हिन्दुओं की दयनीय स्थिति : कारणमीमांसा एवं समाधान योजना

श्री. विनोदकुमार सर्वाेदय

१. हिन्दुओं की दुर्दशा का कारण है शताब्दियों से शुद्ध राष्ट्रवादी, दूरदर्शी, झुझारू एवं प्रभावी नेतृत्व का अभाव !

     ‘हिन्दुओं की दुर्दशा का प्रमुख कारण यह है कि वे अनेक शताब्दियों से शुद्ध राष्ट्रवादी, दूरदर्शी, झुझारू एवं प्रभावी नेतृत्व के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं । परिणामस्वरूप आज मुख्य प्रवाह राजकीय लोकतंत्र, व्यवस्था एवं झूठी धर्मनिरपेक्षता के बंधन में विवश होकर कुंठित हो गई है । हमारी ऐसी कौनसी विवशता है कि जो हमें अपने प्रति घृणा रखनेवाली मानसिकता का विरोध न करते हुए मानवता के रक्षणार्थ आवश्यक कृति करने में भी संकोच होता है ? क्या हमारी पराभूत मानसिकता हो गई है ?

२. आचार्य चाणक्य की सीख ‘नीच व्यक्ति कभी भी अपनी प्रवृत्ति का त्याग नहीं करता’, इसे ध्यान में रखकर भारत अपने शत्रुओं को भली-भांति पहचानकर ठोस युद्धनीति निर्धारित करे !

     यदि हमने अपने शत्रुओं को ठीक से नहीं पहचाना, तब क्या सहिष्णु एवं अहिंसक इत्यादि हमारे सद्गुण हमें आत्मघात की ओर ढकेलते नहीं रहेंगे ? आचार्य चाणक्य ने कहा है, ‘नीच व्यक्ति कभी अपनी प्रवृत्ति का त्याग नहीं करते; इसलिए समझदार व्यक्ति को सदैव सतर्क रहना चाहिए ।’

३. भारत के नेताओं की ऐतिहासिक चूकें एवं त्रुटियों से उचित बोध लेकर आत्मरक्षणार्थ ‘जैसे को तैसा’, यह मूलतंत्र आत्मसात करना काल की आवश्यकता है !

     यह सत्य है कि राजकीय शिष्टाचार, शालीनता एवं वैचारिक आधार पर शत्रु को पराजित कर आगे बढते रहने की निरंतर चलनेवाली एक अथक प्रक्रिया है । तब भी यदि हमें आगे जाना है, तो ऐतिहासिक चूकें एवं त्रुटियों से उचित सीख लेनी चाहिए । हमें उच्च आदर्श स्थापित करने के लिए आत्मरक्षणार्थ ‘जैसे को तैसा’ मूलतंत्र आत्मसात करना होगा ।

४. भगवान श्रीराम एवं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मरक्षणार्थ दुष्टों का समूल नाश किया, उससे आज के भारतीय नेता कब प्रेरणा लेंगे ?

     हिन्दू समाज धर्मग्लानि के काल के पूर्व के गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा क्यों नहीं लेते ? क्या प्रभु श्रीराम ने ऋषि-मुनियों की दुष्ट राक्षसों से रक्षा कर, अपने धर्म का पालन नहीं किया ? महाज्ञानी रावण का वध कर, श्रीराम द्वारा दिया प्रेरणादायी संदेश भूलकर क्या हम विरोध करनेवालों पर कोई प्रहार नहीं करेंगे ? इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मरक्षणार्थ महाभारत का युद्ध करवाया था, यह बिना समझे ही कब तक स्वयं को अज्ञान में रखकर अपनी चमडी बचाते रहेंगे ? अज्ञान की स्थिति में कितने समय तक शत्रुओं के षड्यंत्रों की बलि चढते रहेंगे ? जिन्हें कभी आचरण में न लाया जाता हो, ऐसी श्रद्धाओं का मूल्य क्या कभी टिका रहेगा ?

५. हिन्दुओं का भयानक नरसंहार एवं धर्मपरिवर्तन भारतीय नेताओं की निष्क्रियता का परिणाम है !

     कुछ इतिहासपुरुषों की मूर्ति तोडना एवं उन्हें अपमानित करना, इन पर राजकीय एवं सामाजिक वादविवाद भडकते रहते हैं । मुगल काल में तोडी गई लाखों मूर्तियां, मंदिर, इसके साथ ही करोडों निष्पाप एवं निर्दाेष हिन्दुओं का भयानक नरसंहार एवं धर्मपरिवर्तन यह हमारी निष्क्रियता एवं नपुंसकता का ही परिणाम था ।

६. भारत के महान सुपुत्रों की खरी राष्ट्रवादी नीति समझ लेना देश का विभाजन कर देश का सर्वनाश करनेवाले राष्ट्रद्रोहियों को कारागृह में डाल देना चाहिए !

