दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में हिंन्दूओं के सुरक्षा विषय पर विचारमंथन !
रामनाथी (गोवा), १४ जून (संवाददाता) – मैं हिन्दू हूं, इस पर मुझे गर्व है । आज के समय में विरोधियों द्वारा हिन्दुओं की संस्कृति पर वैचारिक और शैक्षणिक स्तरों पर आक्रमण किए जा रहे हैं । राष्ट्रवादी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने ‘हिन्दू आतंकवादी हैं’, तो कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी यांनी, ‘जो भगवा पहनता है, वह आतंकवादी है’, ऐसा वक्तव्य दिया था । ‘बहुसंख्यक होते हुए भी हिन्दू ऐसी बातों का विरोध क्यों नहीं करते ?’, इस पर भी चिंतन किया जाना चाहिए । ऐसी घटनाओं का उत्तर देने के लिए हमें कट्टर हिन्दू बनना पडेगा । भाजपा की प्रवक्ता नुपूर शर्मा के सामाजिक व्यासपीठ पर बोलने पर उनके दल ने प्रतिबंध लगाया । जिस सरकार को हिन्दुओं ने पूर्ण बहुमत से चुना, उस सरकार के द्वारा ऐसा आदेश निकाला जाना दुर्भाग्यजनक है, ऐसा प्रतिपादन मुंबई के ‘आफ्टरनून वॉयस’ इस समाचारपत्र की संपादिक डॉ. (सुश्री) वैदेही ताम्हण ने किया ।
रामनाथी (गोवा) में चल रहे दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के दूसरे उद्बोधन सत्र में १४ जून को ‘हिन्दुओं की सुरक्षा’ इस विषय पर राष्ट्रीय कार्यसमिती सदस्य तथा हरियाणा की भाजपा महिला प्रकोष्ठ की राज्य प्रभारी श्रीमती नंदा डगला, ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’के संरक्षक पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी, हिन्दुत्वनिष्ठ व्याख्याता तथा लेखक श्री. दुर्गेश परूळेकर ने अपने विचार व्यक्त किए । इस अवसर पर डॉ. (सुश्री) वैदेही ताम्हण ने ‘हिन्दुओं पर हो रहे गुप्त आक्रमण को कैसे पहचाने ?’, इस विषय पर उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों का उद्बोधन किया ।
हिन्दू धर्म पर हो रहे आघातों के विषय में लेखन प्रकाशित करने का साहस मुझ में है ! – डॉ. (सुश्री) वैदेही ताम्हणलेखनी में बहुत शक्ति होती है । हिन्दुओं को ‘फेसबुक’ और अन्य विभिन्न प्रसारमाध्यमों पर हिन्दू धर्म और उस पर हो रहे आघातों के लिए व्यक्त होना चाहिए । आपकी लेखनी में लिखने का साहस हो, तो एक समाचारपत्र की संपादक के रूप में उस लेखन को प्रसिद्ध करने का साहस मुझ में है । |
हिन्दू राष्ट्र के कार्य में महिलाओं का योगदान बडा रहेगा ! श्रीमती नंदा डगला, राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य तथा राज्य प्रभारी,
भाजपा महिला प्रकोष्ठ, हरियाणा
‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में महिलाओं का सहभाग’ इस विषय पर बोलती हुई श्रीमती नंदा डगला ने कहा, ‘‘जिजामाता ने छत्रपति शिवाजी महाराज को संस्कार दिए । उन्होंने ही हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज दिए । उस समय पति लडाई के लिए जाता था, तब पत्नी पति को तिलक लगाकर ‘लडाई में विजयी होकर लौटिए’, ऐसा बोलती थी । इसलिए हिन्दू राष्ट्र के कार्य में महिलाओं का बडा योगदान रहेगा । महिलाओं के बिना हिन्दू राष्ट्र की स्थापना नहीं हो सकेगी ।’’ राजस्थान की सनातन संस्था की साधिका डॉ. स्वाती मोदी ने श्रीमती नंदा डगला को सम्मानित किया ।
श्रीमती नंदा डगला ने आगे कहा कि,
