राष्ट्रभाषा ‘हिन्दी’ की दुर्दशा रोकें !

हिन्दी भाषा पर उर्दू भाषा का आक्रमण !

 

१. हिन्दी भाषा का मूल संबंध हिन्दू धर्म से होने से उसके विकृतीकरण हेतु हिन्दूद्वेषियों सहित विश्व के सभी घटकों का कार्यान्वित होना : हिन्दी भाषा का अर्थ ‘हिन्दू’ शब्द से जुडा है । इसलिए उसमें सात्त्विकता है । इसी कारणवश वर्तमान काल की सात्त्विकता के आधार पर इस भाषा का जीर्ण-शीर्ण अस्तित्व प्रतीत होता है । इस भाषा का मूल भी हिन्दू धर्म से संबंधित है । इसलिए उसके विकृतीकरण हेतु हिन्दूद्वेषियों सहित विश्व के सभी घटक कार्यान्वित हैं ।’ – एक अज्ञात शक्ति (श्री. पवार के माध्यमसे, २१.६.२००८)

२. हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं पर होनेवाले अत्याचार : ‘हिन्दू संस्कृति में सभी कार्यों में शुद्धता का आग्रह होता है । इस दृष्टि से शुद्ध बोलने एवं लिखने पर हम विशेष ध्यान देते हैं । वीर सावरकर ने लिपिशुद्धि एवं भाषाशुद्धि का आंदोलन प्रारंभ किया; परंतु आज दुर्भाग्यवश बोलने तथा लिखने में अन्य भाषाओं का मिश्रण हो रहा है । दूरचित्रवाणी की विविध वाहिनियों पर, विशेषरूप से ‘जी’ वाहिनी पर, समाचार इतने अंग्रेजीमिश्रित होते हैं मानो वे किसी विशिष्ट वर्ग के लोगों के लिए ही हों । हिन्दी भाषा के अधिकांश चलचित्रों एवं वाहिनियों में अधिकतर उर्दू शब्दों का प्रयोग किया जाता है । ‘लब्ज’ क्यों ? उसके स्थान पर ‘शब्द’ क्यों नहीं ? ‘नामुमकिन’ क्यों ? उसके स्थान पर ‘असंभव’ क्यों नहीं ? ‘मियां-बीवी’ के लिए हिन्दी में ‘पति-पत्नी’ शब्द होते हुए भी, हिन्दू परिवारों के संभाषण में इसका अधिकतर प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार के सैकडों उर्दू शब्द हिन्दी में प्रचुर मात्रा में सम्मिलित किए जा रहे हैं । ‘क्या यह हिन्दी भाषा पर होनेवाला अत्याचार नहीं है ?’ – प्रा. सु.ग. शेवडे

हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखते समय पराई फारसी (पर्शियन) लिपि में लिखने की घातक प्रथा मुसलमानों के राज्य में आरंभ होना

‘जिसे हम ‘मुसलमानी’ भाषा कहते हैं, ‘हिन्दी’ भाषा ही है । ‘हिन्दी’ अर्थात इस हिन्दुस्तान में ही जन्मी और विकसित हुई एवं मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं से सीखी हिन्दू भाषा है । इसी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखते समय पराई फारसी (पर्शियन) लिपि में लिखने की घातक प्रथा मुसलमानों के राज्य में आरंभ हुई । राजा तोडरमल जैसे पुरातन हिन्दू कार्यपाल से लेकर लाला लाजपतराय जैसे अर्वाचीन लेखकों तक उत्तर हिन्दुस्तान के सहस्रों हिन्दू लेखकों ने इस पद्धति का हेतुपूर्वक अथवा विवशतापूर्वक समर्थन किया । ‘मुसलमानों के संपर्क से उसमें अरबी, फारसी एवं तुर्की शब्दों के समावेश से लेखक की विद्वत्ता प्रदर्शित होती है’, यह विचार दृढ होता गया । इसलिए हिन्दी भाषा से ही जन्मी होने पर भी, आज उसी की विकृति ‘उर्दू’ भाषा ही उसका गला घोंटने का प्रयास करने लगी है । अरबी, फारसी, तुर्की जैसी विदेशी भाषाओं को हिन्दुस्तान में लाकर हिन्दी भाषा को ही अरबी भाषा बनाने का अथक प्रयत्न उन्होंने विविध स्थानों पर आरंभ किया है ।

भारत में हिन्दी भाषा की दुर्दशा

‘भाषा संपर्क का साधन है । हम अपने विचार, भावनाएं, मत, भाषा के माध्यम से व्यक्त करते हैं । हम अन्यों से भाषा के माध्यम से ही संभाषण कर सकते हैं एवं संभाषण से ही निकटता साध सकते हैं । भाषा इतनी महत्त्वपूर्ण है कि ईश्वर ने मनुष्य से संपर्क करने हेतु गीर्वाणवाणी की (संस्कृत की) निर्मिति की ।

हिन्दुस्तान में लगभग २०० भाषाएं हैं । हम इन भाषिकों से संपर्क प्रस्थापित कर पाए, तो ही वास्तविक रूप से हमारा एक राष्ट्र होगा । राष्ट्रभाषा हिन्दी हम बहुभाषियों के लिए महत्त्वपूर्ण धागा है; किंतु हिन्दी केवल नाम के लिए ही राष्ट्रभाषा है । तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश (हैदराबाद को छोडकर), केरल, कर्नाटक (बेंगळूरु एवं अन्य प्रमुख नगरों को छोडकर) इन राज्यों के शिक्षित लोगों को भी हिन्दी बोलनी नहीं आती । (लिखना, पढना तो दूर की बात ।) भाषिक बाधाओं से हम जहां एक-दूसरे के संग संवाद ही नहीं कर पाते, वहां सुसंवाद तो दूर ही रहा । इन परिस्थितियों में हम एक राष्ट्र हैं, यह भावना कैसे निर्माण होगी ?’