आंखों की सुरक्षा के लिए निम्नांकित बातों पर ध्यान दें !

१. संगणक पर काम करते समय आंखों का किस प्रकार ध्यान रखें ?

अ. ‘बीच-बीच में आंखों की पलकें झपकाएं ।
आ. आंखों पर निरंतर आनेवाले तनाव को कम करने हेतु २०-२०-२० का नियम उपयोग में लाएं, जिससे प्रति २० मिनट उपरांत लगभग २० फुट लंबाईवाली वस्तु की ओर २० सेकेंड तक देखें ।
इ. अक्षरों का आकार बडा रखें ।
ई. संगणक के परदे की चमक वातावरण के प्रकाश से अधिक न हो । उसी प्रकार परदे की चमक को अल्पाधिक करें । रात के समय परदे की चमक न्यून करें; अन्यथा आपकी नींद पर उसका परिणाम होगा ।
उ. माह में २-३ दिन चल-दूरभाष अथवा भ्रमणसंगणक बंद रखकर आंखों को पूर्ण विश्राम दें ।
ऊ. संगणक के लिए उपयुक्त कांचवाले चश्मे का उपयोग करें ।
ए. दो मिनट रुककर आंखों के व्यायाम करें अर्थात आजू-बाजू में अथवा ऊपर-नीचे देखें, साथ ही कुछ समय तक आंखें बंद रखें ।
ऐ. आंखों पर पानी की फुहार मारकर कुछ समय तक आंखें बंद रखें ।
ओ. आंखें गीली रहें; इसके लिए चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार आंखों में विशिष्ट प्रकार की बूंदें डालें ।
औ. संगणक के परदे से २२ से २८ की दूरी बनाकर बैठें । संगणक के बहुत पास अथवा अति दूर बैठने से आंखों पर तनाव आता है ।
अं. टंकण करते समय कलाई सीधी रेखा में बनी रहे, इसकी ओर ध्यान दें ।
क. ऊंचाई अल्पाधिक करने में सक्षम आसंदी (कुर्सी) का उपयोग करें । आपके पैर भूमि पर निरंतर टिके होने चाहिए ।
ख. ‘संगणक के परदे पर प्रकाश परावर्तित तो नहीं हो रहा है न ?, इसकी ओर ध्यान दें ।
ग. कलाई एवं हाथ भूमि से समानांतर रहे, इस प्रकार से की-बोर्ड रखें ।
घ. बीच-बीच में उठकर कुछ समय घूमें ।

२. अन्य समय पर आंखों का किस प्रकार ध्यान रखना चाहिए ?

होम्योपैथी चिकित्सक (डॉ.) प्रवीण मेहता

अ. पढते समय तथा लिखते समय दीप का प्रकाश सीधे आंखों पर न पडकर पीछे की ओर से अथवा बाईं ओर से आए, इस प्रकार से व्यवस्था करें । दिन में भी आंखें, संगणक अथवा पुस्तक पर सूर्य की किरणें सीधी न आएं, इस पर ध्यान दें ।
आ. आंखों पर तनाव आए, ऐसे अधूरे प्रकाश में, साथ ही बहुत चमकवाले प्रकाश में न पढें, न लिखें ।
इ. बहुत ही छोटे अथवा अस्पष्ट अक्षरोंवाले लेख न पढें ।
ई. तीव्र गति से चल रहे अथवा ऊपर-नीचे हो रहे वाहन से जाते समय वाचन न करें ।
उ. सीधे अथवा पेट के बल लेटकर, मेज पर झुककर पुस्तक ऊपर करके न पढें । पढते समय पुस्तक सदैव आंखों के नीचे होनी चाहिए ।
ऊ. शीर्षासन, साथ ही सर्वांगासन करने से आंखें तेजस्वी बनती हैं ।
ए. आंखों में जलन हो रही हो अथवा आंखें लाल हो रही हों अथवा थक गई हों, तो आंखें बंद कर पीठ के बल सोएं तथा शवासन करें । उसके उपरांत लंबी सांस लेकर दूरस्थ पेडों की ओर दृष्टि गडाएं । आंखों पर ठंडा पानी मारें तथा आंखें बंद कर विश्राम करें ।
ऐ. मस्तक, कान, नाक, गला, माथा, आंखें, गाल, साथ ही ठोडी के नीचे के कंठमणि का कोमल भाग, हल्के हाथ से इन सभी अंगों का मर्दन (मालिश) करें । इससे रक्ताभिसरण तीव्र गति से होकर आंखें स्वस्थ रहेंगी । ऐसा सप्ताह में न्यूनतम दो बार तो अवश्य करें ।

