चीन पिछले कुछ वर्षाें से अधिकाधिक आक्रामक नीति अपनाकर अपने भूमि के विस्तार के लिए निरंतर प्रयासशील है । दो वर्ष से डोकलाम में, साथ ही पहले लद्दाख में चीन शरारतें करता आया है । अब वह पडोस के ताइवान पर भी आक्रमण करने की रणनीति बना रहा है । उसमें वह भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना अधिकार जताता आया है । इस पृष्ठभूमि पर चीन को परास्त करने के लिए क्या करना आवश्यक है, इसका विश्लेषण करनेवाला (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन का यह लेख हमारे पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहे हैं ।
१. चीन-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर चीन की ओर से निर्माणकार्य करने का वीडियो प्रसारित होना
‘अरुणाचल प्रदेश के लांग्जू प्रदेश के पास की एक घाटी में चीनी सेना निर्माणकार्य कर रही है, ऐसा एक वीडियो प्रसारित हो रहा है । यह वीडियो भारतीय सीमा में रहनेवाले नागरिकों ने बनाया है । उन्हें चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश-चीन सीमा पर निर्माणकार्य करते हुए दिखाई दिए । संभवतः वे हेलिपैड (हेलिकॉप्टर उतारने का स्थान) बना रहे होंगे, ऐसा भी समाचार सामने आ रहा है । हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह चित्रीकरण ११ अगस्त को किया गया है । अरुणाचल प्रदेश राज्य वहां पर स्थित विभिन्न घाटियों के कारण विभाजित हुआ है । आज का यह वीडियो सुबानसिरी घाटी में स्थित लांग्जू का है तथा वह क्षेत्र विवादित है; क्योंकि चीन और भारत दोनों भी उस पर दावा कर रहे हैं । अब मिले समाचार के अनुसार वहां चीनी सेना कुछ निर्माणकार्य कर रही है । उस क्षेत्र में भारत का अंतिम गांव चांगलगम है । वहां के भारतीय नागरिकों का यह कहना है, भारतीय सेना उनके पशुओं को सीमातक जाने की अनुमति नहीं देती; इसलिए उन्होंने दूर से ही यह चित्रीकरण किया है ।
२. अरुणाचल प्रदेश में यातायात और मूलभूत सुविधाओं का अभाव होने से लोगों को समस्या होना
वर्ष १९६२ से पूर्व भारतीय नागरिक तिब्बत जाते थे । वहां के लोगों के साथ उनका व्यापार चलता था । वहां मांस, ‘याक’ पशुओं की चमडी आदि वस्तुओं का व्यापार होता था । वहां सेना तैनात होने से आगे जाना संभव नहीं होता था । वहां के नागरिकों के मत के अनुसार मूलभूत सुविधाओं का अभाव है । उदा. वहां चिकित्सालय तो हैं; परंतु डॉक्टर नहीं हैं; क्योंकि वहां के दुर्गम क्षेत्रों में डॉक्टर जाने के लिए तैयार नहीं होते । दूसरी बात यह कि वहां ‘इंटरनेट’ की सुविधा भी नहीं है; क्योंकि वहां के छोटे-छोटे गांवों को ‘इंटरनेट’ की आपूर्ति करना सरल नहीं होता । वहां सडकें नहीं होती, जिससे भारतीय सेना को वहां जाने के लिए बहुत समय लग सकता है । आज के समय में ‘बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन’ इन सडकों का निर्माण कर रहा है; परंतु उनके निर्माण की गति बहुत ही अल्प है । उसकी तुलना में चीन की सडकें खाडीतक अथवा सीमातक आ पहुंची हैं; परंतु भारतीय सडकें अभी भी सीमा से २० से २५ किलोमीटर दूर हैं ।
३. भारत ने स्थानीय नागरिकों को सीमातक जाने की अनुमति दी, तो उनके द्वारा सीमा पर ध्यान रखा जाएगा !
एक वीडियो के कारण चीन के अतिक्रमण की जानकारी मिलना उचित नहीं है । भारत का तंत्र चीनी सीमा पर उपग्रह एवं ड्रोन की सहायता से दृष्टि रखे हुए हैं । यह विवादित क्षेत्र होने से भारत चीन को रोकने का प्रयास नहीं करता; परंतु यह सत्य है कि भारत को कान और आंखें खुली रखनी पडेंगी । इसके लिए भारत को स्थानीय किसानों, मवेशियों अथवा नागरिकों को सीमातक जाने की अनुमति देनी चाहिए । उसके कारण वे सीमा पर दृष्टि रख सकेंगे । सरकार भारतीय नागरिकों को आगे जाने से न रोके ।
४. चीन के अतिक्रमण का उचित उत्तर देने के लिए भारत-चीन सीमा पर बहुआयामी योजनाएं चलाना आवश्यक !
भारतीय सडकनिर्माण की गति बढानी होगी । इसके अतिरिक्त उस क्षेत्र के भारतीय गांवों को सभी सुविधाएं मिलनी चाहिएं । पिछले बजट में यह घोषणा की गई थी कि भारत सीमा के पास अनेक गांव बंसानेवाला है । उसके अनुसार इस क्षेत्र में भारत की ओर की ओर से आदर्श गांव बसाने का प्रयास किया जा रहा है । उसकी गति भी चीन से अधिक होना आवश्यक है । चीन आक्रामक देश होने के कारण वह भारत को त्रस्त करने का प्रयास करता ही रहेगा । उसका तुरंत उत्तर देना हो, तो उस क्षेत्र में यातायात की सुविधाएं बढानी पडेंगी । इसके साथ ही भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सैनिकों, साथ ही ‘बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन’के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को सभी सुविधाएं देकर वहां बंसने के लिए कह सकते हैं । उससे भारतीय भूमि पर हो रहे आक्रमण की जानकारी निरंतर मिलती रहेगी । संक्षेप में कहा जाए, तो भारत को बहुआयामी योजना बनानी चाहिए । जिससे भारत चीन के अतिक्रमण का उचित उत्तर दे पाएगा ।’
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे