अक्षय तृतीया के पर्व पर ‘सत्पात्र को दान’ देकर ‘अक्षय दान’ का फल प्राप्त करें !

विष्णुतत्त्व के स्पंदन आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली रंगोलियां

सीधी रेखा में रंगोली बनाने पर शक्ति की अनुभूति होती है ।
रंगोली वक्र रेखा में बनाने पर आनंद की अनुभूति होती है ।

     हिन्दू धर्म के साढे तीन शुभमुहूर्ताें में से वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया एक है । इसीलिए इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं । इस तिथि पर कोई भी समय शुभमुहूर्त ही होता है । इस वर्ष ३ मई २०२२ को अक्षय तृतीया हैं ।

  • धार्मिक कृत्यों का अधिक लाभ : इस तिथि पर ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु की मिश्र तरंगें पृथ्वी पर आती हैं; जिससे पृथ्वी पर १० प्रतिशत सात्त्विकता बढ जाती है । इस दिन श्रीविष्णु-पूजन, जप, होम-हवन, पवित्र स्नान, दान इत्यादि अनुष्ठानों से आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।
  • देवता एवं पितरों के लिए तिलतर्पण करने से लाभ : इस तिथि पर देवता एवं पितरों के लिए किया गया कर्म अक्षय होने के कारण देवताओं और पितरों को तिलतर्पण (अर्थात जलमिश्रित तिल अर्पित) किया जाता है । हमारे पितर इस तिथि को पृथ्वी के समीप आते हैं । उन्हें अगली गति दिलाने हेतु अपिंडक श्राद्ध करें । यदि यह संभव न हो, तो तिलतर्पण करें । (तिलतर्पण विधि के विषय में पुरोहितों से
    पूछ सकते हैं ।)
  • मृत्तिकापूजन, मिट्टी की क्यारियां बनाना, बीजारोपण व वृक्षारोपण के लाभ : ये कृत्य अक्षय तृतीया पर करने से दैवी शक्ति बीजों में उत्पन्न होकर फसल अच्छी होती है ।

     (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’)

अक्षय तृतीया के पर्व पर ‘सत्पात्र को दान’ कर ‘अक्षय दान’ का फल प्राप्त करें !

     ‘३.५.२०२२ को ‘अक्षय तृतीया’ है । इस दिन किए जानेवाले दान और हवन का क्षय नहीं होता; जिसका अर्थ उनका फल मिलता ही है । इसलिए कई लोग इस दिन बडी मात्रा में दानधर्म करते हैं ।

१. ‘सत्पात्र को दान’ करने का महत्त्व !

     हिन्दू धर्म बताता है, ‘सत्पात्र को दान करना, प्रत्येक मनुष्य का परमकर्तव्य है ।’ सत्पात्र को दान का अर्थ सत् के कार्य हेतु दानधर्म करना ! दान देने से मनुष्य का पुण्यबल बढता है, तो ‘सत्पात्र को दान’ करने से पुण्यसंचय सहित व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ भी मिलता है । अक्षय तृतीया के दिन निम्न प्रकार से ‘सत्पात्र को दान’ किया जा सकता है ।

२. दान के प्रकार

२ अ. धनदान : आज का समय धर्मग्लानि का है । आज धर्मशिक्षा के अभाव में हिन्दू समाज अधर्माचरणी बन गया है । उचित धर्मशिक्षा न देने से हिन्दुओं का धर्माभिमान नष्ट हो चुका है । धर्म की ऐसी दयनीय स्थिति में धर्म के पुनरुत्थान का कार्य करना, काल के अनुसार अनिवार्य बन गया है । अतः धर्मप्रसार करनेवाले सन्त, साथ ही राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु कार्य करनेवाली संस्थाएं अथवा संगठनों के कार्य हेतु दान देना, यह काल के अनुसार सर्वश्रेष्ठ दान है । सनातन संस्था धर्मजागृति का यही कार्य कर रही है । अर्पणदाताओं द्वारा इस प्रकार की संस्था अथवा संगठन को दिए जानेवाले दान (अर्पण) का विनियोग धर्म की पुनर्स्थापना हेतु ही होनेवाला है ।

२ आ. ज्ञानदान : सनातन की बहुविध एवं सर्वांगस्पर्शी ग्रन्थसंपत्ति चिरंतन ज्ञान की अमूल्य धरोहर है । ये ग्रन्थ सरल भाषा में पाठकों को अमूल्य ज्ञान देते हैं, साथ ही उनमें धर्म के प्रति श्रद्धा भी बढाते हैं । धर्म की शाश्वत शिक्षा देनेवाली इस ग्रन्थसंपत्ति को ज्ञानदान का सर्वाेत्तम माध्यम कहा जा सकता है । अतः आप अक्षय तृतीया के दिन ऐसे ग्रन्थदान के द्वारा ज्ञानदान कर पुण्यसंचय सहित आध्यात्मिक लाभ भी उठाएं । ग्रन्थदान के माध्यम से अध्यात्मप्रसार हेतु ये ग्रन्थ अपने परिजन, विद्यालय-महाविद्यालय के ग्रन्थालय, साथ ही सार्वजनिक वाचनालयों को दिए जा सकते हैं ।

     अक्षय तृतीया के उपलक्ष्य में दान देने के इच्छुक दाता अपनी जानकारी सूचित करें ।

नाम एवं संपर्क क्रमांक : श्रीमती भाग्यश्री सावंत – 7058885610
संगणकीय पता : [email protected]
डाक के लिए पता : श्रीमती भाग्यश्री सावंत, द्वारा ‘सनातन आश्रम’, २४/बी, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा. पिन – ४०३४०१

     जालस्थल https://www.sanatan.org/en/donate पर भी दान (अर्पण) देने की सुविधा उपलब्ध है ।’

– श्री. वीरेंद्र मराठे, व्यवस्थापकीय न्यासी, सनातन संस्था. (३१.३.२०२२)