१. भारत में पहले से ही प्रत्येक कार्य में महिलाओं का बडा योगदान रहा है । सभ्यता, संस्कृति और हिन्दुत्व की दृष्टि से स्त्रियों का बडा महत्त्व है । एक ओर महिलाओं को शिक्षा लेने का अधिकार नहीं है, ऐसा विषवमन किया जाता है, परंतु वैदिक काल से महिलाएं शिक्षा ले रही हैं, साथ ही उनकी पूजा भी की जाती है । आंदोलनों में भी महिलाओं का बडा योगदान है । महिलाओं में परंपरा, वेशभूषा, एकता, सभ्यता आदि गुण दिखाई देते हैं ।
२. धर्माच्या आधार पर देश के टुकडे हो चुके हैं, तब भी भारत में अन्य पंथियों के लोग रहते हैं; परंतु यदि अन्य पंथियों के लोग हिन्दू परिवारों और उनके घरों में हस्तक्षेप कर रहे हों, तो उन्हें ‘जैसे का वैसा’ उत्तर देना चाहिए ।
३. हम भाजपा की पूर्व नेता नुपूर शर्मा के साथ हैं । उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो अनेक महिलाएं अपनी गिरफ्तारियां देंगी । नुपूर शर्मा तो ‘एक नारी सब पे भारी’ हैं । हिन्दूद्वेषी दिवंगत एम्.एफ्. हुसैन हिन्दू देवताओं का अनादर कर विदेश भाग गया । उस समय उससे क्षमा मांगने की किसी ने मांग नहीं की; परंतु नुपूर शर्मा को क्षमा मांगने के लिए कहा जाता है । यह अनुचित है ।
‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ ही धर्मनिरपेक्षता का दूसरा नाम है ! – दुर्गेश परूळेकर, हिन्दुत्वनिष्ठ व्याख्याता तथा लेखक, ठाणे, महाराष्ट्र
‘धर्मनिरपेक्षता शब्द का विरोध कीजिए ! इस विषय पर बोलते हुए श्री. दुर्गेश परूळेकर ने कहा कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत नरसिंह राव ने वर्ष १९९२ में एक भाषण में कहा था कि कौनसा राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष है और कौनसा नहीं है, यह सुनिश्चित करने का कोई साधन नहीं है । उसके कारण धर्मनिरपेक्षता का निर्णय उचित ढंग से नहीं लिया जा सकता । उसके उपरांत भी किसी भी वामपंथी ने ‘धर्मनिरपेक्षता’के विषय पर चर्चा करने का प्रयास नहीं किया । आज विश्व में हिन्दू राष्ट्रवाद पर चर्चा की जाती है । मूलतः ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ ही धर्मनिरपेक्षता का दूसरा नाम है । राष्ट्र के वैभवशाली इतिहास का सपना देखनेवाला राष्ट्रवाद समर्थनीय है । इसलिए राष्ट्रवाद को बीमारी समझकर उसके लिए औषधि ढूंढने का प्रयास करना मूर्खतापूर्ण है । ऐसा होते हुए भी राष्ट्रवाद का विरोध किया जा रहा है । विश्व में उदारमतवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षतावादी विचारधारा आज का फैशन बन गया है । राष्ट्रवाद की प्रेरणा को दबाने का अर्थ अनेक संकटों को आमंत्रण देने जैसा है ।
विश्व में ‘धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद’ का स्वीकार करना वर्जित माना गया है ! – दुर्गेश परूळेकर२२ जुलाई १९९४ के ‘इंडिपेंडेंट’ वार्तापत्र में प्रकाशित एक लेख के एक परिच्छेद में कहा गया था कि ‘टांजानिया फॉर टांजानियन्स ओन्ली’ (टांजानिया केवल टांजानिया के नागरिकों के लिए है) आज के समय में टांजानिया में यह नारा फैल रहा है । ‘हिन्दुस्थान हिन्दुओं का है’, इस नारे पर आक्रोश करनेवालों ने उस समय मौन धारण किया था । इससे यह ध्यान में आता है कि विश्व में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद का स्वीकार करना वर्जित माना गया है । |