उबटन रजोगुणी एवं तेजतत्त्व से संबंधित है, इसलिए उसे शरीर पर लगाते समय दक्षिणावर्त अर्थात घडी की सुइयों की दिशा में हाथों की उंगलियों के अग्रभाग का शरीर से स्पर्श करते हुए थोडा दबाव देकर लगाएं । प्रत्येक स्थान पर उबटन लगाने की पद्धति वहां की रिक्ति की कष्टदायक वायु की गति अनुसार दी है ।
१. स्वयं को उबटन लगाना
अ. मस्तक : मस्तक पर लगाते समय बीच की तीन उंगलियों का उपयोग करते हुए बाईं ओर से दाईं ओर उबटन लगाएं । पुनः इसी प्रकार से ही उबटन लगाएं । दाईं ओर से बाईं ओर विपरीत दिशा में उंगलियां न फेरें । उलटी दिशा में हाथ घुमाने से कष्टदायक स्पंदन निर्माण होते हैं । उबटन लगाते समय थोडा रुककर पुनः बाईं ओर से दाईं ओर उबटन लगाएं । भालप्रदेश की रिक्ति में एकत्रित हुई कष्टदायक स्पंदनों की गति बाईं ओर से दाईं ओर होती है । उसी दिशा में उबटन लगाने से ये कष्टदायक स्पंदन कार्यरत होते हैं और उबटन द्वारा उनका विघटन होता है ।
आ. भालप्रदेश के दोनों ओर भौंहों के बाहरी सिरों के पास : इस स्थान पर उंगलियों के अग्रभाग से बाईं ओर से दाईं ओर उबटन लगाते समय नीचे से ऊपर की ओर उंगलियां घुमाएं और दाईं ओर से बाईं ओर लगाते समय ऊपर से नीचे की ओर उंगलियां घुमाएं । इस प्रकार उबटन लगाते समय उंगलियोें से मलते हुए लगाएं । इस स्थान पर कष्टदायक तरंगें सुप्तावस्था में होती हैं । इन तरंगों का दोनोें ओर वहन होने के कारण दोनोें ओर घर्षण कर वहां के कष्टदायक स्पंदनों को नष्ट करें ।
इ. नाक : दाएं हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी से नाक के दोनोें ओर ऊपर से नीचे तक उबटन लगाएं और उबटन सूंघें । उबटन द्वारा तेज से संबंधित सुगंध प्रक्षेपित होती है । उबटन को सूंघने से यह सुगंध फेफडोें की वायुकोषिकाओं में प्रवेश करती है । इससे वहां पर बना कष्टदायक शक्ति का आवरण नष्ट होने में सहायता मिलती है ।
ई. मुख का ऊपरी भाग : नाक के नीचे बीच की तीन उंगलियां रख आरंभ कर अपनी बाईं ओर से दाईं ओर, दक्षिणावर्त अर्थात घडी की सुइयों की दिशा में मुख पर, अर्थात ठोडी के गड्ढे से ऊपर अपनी बाईं ओर जाकर मुख के चारोें ओर गोल पूरा कर उबटन लगाएं ।
उ. गाल की रिक्ति : इस केंद्रबिंदु में अनेक उत्सर्जनयोग्य अर्थात त्याज्य वायु घनीभूत रहती है इसलिए दोनों गालों के मध्य से आरंभ कर उंगलियां आंखें, कान और उसके उपरांत नीचे की ओर गोलाकार घुमाते हुए दक्षिणावर्त अर्थात घडी की सुइयों की दिशा में उंगलियों के अग्रभागों से गालों पर उबटन लगाएं । इससे गालों के भीतर की रिक्ति में घनीभूत कष्टदायक स्पंदन कार्यरत होते हैं और उसी स्थान पर उनका विघटन होने में सहायता मिलती है ।
ऊ. कर्णपालि : इसे तर्जनी और अंगूठे के बीच में पकडकर वहां मलकर उबटन लगाएं ।
ए. दोनों कान : दोनों कानों को हाथों से पकडकर कान के पीछे केवल अंगूठा रखकर नीचे से ऊपर घुमाएं ।
ऐ. गर्दन : गर्दन के पीछे मध्यभाग से दोनों हाथों की उंगलियां सामने विशुद्धचक्र तक लाएं ।
ओ. छाती एवं पेट का मध्यभाग : दाइं हथेली से छाती की मध्यरेखा पर नीचे नाभि की ओर उबटन लगाएं । ऐसा करने से चक्र जागृत होते हैं । तदुपरांत दोनों हाथों की उंगलियां छाती की मध्यरेखा पर आएं, इस प्रकार ऊपर से नीचे की ओर एक ही समय दोनों हाथों को घुमाएं ।
औ. बगल से कमर तक : बगल से कमर तक उबटन लगाते समय शरीर के एक ओर अंगूठा एवं दूसरी ओर अन्य चार उंगलियां रखकर ऊपर से नीचे तक हाथ फेरें ।
अं. पैर एवं हाथ : हाथों की उंगलियों से हाथों और पैरों पर ऊपर से नीचे की ओर उबटन लगाएं । पांव एवं पैरों की संधि पर अंगूठे एवं तर्जनी से गोल कडे समान पकडकर रगडें ।
क. सिर के मध्यभाग में : सिर पर तेल लगाकर, दक्षिणावर्त अर्थात घडी की सुइयों की दिशा में हाथ घुमाएं ।
२. दूसरे व्यक्ति को उबटन लगाना
अ. पीठ : दूसरे व्यक्ति की पीठ पर उबटन लगाते समय पीठ की रीढ की रेखा के पास, दोनों हाथों की उंगलियों का अग्रभाग आए इस प्रकार रखकर ऊपर से नीचे की दिशा में दोनों हाथ एक साथ घुमाएं ।
आ. कमर : दूसरे व्यक्ति को लगाते समय कमर की आडी रेखा से पीठ की ओर उसके बाईं ओर से दांईं ओर आकर पुन: बाईं ओर से दांईं ओर जाएं । ऐसे बार-बार लगाएं ।
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ (३.१०.२००६)