     यदि मुगल काल में हिन्दुओं की मानबिंदुओं की रक्षा के लिए सीना तानकर खडे रहनेवाले राणा सांगा, महाराणा प्रताप, समर्थ रामदासस्वामी, राजमाता जीजाबाई, छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, वीर छत्रसाल इत्यादि का अभियान सफल हुआ होता, तो हमारा इतिहास क्या इतना कष्टदायक होता ? इसी शृंखला में भारत के महान सुपुत्र स्वामी दयानंद सरस्वती, लाला लाजपत राय, लोकमान्य टिळक, वीर सावरकर एवं डॉ. हेडगेवार इत्यादि की राष्ट्रवादी नीति समझकर ली होती, तो आज पाकिस्तान की निर्मिति ही नहीं हुई होती । आज भी हम देश का विभाजन कर देश का सर्वनाश करनेवालों को कारागृह में डालने के स्थान पर राजकीय स्तर पर सम्मानित होते हुए देख रहे हैं । राजकीय द्वंद्व व्यक्तिगत स्वार्थ एवं सत्तालोलुपता के कारण राष्ट्रीयता का गला घोंटकर रहनेवाले हैं क्या ?

७. आतंकवाद के विरोध में आक्रामक नहीं हुए, तो वीर हिन्दू हुतात्मा आज के भारतीय नेताओं को धिक्कारेंगे !

     यह उचित है कि हम विध्वंसक एवं विस्फोटक अमानवीय संस्कृति के वाहक न होकर सृजनात्मक निर्मिति एवं रचनात्मक कार्य की संस्कृतिवाले समाज का अंग हैं । ऐसे समय पर ‘हम अपने विरोधी एवं शत्रुओं से सहिष्णुता से रहेंगे और उनसे कोई बैर नहीं रखेंगे’, ऐसा है क्या ? हमारा अस्तित्व एवं हमारी श्रद्धा की रक्षा में होनेवाले लाखों के बलिदान से प्रेरित होकर आतंकवाद के विरोध में आक्रामक नहीं हुए, तो हमें कभी संतोष होगा क्या ?

८. हिन्दुओं को सद्गुण विकृति छोडकर शत्रु के विरुद्ध आक्रेमक होना आवश्यक !

     हिन्दू स्वयं की अहिंसा, सहिष्णुता एवं उदारता आदि गुणों के लिए कट्टर हो सकते हैं; परंतु उन्हें अपने अस्तित्व एवं श्रद्धा की रक्षा के लिए संघर्षवादी होने से कौन रोक रहा है ? धर्मांधों के षड्यंत्रों के प्रति मौन साधने के लिए हिन्दुओं को क्या शाप मिला है, जो वे प्रतिदिन धर्म एवं देश पर होनेवाले अनेक अत्याचारों के विषय में आक्रोश नहीं करते ?

९. राष्ट्ररक्षा का कर्तव्य निभानेवाले समर्पित सैनिकों को प्रोत्साहन देकर उनका मनोबल बढाएं !

     हम कश्मीर में जिहादी आतंकवादियों को एवं उन्हें बचाने के लिए पथराव करनेवाले एवं भारत के प्रति प्रेम न होनेवालों को लक्ष्य बनाकर राष्ट्ररक्षा का कर्तव्य निभानेवाले समर्पित सैनिकों को प्रोत्साहन देने के स्थान पर उलटे उन्हें पुन: पुन: न्यायालय के पिंजरे में खडा करने के षड्यंत्र पर मौन धारण करने के लिए क्यों विवश हो जाते हैं ? कोई सभ्य देश इसे स्वीकारेगा क्या ? देशद्रोही आतंकवादियों को बचाने के लिए सैनिकों पर हो रहे पथराव देखते रहना और हमारे वीर सैनिक राजकीय नेताओं के चक्रव्यूह में फंसकर लाचारवश मार खाते रहना; क्या इससे सैनिकों का मनोबल टूटेगा नहीं ? ऐसी स्थिति में अन्य सामान्य नागरिकों की मनोदशा कैसे अच्छी रहेगी ? सत्तापिपासुओं की राष्ट्रीयता यदि संशयास्पद होगी, तो क्या यह योग्य है ?

१०. राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता टिकाने के लिए सर्व देशवासियों के लिए समान जनसंख्या नीति बनाना आवश्यक !

     राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को सुदृढ रखना एवं देश को सीरिया, पाकिस्तान, मुगलिस्तान इत्यादि बनने से बचाना है, तो सबसे उत्तम उपाय है कि सर्व देशवासियों के लिए समान जनसंख्या नीति बनाई जानी चाहिए ।’

– श्री. विनोदकुमार सर्वाेदय, उत्तर प्रदेश (साभार : साप्ताहिक ‘हिन्दू सभा वार्ता’, ११ से १७ अप्रैल २०१८)