१. रात में जागरण करने से शरीर की धातुओं में सूखापन बढता है । उसके कारण शरीर में स्थित जलीय अंश के अर्थात आप महाभूत के अंश क्षीण हो जाते हैं ।
२. शरीर में स्थित आप महाभूत अग्नि का (पाचनशक्ति का) नियमन करता है । आप महाभूत क्षीण होने से अग्नि बिल्कुल अनियंत्रित हो जाती है तथा पाचन के समय उसमें संग्रहित अन्न को वह जला डालती है । उसके कारण जली हुई डकारें आती हैं । पाचन दूषित होने से अग्नि को मिलनेवाला पोषण क्षीण होता है । उसके कारण अग्नि धीमी हो जाती है । इसके फलस्वरूप पाचन पुनः दूषित होता है । खाए हुए अन्न का ठीक से पाचन न होने से वह उतरने लगता है और उससे खट्टी डकारें आने लगती हैं । इसे ‘पित्त होना’ अथवा ‘आम्लपित्त’ कहते हैं । निरंतर ऐसा होने से अन्नरस (सेवन किए आहार का पाचन होने पर उससे शरीर में रिसनेवाला रस) खट्टा हो जाता है । ऐसे अन्नरस से शरीर का पोषण होने से शरीर में स्थित सभी धातुओं को ही आम्लता प्राप्त होती है । इसके कारण शरीर में गरमी प्रतीत होना, शरीर सुस्त पड जाना, आंखों के सामने अंधेरा छा जाना, चक्कर आना, शरीर में खुजली होना, त्वचा पर पित्त के चकत्ते आना, रक्त में स्थित हिमोग्लोबिन का अल्प होना, शरीर के विभिन्न स्थानों पर फोडे आना, सूजन होना, हड्डियों का घिस जाना, थकान होना आदि विकार होने लगते हैं ।
३. शरीर में स्थित आप महाभूत क्षीण होने से मल में स्थित जलीय अंश भी क्षीण हो जाता है । उसके कारण उसका आगे बढना धीमा पड जाता है । मल शुष्क होने पर वह वहीं रुका रहता है और उससे कब्ज उत्पन्न होता है । शरीर में सिर से लेकर पैरों तक निरंतर वात प्रवाहित रहता है । मल के रुके रहने से वात के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होकर वह उल्टा घूमने लगता है । इस प्रकार उल्टा घूमनेवाली वायु जब पेट में प्रवेश करती है, तो वहां पाचन हो रहे अर्थात अग्नि से युक्त अन्न ऊपर की दिशा में ढकेलने लगता है । उसके कारण छाती अथवा गले में जलन होती है । वायु के पेट में घूमने से उदरशूल होने लगता है । इसी को ‘वायुगोला’ अथवा ‘उदर का गुल्म’ कहते हैं ।
शरीर में इस वायु के जाने से हृदय की बीमारियां; फेफडों में जाने से दमा अथवा खांसी जैसी श्वसनतंत्र की बीमारियां; आंखों में जाने पर आंखों से संबंधित बीमारियां; मस्तक में जाने से मस्तकशूल अथवा सिर की नसों में जाने के कारण यदि वहां कोई नस फट जाती है, तो उससे मस्तिष्क में आंतरिक रक्तस्राव होकर पक्षाघात जैसी बीमारियां हो सकती हैं ।
इस प्रकार से प्रतिदिन का जागरण अनेक बीमारियों का कारण बन सकता है । जब तक जागरण करना बंद नहीं हो जाता, तब तक ये बीमारियां चलती ही रहती हैं । इसलिए इन बीमारियों को दूर कर शरीर को स्वस्थ रखना हो, तो उसके लिए जागरण टालना ही चाहिए ।
युवावस्था में अथवा शरीरबल के अच्छे रहने तक तो जागरण चल जाता है; परंतु ऐसा निरंतर होता रहा, तो उससे शरीरबल क्षीण हो जाता है और उससे उक्त अथवा अन्य बीमारियां भी उत्पन्न होने लगती हैं; इसलिए रात में जागरण करना गंभीरतापूर्वक टालना चाहिए ।
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