१. तिथि : कार्तिक अमावस्या
२. सामान्यतः अमावस्या अशुभ मानी जाती है; यह नियम इस अमावस्या पर लागू नहीं होता है । यह दिन शुभ माना जाता है; परंतु समस्त कार्यों के लिए नहीं । अतः इसे शुभ कहने की अपेक्षा आनंद का दिन, प्रसन्नता का दिन कहना उचित होगा ।
२. इतिहास
इस दिन श्रीविष्णु ने लक्ष्मी सहित सर्व देवताओं को बलि के कारागृह से मुक्त किया एवं उसके उपरांत ये सर्व देवता, क्षीरसागर में जाकर सो गए, ऐसी कथा है ।
३. त्योहार मनाने की पद्धति
‘प्रातःकाल में मंगलस्नान कर देवपूजा, दोपहर में पार्वणश्राद्ध एवं ब्राह्मणभोजन और संध्याकाल में (प्रदोषकाल में) फूल-पत्तों से सुशोभित मंडप में लक्ष्मी, श्रीविष्णु इत्यादि देवता एवं कुबेर की पूजा, यह इस दिन की विधि है ।
३ अ. लक्ष्मीपूजन
एक चौकी पर अक्षत से अष्टदल कमल अथवा स्वस्तिक बनाकर उसपर लक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना करते हैं । कुछ स्थानों पर कलश पर ताम्रपात्र रखकर उसपर लक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना करते हैं । लक्ष्मी के समीप ही कलश पर कुबेर की प्रतिमा रखते हैं । उसके पश्चात लक्ष्मी इत्यादि देवताओं को लौंग, इलायची एवं शक्कर डालकर बनाए गए गाय के दूध से बने खोये का नैवेद्य चढाते हैं । धनिया, गुड, चावल की खीलें, बताशा आदि पदार्थ लक्ष्मी को चढाकर तत्पश्चात आप्तेष्टों में बांटते हैं ।
३ आ. श्री लक्ष्मीदेवी से की जानेवाली प्रार्थना
लक्ष्मीपूजन के समय वर्षभर आय-व्यय लेखा की बही श्री लक्ष्मी के समक्ष रखें एवं उनसे प्रार्थना करें, ‘हे लक्ष्मी ! आपके आशीर्वाद से प्राप्त धन का उपयोग हमने सत्कार्य एवं ईश्वरीय कार्य के लिए किया है । उसका लेखा-जोखा आपके सामने रखा है । आप अपनी सहमति दें ! अगले वर्ष भी हमारे कार्य व्यवस्थित निपट जाएं !
३ इ. श्री लक्ष्मी एवं कुबेर का पूजन
लक्ष्मी संपत्ति की देवता हैं; जबकि कुबेर संपत्ति-संग्राहक हैं । कई लोग धनप्राप्तिकी कला तो साध्य करते हैं; परंतु उसे संजोकर रखने की कला ज्ञात न होने के कारण, उनसे अनावश्यक व्यय होकर धन शेष नहीं रहता । सारांश में, धन प्राप्त करने की अपेक्षा उसे संजोना, संभालना एवं यथोचित खर्च करना अधिक महत्त्वपूर्ण है । ‘धन को कैसे संभालना चाहिए’, यह कुबेर देवता सिखाते हैं; क्योंकि वे धनाधिपति हैं । इसलिए इस पूजा हेतु लक्ष्मी एवं कुबेर देवताओं का उल्लेख है । समस्त लोग, विशेषतः व्यापारी, यह पूजा बडे उत्साह से एवं ठाट-बाट से करते हैं ।
३ ई. श्री लक्ष्मीपूजन के दिन श्री लक्ष्मी का तत्त्व आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां बनाना
३ ए. अहंभाव एवं मलिनता नष्ट करने हेतु श्री लक्ष्मी एवं श्री सरस्वती का पूजन करना
३ ऐ. हाथ में मशाल लेकर पितृ-मार्गदर्शन करते हैं । (दक्षिण दिशा की ओर बत्ती दिखाकर पितृ-मार्गदर्शन करते हैं ।) ब्राह्मणों को एवं अन्य क्षुधापीडितों को भोजन करवाते हैं ।
४. अलक्ष्मी निःसारण
१. महत्त्व : यद्यपि गुणों की निर्मिति की हो, फिर भी उन्हें महत्ता तब प्राप्त होती है जब दोष नष्ट होते हैं । यहां लक्ष्मी प्राप्ति का उपाय बताया, उसी प्रकार अलक्ष्मी का नाश भी होना चाहिए; अतः इस दिन नए झाडू का विक्रय करते हैं । इसे ‘लक्ष्मी’ कहते हैं ।
२. कृति : ‘नए झाडू से मध्यरात्रि घर का कूडा सूप में भरकर बाहर फेंकना चाहिए, ऐसा कहा गया है । इसे अलक्ष्मी (कचरा – दारिद्र्य) निःसारण कहते हैं । सामान्यतः रात को कभी भी घर नहीं बुहारते और न ही कूडा फेंकते हैं; केवल इसी रात यह करना चाहिए । कूडा निकालते समय सूप बजाकर भी अलक्ष्मी को खदेड देते हैं ।