कब होती है छठ पूजा ?
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है । यह चार दिवसीय त्योहार होता है, जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है । इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है । इसके अतिरिक्त चैत्र माह में भी यह पर्व मनाया जाता है, जिसे चैती छठ कहते हैं । इस पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है । छठी माता बच्चों की रक्षा करती हैं । यह पूजा संतान प्राप्ति की इच्छा से भी की जाती है । इसे विशेषतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड एवं नेपाल में मनाया जाता है ।
छठ पूजा की कथा का इतिहास
त्रेतायुग में भगवान राम जब माता सीता से स्वयंवर कर घर लौटे थे और उनका राज्याभिषेक किया गया, उसके पश्चात उन्होंने पूरे विधान के साथ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पूरे परिवार के साथ यह पूजा की थी । तभी से इस पूजा का महत्त्व है । द्वापरयुग में जब पांडव ने अपना सर्वस्व गंवा दिया था, तब द्रौपदी ने इस व्रत का पालन किया । वर्षाें तक इसे नियमित करने पर पांडवों को उनका सर्वस्व वापस मिला था ।
इसकी पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है ।
बहुत समय पहले एक राजा-रानी हुआ करते थे । उनकी कोई संतान नहीं थी । राजा इससे बहुत दुःखी थे । महर्षि कश्यप उनके राज्य में आए । राजा ने उनकी सेवा की । महर्षि ने आशीर्वाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई; परंतु उनकी संतान मृत जन्मी, जिसके कारण राजा-रानी अत्यंत दुःखी थे और दोनों ने आत्महत्या का निर्णय लिया । जैसे ही वे दोनों नदी में कूदने लगे, उन्हें छठी माता ने दर्शन दिए और कहा, ‘आप मेरी पूजा करें जिससे आपको संतान प्राप्ति अवश्य होगी ।’ राजा-रानी ने विधि-विधान से छठी माता की पूजा की और उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई । तब से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पूजा की जाती है ।
छठ पूजा व्रत की विधि
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे सबसे बडा त्योहार मानते हैं । इसमें गंगा स्नान का महत्त्व सबसे अधिक है । यह व्रत स्त्री एवं पुरुष दोनों करते हैं । यह चार दिवसीय त्योहार है जो इस प्रकार मनाया जाता है –
पहला दिन : नहाय खाय
यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को होता है । इस दिन सूर्र्याेदय के पूर्व पवित्र नदियों में स्नान करने के पश्चात ही भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू (लौकी) खाने का विशेष महत्त्व पुराणों में है । इस दिन कद्दू (लौकी) के साथ चने की दाल और अरवा चावल खाने का विशेष महत्त्व पुराणों में है ।
दूसरा दिन : खरणा
दूसरे दिन सवेरे से निर्जला उपवास कर सायंकाल को रोटी एवं गुड की खीर बनाकर घर के अन्य लोगों को प्रसाद वितरित कर व्रत करनेवाले स्वयं भी उसे ग्रहण करते हैं ।
तीसरा दिन :
डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पण इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पण करते हैं, प्रात:काल स्नान कर प्रसाद (‘ठेकुआ’) बनाते हैं । इस प्रसाद को बनानेवाले सभी निर्जला रहकर ही बनाते हैं । तदुपरांत बांस या पीतल के सूप में, मौसम में उपलब्ध सभी फलों के साथ ठेकुआ रखकर बांस की बडी सी टोकरी में रख नदी अथवा तालाब पर जाते हैं । वहां व्रती नदी में भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर लौट आते हैं ।
चौथा दिन : सूर्य को अर्घ्य देना
इस दिन प्रात: चार बजे पुन: नदी पर जाकर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर लौट आते हैं । (संदर्भ : वेबसाइट)
छठ व्रत के नियम
इसमें स्वच्छ, नए एवं बिना सिले वस्त्र पहने जाते हैं, जैसे महिलाएं साडी एवं पुरुष धोती पहनते हैं । इन चार दिनों में प्याज, लहसुन एवं मांस-मछली का प्रयोग निषिद्ध है ।