सार्वजनिक स्थान पर मूत्र-विसर्जन न करें; इस कारण लगाए गए देवी-देवताओं के चित्रों पर प्रतिबंध लगाने की मांग से संबंधित याचिका देहली उच्च न्यायालय ने रद्द कर दी !

सार्वजनिक स्थान पर मूत्र विसर्जन करना, थूकना अथवा कूडा फेंकने पर रोक लगाने के लिए भीत पर देवी-देवताओं के चित्र लगाने की कुप्रथा

नई देहली – सार्वजनिक स्थान पर मूत्र विसर्जन करना, थूकना अथवा कूडा फेंकने पर रोक लगाने के लिए भीत पर देवी-देवताओं के चित्र लगाने की प्रथा बंद करने की मांग से संबंधित जनहित याचिका देहली उच्च न्यायालय ने रद्द कर दी है ।

१. इस याचिका में कहा गया था कि लोगों को मूत्र विसर्जन करना, थूकना तथा कूडा फेंकने से रोकने के लिए भीत पर देवी-देवताओं के चित्र लगाए जाने की प्रथा ही प्रचलित हो गई है । यह भारतीय दंड संहिता की धारा ‘२९५’ तथा ‘२९५ अ’ का उल्लंघन है; क्योंकि इससे सर्वसाधारण व्यक्ति की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं । समाज के लिए यह एक गंभीर संकट है; क्योंकि ऐसे चित्र लगाने से यह प्रकरण बंद होने की कोई निश्चिति (गारंटी) नहीं है, विपरीत इसके लोग सार्वजनिक स्थानों पर लगे इन पवित्र प्रतिमाओं पर मूत्र विसर्जन करते अथवा थूकते हैं ।

२. याचिकाकर्ता एवं अधिवक्ता गौरांग गुप्ता ने कहा कि लोगों को मूत्र विसर्जन करने अथवा थूकने पर रोक लगाने के लिए भीत का उपयोग किया जाता है । किसी धर्म में श्रद्धा एवं आस्था द्वारा उपजी हुई भक्ति एवं उसके पालन की स्वतंत्रता ध्यान में लेते हुए ऐसे कृत्यों को अनुमति नहीं दी जा सकती ।

३. याचिका में कहा गया था कि उच्च न्यायालय ने इससे पूर्व के एक प्रकरण में खुले में मूत्र विसर्जन की समस्या मान्य की थी । न्यायालय ने इस विषय में दिए आदेश में कहा था कि भीत पर देवी-देवताओं की प्रतिमा चिपकाने के कारण लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं ।

संपादकीय भूमिका

हिन्दुओं को लगता है कि हिन्दुओं के देश में हिन्दुओं के देवी-देवताओं का इस प्रकार हो रहा अनादर रोकने के लिए भाजपा शासित राज्यों का अग्रसर होना आवश्यक है ।