३. आंखों के लिए आवश्यक विशिष्ट व्यायाम

ये व्यायाम बिछावन में लेटे-लेटे, बैठकर अथवा खडे-खडे भी किए जा सकते हैं ।

अ. जितना संभव है, उतनी दूर तक, दाहिने, बाएं, ऊपर-नीचे, साथ ही चारों दिशाओं में निरंतर देखने का प्रयास करें ।
आ. तीव्र गति से आंखों की पलकें झपकाएं ।
इ. एक के पश्चात दूसरी आंख खोलें, अर्थात एक आंख बंद कर दूसरी खोलें । यह क्रिया तीव्र गति से करें ।
ई. दोनों आंखों को क्षितिज की ओर स्थिर रखकर उन्हें वृत्ताकार घुमाएं ।
उ. रात खुले में सोएं तथा सोते-सोते आंखों में पानी आने तक दूर आकाश में चंद्रमा, तारों की ओर बिना पलक झपकाए देखें ।
ऊ. पैदल चलते समय दूर के पेड पर, घर पर, बिजली के खंभे पर दृष्टि रखते हुए चलने का अभ्यास करें । इससे आंखों का तेज बढता है ।

४. आंखों की बीमारियां तथा उसके लिए होम्योपैथी की औषधियां

अ. सिलाई का काम करने से, छोटे अक्षर पढने से, संगणक पर लंबे समय तक काम करने से आंखों पर तनाव आकर सिरदर्द होना तथा आंखें लाल होकर गर्म होना – ‘रूटा ३० अथवा २००’
आ. अकस्मात आंखों में संक्रमण होना, आंखों से बहुत बहाव होकर पलकों में सूजन आना, पीडा होना; रात में, गर्म हवा में पीडा अधिक होना तथा खुली हवा में अच्छा लगना – ‘एकोनाइट ३०’
इ. आंख को चोट लगने से आंख में सूजन आना तथा आंख के आसपास की त्वचा काली पडना – ‘अर्निका ३०’
ई. आंख में सूजन आना; परंतु आंखों से पानी न आना, आंखों की पलकें लाल होना, आंखों की पुतलियां बडी होना तथा रात के समय कष्ट बढना – ‘बेलाडोना ३०’
उ. आंखों में पीडा होकर आंखें लाल होना, आंखों में जलन होना, आंखों से जलनभरा बहाव होना, आंखें खोलने में कष्ट होना, मध्यरात्रि के उपरांत यह कष्ट बढ जाना, गर्म सेंकने पर अच्छा प्रतीत होना – ‘आर्सेनिक आल्ब ३०’
ऊ. आंखों में सूजन आकर आंखें खोलने में कठिनाई होना, कटने जैसी पीडा होना तथा आंखों से पीप आना – ‘मर्क्यूरीस सोल ३०’
ए. आंखों में संक्रमण होना, पलकों में सूजन आकर उनमें जलन होना, आंखों से निरंतर पानी आना, सायंकाल में तथा कक्ष में रहते समय आंखों से पानी बहने का स्तर बढना, अंधेरे में तथा खुली हवा में अच्छा प्रतीत होना – ‘यूफ्रेशिया ६ अथवा ३०’
ऐ. दो-दो वस्तुएं दिखाई देना, पुतलियों में सूजन आकर पीडा होना -‘जल्सेमियम ३०’
ओ. आंखों से गाढा पीला बहाव होना, सवेरे जागने के उपरांत पलकें एक-दूसरे से चिपकना, आंखें मलने से पलकों का चिपकना बढ जाना, खुली हवा में अच्छा लगना – ‘पल्सेटिला ६ अथवा ३०’
औ. आंख में कुछ जाने से आंख में सूजन आना – ‘सिलिशिया ३०’

