आंध्र प्रदेश सरकार की साहूकारी (दादागिरी) !

आंध्र प्रदेश में जब से हिन्दूद्वेषी सरकार सत्ता में आई है, तब से वहां हिन्दुओं पर हो रहे आघातों की शृंखला रुकने का नाम नहीं ले रही है । वहां के हिन्दुओं तथा मंदिरों पर हो रहे आक्रमणों से लेकर हिन्दुओं के साथ भेदभाव करने जैसे अनेक आघात निरंतर हो रहे हैं । कुछ दिन पूर्व इस हिन्दूद्वेषी सरकार ने ‘राज्य के मंदिर उनकी आवर्ति जमाओं (फिक्स डिपॉजिट) को तोडकर धर्मादाय विभाग के लंबित शुल्क का भुगतान करें’, यह फतवा जारी किया है एवं इस सरकार ने चेतावनी दी है कि मंदिरों ने इस शुल्क का भुगतान नहीं किया, तो अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी । क्या इस सरकार ने कभी मस्जिदों और चर्च पर इस प्रकार से ‘जिजिया कर’ लगाया है ? यह सरकार की साहूकारी नहीं है, तो और क्या है ?
जगनमोहन रेड्डी सरकार के सत्ता में आने से लेकर अर्थात ३० मई २०१९ के उपरांत राज्य में मंदिरों पर आक्रमण की १२० घटनाएं हुई हैं । ये आंकडे पिछले वर्ष तक के हैं और उसमें निश्चित रूप से वृद्धि हुई है । मंदिरों पर बढते आघातों की पृष्ठभूमि पर आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा तेलुगू देसम के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा, ‘जगनमोहन सरकार के राज्य में अब देवता भी सुरक्षित नहीं हैं ।’ केवल इतना ही नहीं, अपितु वहां के अभिनेता पवन कल्याण ने मंदिरों पर किए जा रहे आक्रमणों की बढती घटनाओं की सीबीआई जांच करने की मांग की है । इससे मुख्यमंत्री रेड्डी का वास्तविक स्वरूप ही उजागर हुआ है । जगनमोहन रेड्डी को वास्तव में तब मुंह की खानी पडी, जब उन्हीं के दल के सांसद रघुराम कृष्णम् राजू ने रेड्डी पर मंदिरों की तोडफोड के संदर्भ में गंभीर आरोप लगाए । वर्ष २०२१ में आंध्र प्रदेश के अनेक मंदिरों में तोडफोड की और मंदिरों में चोरी की घटनाएं सामने आ रही थीं । वहां सरकारी निविदाएं निकालकर अनेक चर्च बनाने की योजना बनाई जा रही थी, जिसका सांसद राजू ने तीव्र विरोध करते हुए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह सब रोकने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया और केवल इतना ही नहीं, अपितु एक भेंटवार्ता में राजू ने यह दावा करते हुए कहा, ‘आंध्र प्रदेश में कागद पर तो केवल २ प्रतिशत ईसाई हैं; परंतु आज वहां ईसाईयों की जनसंख्या २५ प्रतिशत अर्थात डेढ करोड है । इसके लिए वर्तमान रेड्डी सरकार ही उत्तरदायी है ।’

आंध्र प्रदेश तीव्र गति से ईसाईकरण की ओर अग्रसर !

