भारत-नेपाल सीमा पर, मस्जिदों और मदरसों की संख्या में पिछले दो दशकों में चार गुना वृद्धि हुई !

इस ओर गुप्तचर विभाग का ध्यान, सुरक्षा यंत्रणा सतर्क !

  • मदरसों और मस्जिदों की संख्या चौगुनी होने तक क्या पुलिस, सुरक्षा और प्रशासन सो रहे थे ? उनके विरुद्ध अभी भी कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है ? – संपादक
  • सीमा पर मंदिर क्यों नहीं बनते ? और यदि है, तो उनका ध्यान क्यों नहीं रखते ? – संपादक
मदरसा (प्रातिनिधिक छायाचित्र)

नई देहली – भारत-नेपाल सीमा पर मस्जिदों और मदरसों की संख्या पिछले २० वर्षों में चौगुनी हो गई है । गुप्तचर सूत्रों के अनुसार, इसके फलस्वरूप गुप्तचर संस्थाएं एवं पुलिस में उच्च सतर्कता है और इन मस्जिदों और मदरसों पर कडी दृष्टि रखे हुए हैं । वे, यहां कोई भी देश विरोधी गतिविधि न हो, इसे लेकर भी सतर्क हैं । साथ ही, इन मस्जिदों और मदरसों की जांच आरंभ कर दी गई है ।

१. सीमावर्ती सिद्धार्थनगर जिले में ५९७ मदरसे हैं । इनमें से ४५२ पंजीकृत हैं, जबकि १४५ मदरसों का कोई पंजीकरण नहीं है । अपंजीकृत मदरसे कौन चला रहा है तथा किस प्रकार चला रहा है ? इनका आर्थिक पोषण कौन कर रहा है ? आदि की जांच की जा रही है । आशंका जताई जा रही है, कि इन मदरसों को दुबई तथा खाडी देशों से धन मिल रहा है । १९९०  तक मात्र १६ मान्यता प्राप्त मदरसे थे । वर्ष २००० में, इनकी संख्या बढकर १४७ हो गई । इनमें से केवल ४५ मदरसों को ही मान्यता प्राप्त हुई थी ।

२. जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी तन्मय कुमार ने कहा कि, “मदरसा कोई भी खोल सकता है । सरकारी मान्यता प्राप्त मदरसों को अनुदान दिया जाता है ।”

३. सशस्त्र सुरक्षा बलों की ४३ वीं ब्रिगेड के उप कमांडेंट मनोज कुमार ने कहा कि, “अपंजीकृत मदरसों की निगरानी की जा रही है और सरकार को सूचित किया जा रहा है ।”

४. नेपाल के सीमावर्ती जिलों में, मुसलमान जनसंख्या दोगुनी हो गई है, तथा ४०० मस्जिदों और मदरसों का निर्माण केवल दो वर्षों में किया गया है । सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव सामान्य नहीं है और इसपर पैनी दृष्टि रखनी चाहिए ।