आवश्यकता से अधिक भोजन करने से होनेवाली हानि !
अतिमात्रं पुनः सर्वान् आशु दोषान् प्रकोपयेत् ।
– अष्टांगहृदय, सूत्रस्थान, अध्याय ८, श्लोक ४
अर्थ : अति मात्रा में लिया गया आहार तुरंत ही वात, पित्त एवं कफ, इन तीनों दोषों में प्रकोप लाता है । दोषों के प्रकोप का अर्थ है उनकी समानाव्यस्था का बिगडना तथा बीमारी उत्पन्न होने का आरंभ !
सायंकाल के भोजन के उपरांत रात को सोने तक भूख लगने पर क्या करें ?
राजगिरा का लड्डू; खील; चने; चावल, गेहूं आदि के भुने हुए (तंदूर में फुलाए हुए) पोहे अथवा भूने हुए अनाज से बनाए जानेवाले पदार्थ, भूख का शमन हो इतनी मात्रा में ही खाएं । भोजन की मात्रा तथा समय उचित हो, तो रात को सोने तक भूख नहीं लगती; इसलिए उसे उचित रखने का प्रयास करें । रात को सोने से पूर्व भूख लगे, तो उस समय चॉकलेट; तीखा, चटपटा, तले हुए पदार्थ आदि न खाएं ।
भोजन उचित मात्रा में होने का लक्षण !
मात्रा प्रमाणं निर्दिष्टं सुखं यावत् विजीर्यति ।
– अष्टांगहृदय, सूत्रस्थान, अध्याय ८, श्लोक २
अर्थ : आहार लेने पर बिना कोई कष्ट से उसका पाचन हुआ, तो उस आहार की मात्रा उचित है, ऐसा मान लें ।
हम दिन में २ अथवा ३ बार आहार लेते हों, तो एक बार आहार लेने पर दूसरी बार आहार लेने तक पेट में भारीपन लगना, आलस आना, नींद आना अथवा पेट खाली लगना, तुरंत भूख लगना, थकान होना आदि किसी प्रकार के लक्षण दिखाई नहीं दिए तथा अगले आहार के समय में यथोचित भूख लगे, तो आहार की मात्रा उचित है, ऐसा मान लें । वैसा नहीं हुआ, तो आहार की मात्रा उचित नहीं है; इसे ध्यान में लेकर उसे ठीक करने का प्रयास करें ।
भोजन की यथोचित मात्रा !
गुरूणाम् अर्धसौहित्यं लघूनां नातितृप्तता ।
– अष्टांगहृदय, सूत्रस्थान, अध्याय ८, श्लोक २
अर्थ : पाचन के लिए भारी पदार्थ, आधा पेट खाली रहे इतनी मात्रा में ही खाएं । पाचन के लिए हल्के पदार्थ मन तृप्त होने तक खाएं; परंतु अति तृप्त होने तक न खाएं । (भोजन करते समय पेट के २ भागों तक ही अन्न का सेवन करें । तीसरा भाग पानी के लिए तथा चौथा भाग वायु के लिए खाली रखें ।)
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