मूलतः मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी स्वयं ईसाई हैं । उनके अधिकांश निर्णय हिन्दू विरोधी होने का मुख्य कारण ‘उनका ईसाई होना’ है । पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने संसद में कहा था, ‘अनुसूचित जातियों और जनजातियों में से किसी ने भी धर्मांतरण किया, तो उन्हें अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आवंटित योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा ।’ उसके उपरांत ३० जुलाई २०२१ को जगनमोहन सरकार ने आनन फानन में स्पष्ट आदेश जारी कर कहा, ‘अनुसूचित जातियों और जनजातियों के (अर्थात हिन्दुओं में अंतर्भूत) लोगों को दी जानेवाली सुविधाएं ईसाई और बौद्ध धर्म स्वीकार करनेवाले लोगों को भी दी जाएंगी ।’ उनके सत्ता का उन्माद ध्यान में आने के लिए यह उदाहरण पर्याप्त है । ‘मुख्यमंत्री रेड्डी के ईसाई होने के कारण ही इस प्रकार का आदेश जारी कर उस पर कार्यवाही की गई’, ऐसा कहा जा सकता है । ऐसे विषय में ‘एक भी धर्मनिरपेक्षतावादी अपना मुंह नहीं खोलता’, इसे ध्यान में लेना चाहिए । रेड्डी सरकार मुसलमानों का तुष्टीकरण करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाती । इस सरकार ने अप्रैल २०२२ में ‘राज्य के सभी मुसलमान सरकारी कर्मचारी, शिक्षक और ठेकेदार रमजान के माह में नियोजित कार्यालयीन समय से १ घंटा पूर्व घर जा सकते हैं’, ऐसा आदेश दिया । यहां ध्यान में लेनेयोग्य बात यह है कि सरकारी कर्मचारियों को जनता के पैसों से वेतन दिया जाता है और उसमें भी ये मुसलमान कर्मचारी १ माह तक प्रतिदिन १ घंटा अल्प काम करनेवाले हों, तो सरकार को इन पैसों को उनके वेतन से काट लेना चाहिए; परंतु वैसा न करने से इन पैसों का भार बहुसंख्यक हिन्दुओं को ही उठाना पडा । दूसरी बात यह कि क्या कभी जगनमोहन सरकार ने हिन्दुओं को श्रीराम नवमी, हनुमान जयंती आदि त्योहारों के समय ऐसी छूट दी है ? इससे यह पुनः प्रमाणित होता है कि यह सरकार हिन्दूद्वेषी है ।

विभाजन की भी राष्ट्रद्रोही मांग !

रेड्डी के सत्ता में आते ही धर्मांध ईसाईयों को खुली छूट मिली है । उनके विषैले विचार केवल हिन्दू धर्म को ही नहीं, अपितु देश की एकता और अखंडता को भी चुनौती देनेवाले हैं । कुछ समय पूर्व आंध्र प्रदेश की ‘ऑल इंडिया ट्रू क्रिश्चियन काउंसिल’ की ओर से पादरी उपेंद्र राव ने ‘२ भागों में भारत का विभाजन कर उनमें से आधा क्षेत्र ईसाईयों को ‘अलग देश’ के रूप में देना चाहिए’, विभाजन के उपरांत हम आपको कोई कष्ट नहीं पहुंचाएंगे’, ऐसा विभाजनकारी वक्तव्य दिया था । इससे ‘ईसाईयों की दौड कहां तक पहुंची है’, यह ध्यान में आता है । वीर सावरकर जो कहते थे, ‘धर्मांतरण ही राष्ट्रांतर होता है’, वह यही है ! कुल मिलाकर जगनमोहन रेड्डी को हिन्दूद्वेष की यह धरोहर ‘पैतृक’ अधिकार से प्राप्त हुई है; क्योंकि उनके पिता वाई. सैम्युअल राजशेखर रेड्डी जब अखंड आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उस अवधि में वर्ष २००५ में उन्होंने हिन्दुओं के विश्वविख्यात तिरुमला तिरुपति तीर्थस्थान पर बडा चर्च बनाने की योजना बनाई थी, संपूर्ण विश्व के हिन्दुओं से विरोध किए जाने के उपरांत उन्हें इस निर्णय से पीछे हटना पडा था । उनके कार्यकाल में तिरुमला स्थित ७ पर्वतमालाओं में स्थित भोले हिन्दुओं के धर्मांतरण करने का भी प्रयास हुआ था । आंध्र प्रदेश में बढता कुल हिन्दूद्वेष और तीव्रगति से हो रहा उसका ईसाईकरण हिन्दुओं और राष्ट्रप्रेमियों के लिए संकट की घंटी है । देश के सामने यह बहुत बडी चुनौती है । समस्त हिन्दुओं में इसके प्रति जागृति आकर उन्हें संगठित होना होगा, अन्यथा पादरी उपेंद्र राव का देशद्रोही सपना साकार होने में समय नहीं लगेगा !

धर्मादाय विभाग के शुल्क का भुगतान करने हेतु मंदिरों को आवर्ति जमा तोडने का सुझाव देनेवाली हिन्दूद्वेषी जगनमोहन रेड्डी सरकार से हिन्दू लोकतांत्रिक पद्धति से स्पष्टीकरण पूछें !