५. आंखों की बीमारियां तथा उनके लिए उपयुक्त बाराक्षार औषधियां

अ. आंख के किसी भी भाग में जलन; परंतु पीप न होना अथवा बहाव न होना; पीडा, आंखों की गतिविधि करने से पीडा बढना । आंखों में जलन होना, आंखें लाल होना, ‘पलक के नीचे रेत के कण हैं’, ऐसा लगना, दृष्टि जाना, पढते समय अक्षर धुंधले दिखाई देना, दाहिनी आंख की निचली पलक पर अंजनहारी आना, ठंडे पानी के स्पर्श से अच्छा प्रतीत होना, आंखें सूख जाना – ‘फेरम फॉस ६x’
आ. आंखों से श्वेत, पीला अथवा हरा बहाव होना; ‘आंखों में रेत के कण घुस गए हैं’, ऐसा लगना, आंख की पुतली के पर्दे में (Cornea) खरोंच आना, जीभ पर तरल श्वेत परत आना, मोतियाबिंद, प्रकाश सहन न होना तथा आंखों से निरंतर पानी आना – ‘काली मूर ६x’
इ. धुंधला दिखाई देना, ‘आंखों में रेत अथवा लकडी गई है’, ऐसा लगना, आंखों के सिरों में सूजन आना, प्रकाश सहन न होना तथा आंखों में जलन होना – ‘काली फॉस ६x’
ई. आंख की पलक पर पीली सी पपडी आना, आंखों से हरा तथा पीला बहाव आना तथा आंखों की पुतली के पर्दे में सूजन आना – ‘काली सल्फ ६x’
उ. पलकें नीचे आना (drooping), प्रकाश सहन न होना, पुतलियां छोटी होना, आंखों के सामने रंग, चिंगारियां दिखना; पलकों का जोर से फडकना तथा दो वस्तुएं दिखाई देना – ‘मैग फॉस ६x’
ऊ. आंखों से पानी रिसना, आंखों की मासपेशियों में तनाव आना, आंखों की पुतलियों के पर्दे पर फोडा आना, आंखों से पानी जैसा चिकना बहाव होना, अंजनहारी आना, काचबिंद होना – ‘नेट्रम मूर ६x’
ए. आंखों की जलन; आंखों से सुनहरा, पीला तथा मलईदार बहाव होना; सवेरे पलकों का एक-दूसरे से चिपकना, अांखों से जलनभरा पानी बहना, आंखें रक्त के समान लाल होना, दृष्टि अल्प होना, ‘आंखों के सामने पर्दा आया है’, ऐसा लगना तथा आंखों से सामने चिंगारियां दिखाई देना – ‘नेट्रम फॉस ६x’
ऐ. आंखों की पलक पर पीडा होना, पलकों के अंदर की परत (Conjunctiva) पीली हो जाना, आंखों में जलन होना तथा उसके साथ आंखों से जलनभरा पानी बहना, आंखों के सिरों में जलन होना – ‘नेट्रम सल्फ ६x’
ओ. पलक पर अंजनहारी होना, अंजनहारी में पीप हो, तो सहजता से उसकी निकासी होने के लिए गर्म सेंक देने पर अच्छा प्रतीत होना, बार-बार अंजनहारी आना, पैरों पर आनेवाला पसीना अन्य औषधियों से बंद होकर उसके फलस्वरूप मोतियाबिंद होना – ‘सिलिशिया ६x’
औ. मोतियाबिंद का विकास रोकने में उपयुक्त, छोटे बच्चों में दांत आते समय होनेवाली आंखों की सूखी जलन (इसमें आंखों से पानी नहीं आता), प्रकाश सहन न होना, आंखों की पुतलियों के पर्दे की पारदर्शिता अल्प होना (Corneal opacity) – ‘कल्केरिया फॉस ६x’
अं. आंखों की पुतली में खरोंच आना, नेत्रजलन, आंखों से गाढा श्वेत बहाव होना, ‘आंखों में कुछ गया है’, ऐसा लगना – ‘कल्केरिया सल्फ ६x’
क. आंखों के सामने चिंगारियां दिखाई देना, आंखों पर तनाव देने से धुंधला दिखाई देना – ‘कल्केरिया फ्लोर ६x’

६. औषधियों की मात्रा

६. अ. होम्योपैथी की औषधियां लेने की मात्रा : ‘३० अथवा २०० पोटेंसी’ की २ बूंदें ३ बार लें अथवा दिन में ३ बार ३ गोलियां लें ।
६. आ. बाराक्षार औषधियां लेने की मात्रा : ‘६x पोटेंसी’ की ४ गोलियां दिन में ३ बार लें ।

संकलनकर्ता : होम्योपैथी चिकित्सक (डॉ.) प्रवीण मेहता, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (११.३.२०२०)