महाद्वीप भारत से परिचित हुआ । इसलिए उन्होंने भी भारत को ‘इंडिया’ कहा ।

(संदर्भ : हिन्दू जनजागृति समिति समर्थित ग्रंथ ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?)

वीर सावरकरजी की हिन्दू राष्ट्र संकल्पना !

वीर सावरकरजी

वीर सावरकर द्वारा लिखित ‘हिन्दुत्व’ ग्रंथ के अंतिम प्रकरण में कहा गया है, ‘यदाकदा भारत का विभाजन होकर भारत हिन्दू राष्ट्र बन भी गया, तब भी भारत में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की ही व्यवस्था होगी; परंतु भारत में अन्य धर्मियों का तुष्टीकरण नहीं होगा । अन्य धर्मियों की पूजा पद्धति को हमारा विरोध नहीं होगा ।’

हिन्दू राष्ट्र अर्थात ‘विश्वकल्याणार्थ कार्यरत सत्त्वगुणी लोगों का राष्ट्र’ !

‘हिन्दू राष्ट्र’ की अवधारणा राजनीति नहीं है, यह तो राष्ट्रनिष्ठ और धर्माधारित जीवन जीने की एक प्रगल्भ संस्कृति और राज्यव्यवस्था होगी ।