‘पूर्वाग्रह, राग, भय के समान मूलभूत स्वभावदोषों के कारण अधिकांश लोगों के लिए खुलकर बात करना असहज रहता है । कुछ लोगों के मन में अनेक वर्षाें के प्रसंग तथा उस संबंधी भावनाएं रहती हैं । यदि मन में किसी भी प्रकार के विचार संगठित हुए, तो उसका परिणाम देह पर होता है तथा विभिन्न शारीरिक कष्ट आरंभ होते हैं । खुलकर बात करने से मन में इकट्ठा हुई भावनाओं को मार्ग मिलता है तथा मन हल्का होता है । मन पर आनेवाला तनाव न्यून होता है । साथ ही मुख भी आनंदी दिखाई देता है । अतः मन खोलकर बात करना, यह एक महान औषध है ।’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२३.८.२०२२)