आज भारत का ७२ वां गणतंत्र दिवस ! इस उपलक्ष्य में हमें कुछ मूलभूत बातों की समीक्षा करनी चाहिए, जिससे क्या हम सचमुच लोकतांत्रिक भारत में रह रहे हैं ?, इसका हमें उत्तर मिलेगा । लोकतांत्रिक व्यवस्था साध्य होने के लिए यहां दी गई बातें बहुत ऊपरी स्तर की हैं, यहां और भी बहुत सी बातों का विश्लेषण करना संभव है; परंतु जब तक नागरिकों को उनके निवासी प्रदेश में निर्भयता एवं सुरक्षा नहीं है, वहां अन्य बातें सामान्य हैं । भारत की ८० प्रतिशत प्रजा हिन्दू है । क्या भारत में इस हिन्दू प्रजा की सत्ता है ? आज के समय में देश के विभिन्न भागों में हिन्दुओं के साथ हो रही अन्याय की घटनाएं देखी जाएं, तो प्रश्न उठता है कि क्या हम वास्तव में ‘लोकतांत्रिक’ हैं ?
संकलनकर्ता – श्री. यज्ञेश सावंत, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल
१. संविधान को स्वीकार करने के रूप में गणतंत्र दिवस !
भारत ने २६ जनवरी १९५० को संविधान को पूर्ण रूप से स्वीकार किया । ‘२६ नवंबर १९४९ को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की अध्यक्षता में गठित समिति ने स्वतंत्र भारत का संविधान तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सौंपा । उसके २ माह उपरांत अर्थात २६ जनवरी १९५० को उसे पूर्ण रूप से स्वीकार किया गया अर्थात उसका क्रियान्वयन किया गया; इसीलिए हम इस दिवस को ‘गणतंत्र दिवस’ के रूप में मनाते हैं ।
२. इस वर्ष भी आतंकवाद की छाया में ही गणतंत्र दिवस !
प्रतिवर्ष १५ अगस्त एवं गणतंत्र दिवस के दिन जैसा होता है, उसी प्रकार से इस वर्ष भी गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम पर आतंकवाद की छाया है । उत्तर भारत में कुछ विस्फोटक बरामद किए गए हैं, साथ ही आतंकियों ने तोडफोड तथा रक्तपात का षड्यंत्र रचा है ! पकडे गए आतंकियों से यह जानकारी मिली है । भारत के पूर्व सेना प्रमुख जेनरल मनोज नरवणे के बताए अनुसार सीमापार आतंकियों के ‘लाऊंच पैड’ पर (जिस स्थान पर आतंकी भारतीय सीमा में घुसपैठ करने के लिए एकत्र आते हैं, वह स्थान) ३०० से ४०० आतंकी भारत में घुसने की तैयारी कर रहे हैं । कश्मीर में आज भी चल रहा आतंकवाद तथा भारतीय सेना के साथ उनकी मुठभेड से इतने वर्ष उपरांत भी भारत आतंकवाद की छाया से दूर नहीं हो पाया है, इसकी निश्चिति होती है ।
३. संविधान के अनुसार हिन्दुओं को धर्मपालन की स्वतंत्रता नहीं है !
कुछ दिन पूर्व ही तमिलनाडु के एक कॉन्वेंट विद्यालय (ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित विद्यालय) में एक हिन्दू लडकी को ईसाई पंथ में धर्मांतरित होने के लिए बल प्रयोग (जबरदस्ती) करने के कारण उसने आत्महत्या कर ली । संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को स्वयं के धर्मपालन की स्वतंत्रता है; परंतु वह हिन्दुओं के लिए क्यों नहीं है ? ईसाईयों के विद्यालयों में हिन्दू लडकों को उनकी हिन्दू परंपरा के अनुसार तिलक लगाना, लडकियों को बिंदी लगाना, कंगन पहनना आदि पर प्रतिबंध लगाया जाता है । यह संविधान का अनादर ही है; परंतु इस विषय में कोई कुछ नहीं बोलता ।
४. हिन्दुओं को निर्भयता के साथ रहने के मौलिक अधिकार पर बंधन !
देहली, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में धर्मांधों के भय (दहशत) के कारण उनसे त्रस्त हिन्दुओं को अपना घर-बार एवं संपत्ति छोडकर पलायन करना पड रहा है । एक ओर संविधान बहुसंख्यकों एवं अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों की रक्षा करने की आश्वस्तता करता है; परंतु दूसरी ओर बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के भय (दहशत) के कारण पलायन करने की स्थिति आना क्या लोकतंत्र है ?, यदि यह प्रश्न बहुसंख्यक हिन्दुओं के मन में उठे, तो ऐसा होना स्वाभाविक है । क्या विश्व में किसी देश में ऐसा होता है ? पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में तो बहुसंख्यक मुसलमानों से अल्पसंख्यक हिन्दुओं को प्रतिदिन मार खानी पडती है तथा उनकी हत्याएं होती हैं । भारत में सबकुछ इसके विपरीत ही है । धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होते हुए भी संविधान हिन्दुओं की रक्षा क्यों नहीं कर सकता ? हिन्दुओं से सम्मान तथा शांति से जीवन-यापन करने का अधिकार ही छीना जा रहा है । ऐसा गणतंत्र किस काम का ?, ऐसा हिन्दुओं को लगता है, तो उसमें अनुचित क्या है ?
५. हिन्दुओं के आस्था के केंद्रों की रक्षा न होना !
तमिलनाडु में अभी तक सडक चौडीकरण एवं अन्य विकास कार्याें के नाम पर हिन्दुओं के सैकडों मंदिर गिराए गए हैं । इसमें केवल बहुसंख्यक हिन्दुओं के मंदिरों को ही अवैध प्रमाणित कर उन्हें गिराया जा रहा है; परंतु अन्य धर्मियों के संदर्भ में ऐसा कहीं भी दिखाई नहीं दिया । यहां यह ध्यान में आता है कि भारत का संविधान हिन्दू धर्मियों के जीवन-यापन का, उनके धर्मपालन के मौलिक अधिकार का, उनकी संपत्ति की रक्षा का, उनके आस्था के केंद्रों की रक्षा का किसी प्रकार का दायित्व लेने में असमर्थ सिद्ध हुआ है ।
६. हिन्दुओं के लिए कश्मीर में वापस जाने की स्थिति नहीं है !
अनुच्छेद ३७० भले ही रद्द कर दिया गया हो; परंतु अभी भी हिन्दुओं को कश्मीर में वापस जाने की स्थिति नहीं है । वहां अभी भी सुरक्षा बल एवं आतंकियों के मध्य मुठभेड की घटनाएं चल ही रही हैं, साथ ही वहां आतंकी किसी व्यक्ति के हिन्दू होने की पहचान कर उनकी हत्याएं कर रहे हैं । तो हिन्दू ऐसे भय के वातावरण में कैसे जी सकेंगे ?
७. वीर सावरकर का अपमान अभी भी जारी !
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर तथा उनके परिजनों का अतुलनीय योगदान रहा है । उन्होंने देश के लिए सर्वाेच्च त्याग किया है; परंतु ऐसा होते हुए भी स्वतंत्रता के उपरांत वे उपेक्षा के शिकार हुए हैं । समाचार वाहिनियों पर प्रसारित परिचर्चाओं में, जे.एन.यू. जैसे विश्वविद्यालयों में उनका अनादर करने की घटनाएं चल ही रही हैं । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यह टीका-टिप्पणी होते रहने से संबंधित लोगों को इसके लिए कठोर दंड नहीं मिलता, जिसके कारण उनका अपमान जारी है । वीर सावरकर को भारत के सर्वाेच्च नागरी सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित करने के लिए समय व्यर्थ क्यों गंवाया जा रहा है ? यह जनता की समझ में नहीं आता ।
वर्ष १९४७ में धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ है । पाकिस्तान को ‘इस्लामिक रिपब्लिक’ (इस्लामी देश) के रूप में मान्यता मिली; परंतु भारत धर्मनिरपेक्ष रह गया । तो यहां के हिन्दुओं के लिए क्या ? |