नामजप के माध्यम से कर्म ‘अकर्म कर्म’ बनने से यथार्थ आचार-पालन कर पाना : दैनिक जीवन का प्रत्येक कृत्य नामजप सहित करनसे वह कर्म ‘अकर्म कर्म’ बनता है । प्रत्येक कृत्य ‘अकर्म कर्म’ हो, तो उसका अच्छा-बुरा कोई भी फल नहीं मिलता । इस प्रकार यथार्थ आचारपालन सम्भव होता है और ईश्वर से एकरूप हो पाते हैं ।
त्योहार एवं धार्मिक विधि के दिन एवं शुभदिन पर नए अथवा रेशमी वस्त्र एवं विविध अलंकार धारण करने से देवताओं की तरंगें ग्रहण कर पाना
‘त्योहार तथा धार्मिक विधि के दिन तथा शुभदिन पर कभी-कभी देवता सूक्ष्म रूप से भूतल पर आते हैं । उस दिन व्यक्ति का वस्त्रालंकारों से सुशोभित होना, उसके द्वारा देवताओं के आगमन का स्वागत करने के समान है । इससे देवता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और व्यक्ति देवताओं की तरंगें ग्रहण कर पाता है ।’ – ईश्वर (कु. मधुरा भोसले के माध्यम से)
साडी में र्ईश्वरीय चैतन्य होने के कारण स्त्री सात्त्विक लगती है ।
‘साडी पहनने से वायुमंडल में विद्यमान चैतन्य एवं सात्त्विकता जीव द्वारा ग्रहण होकर गोलाकार रूप में बनी रहती है तथा उनसे जीव को अधिक समय तक लाभ मिलता है ।’ – श्रीमती रंजना गौतम गडेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.