‘इस पृथ्वी पर भारत ही एकमात्र ऐसा राष्ट्र है, जो अन्य देशों की भांति क्रांति, विद्रोह अथवा युद्ध से नहीं बना है; अपितु ऋषियों की तपस्या से बना है । चक्रवर्ती सम्राट भरत, देवता भी जिनका यशोगान करते हैं, जिनके कर्तृत्व, त्याग, प्रजावात्सल्य, धर्माचरण, शास्त्रनिष्ठा, पराक्रम एवं विनय अतुलनीय हैं; ऐसे चक्रवर्ती भरत के कारण इस पुण्यभूमि को ‘भारतवर्ष’ नाम मिला । भरत से पूर्व इस देश का नाम ‘अजनाभ वर्ष’ था । अजनाभ परम श्रेष्ठ चक्रवर्ती सम्राट थे । उनका नाम इस राष्ट्र को मिला । भरत उनसे भी श्रेष्ठ थे इसलिए भारतवर्ष नाम पडा । इन भरत सम्राट के एक पूर्वज थे चक्रवर्ती चित्ररथ ! उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी पर अपना नियंत्रण स्थापित कर मनुष्य जाति के बसने योग्य बना दिया । इसका अर्थ यह है कि आज के यूरोपियन, अमेरिकी, रूसी, अफ्रीकन एवं ऑस्ट्रेलियन पृथ्वी पर स्थित ऐसे सभी समुदायों को हमारे आर्य पूर्वजों द्वारा बसने के लिए भूमि प्रदान की गई है ।’
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, २०.११.२००८)
‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है’, एक हास्यास्पद संकल्पना !
‘किसी भी राष्ट्र के व्यक्ति के जन्म से ही उसके ‘धर्म अथवा पंथ’ की पहचान अपनेआप ही चिपक जाती है । व्यक्तियों को मिलाकर राष्ट्र बनने से स्वाभाविक ही राष्ट्र के बहुसंख्यक धर्मियों के कारण वह राष्ट्र भी ‘उन धर्मियों के राष्ट्र’ के रूप में ही जाना जाता है । अमेरिका, फ्रांस, सउदी अरेबिया आदि सभी राष्ट्र उन संबंधित ‘बहुसंख्यकों के पंथियों के राष्ट्र’ के रूप में ही जाने जाते हैं । तो भारत में विभिन्न धर्म-पंथों के लोगों के रहते हुए भारत का परिचय ‘धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र’ के रूप में क्यों दिया जाता है तथा भारत के बहुसंख्यक हिन्दू धर्मियों के कारण भारत का परिचय ‘हिन्दू राष्ट्र’ के रूप में क्यों नहीं दिया जाता ? भावी हिन्दू राष्ट्र में भारत के बहुसंख्यक हिन्दू धर्मियों के कारण भारत की पहचान सदैव ‘हिन्दू राष्ट्र’ के रूप में करवाई जाएगी तथा वही सर्वथा उचित भी रहेगा !’
– (पू.) श्री. संदीप आळशी (२१.११.२०१९)