भारतीयो, २६ जनवरी के ध्वजारोहण के पश्चात जगह-जगह बिखरे ध्वजों की अवमानना से बचने का हम संकल्प करें और ध्वज का गौरव कर अपनी देशभक्ति प्रमाणित करें !

     ‘२६ जनवरी, अर्थात गणतंत्र दिन प्रतिवर्ष आता और जाता है । उस दिन हम सर्वत्र ध्वजारोहण कर ध्वजवंदन करते हैं; परंतु यह केवल एक दिन ही करते हैं । तदुपरांत सब कुछ वहीं भूल जाते हैं और कुछ समय पश्चात राष्ट्रध्वज पैरों तले पाए जाते हैं । प्रत्येक वर्ष यह ऐसे ही घटता है । हिन्दू जनजागृति समिति और सनातन संस्था राष्ट्रध्वज की अवमानना से बचने के लिए अनेक वर्षाें से प्रयासरत है ।

१. हिन्दुओ, यदि हम अपने ध्वज की रक्षा नहीं कर सकते, तो हमारे परिवार, देश और धर्म की रक्षा हम कैसे कर सकेंगे ?

     हिन्दुओ, ध्वजारोहण करना, इतना ही हमारा कर्तव्य है क्या ? पश्चात उसका अपमान रोकना और आगे जाकर पुनः ऐसा न हो; इसलिए कुछ व्यवस्था करना, क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं ? हमारे भारत देश के राष्ट्रध्वज का अपमान करनेवाले हम ही हैं ! ‘मैं अपने ध्वज की रक्षा कर नहीं सकता, तो अपनी, अपने परिवार की, अपने देश की और अपने धर्म की रक्षा क्या मैं कर सकूंगा ? मेरे मन में देश एवं धर्म की रक्षा करने के विचार आएंगे क्या ?’, इस पर चिंतन करें ।

२. यदि राष्ट्रध्वज का गौरव प्रतिक्षण हो, तभी देश-धर्म का विचार कर सकेंगे !

     हमारा जन्म इस पवित्र भारत देश में हुआ, क्या वह केवल खान-पान के लिए और ‘मैं एवं मेरा परिवार’, ऐसा संकीर्ण विचार करने के लिए है ? यदि यह देश मेरा घर है, तो धर्म अर्थात मेरे घर के ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ परिजन हैं ! यदि ये दोंनो नहीं, तो आपका जीवन कैसा रहेगा ?

     केवल ध्वजवंदन करने से ध्वज का सम्मान संजोया नहीं जायेगा, अपितु उसका अपमान न हों, इसकी ओर ध्यान दें, तो ध्वज का गौरव होगा ! ‘मैं २६ जनवरी को अपने वाहन पर राष्ट्रध्वज लगाकर प्रदर्शनी करता हूं, अर्थात मुझे अपने राष्ट्रध्वज के प्रति गौरव है’, ऐसी संकल्पना न करें । यह गौरव का केवल प्रदर्शन और एक प्रकार से अप्रामाणिकता ही है ।

     मुझे अपने राष्ट्रध्वज का केवल एक दिन ही स्मरण होता है । अन्य दिन वह गौरव कहां होता है ? यदि राष्ट्रध्वज का गौरव प्रतिदिन, प्रतिक्षण हो, तो ही हम हमारे देश-धर्म के बारे में सोच सकेंगे ।

३. भारतीयो, २६ जनवरी के दिन निम्नांकित संकल्प करें !

अ. मैं अपने राष्ट्रध्वज का अपमान होने न दूंगा, एवं वह अन्योंद्वारा भी होने न दूंगा !

आ. अपने मन में राष्ट्रध्व के प्रति गौरव जागृत करूंगा एवं अन्य लोगों में भी वह जागृत करूंगा !

इ. मैं सदैव राष्ट्रध्वज का गौरव करूंगा एवं अन्यों से भी वैसा कहूंगा !

ई. राष्ट्रध्वज मेरे घर का एक अविभाज्य और गौरव का अंग है !’ – श्री. चेतन हरिहर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.