नई देहली -जिस न्यायालय में न्यायाधीश का चयन समझौते की प्रक्रिया द्वारा होता है, ऐसा न्यायालय कभी स्वतंत्र नहीं रह सकता । न्यायालय में कौन से खंडपीठ के सामने सुनवाई होगी, यह निश्चित करने के लिए प्रक्रिया नहीं है । सरन्यायाधीश ही इसका निर्णय लेते हैं । मैं लगभग ५० वर्षाें से वकालत कर रहा हूं, तथापि अब न्यायव्यवस्था पर विश्वास नहीं रहा, राज्यसभा के सांसद तथा ज्येष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने ऐसा वक्तव्य दिया । यहां के एक कार्यक्रम में वे बोल रहे थे ।
No Hope Left In Supreme Court : Senior Advocate Kapil Sibal https://t.co/MMK4yYa5GZ
— Live Law (@LiveLawIndia) August 7, 2022
सिब्बल ने आगे कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अबतक अनेक ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं; परंतु वास्तव में उनके कारण बहुत परिवर्तन दिखाई नहीं दिए । कलम ३७७ हटाने के पश्चात भी प्रत्यक्ष में बहुत कुछ परिवर्तन नहीं हुआ । स्वतंत्रता तभी संभव है, जब हम उसके लिए आवाज उठाएं एवं स्वतंत्रता की मांग करें ।