सावरकर ने म. गांधी के कहने पर दया की याचिका प्रविष्ट की थी ! – रक्षामंत्री राजनाथ सिंह

स्वातंत्र्यवीर सावरकर और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह

नई दिल्ली – अंडमान के कारागृह में रहते समय स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने म. गांधी के कहने पर ब्रिटिश सरकार को दया की याचिका प्रविष्ट की थी, ऐसा विधान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया । वे ज्येष्ठ पत्रकार उदय माहूरकर और चिरायु पंडित के ‘वीर सावरकर : द मैन हू कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन’ (वीर सावरकर : ऐसा व्यक्ति जो भारत का विभाजन रोक सकता था) इस पुस्तक के प्रकाशन समारोह में बोल रहे थे । संघ प्रमुख मोहन भागवत भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे ।

राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि,

१. स्वातंत्र्यवीर सावरकर के व्यक्तित्व के विषय में और उनके कार्य के विषय में मतभेद हो सकता है; लेकिन उनके विचारों के आधार पर उनका देश के लिए योगदान नकारा नहीं जा सकता ।

२. एक विशेष विचारधारा से प्रभावित हुआ समूह इनके जीवन और विचारों से अपरिचित है और उनको सावरकर की योग्य समझ नहीं है । कुछ लोग उनके योगदान पर प्रश्न खडे़ करते हैं; लेकिन सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी और महानायक थे, हैं और भविष्य में भी रहेंगे । देश को स्वतंत्र कराने की उनकी इच्छाशक्ति कितनी प्रबल थी, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि, ‘ब्रिटिशों ने उन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई ।’

३. कुछ विशिष्ट लोग सावरकर पर ‘नाजी’ और ‘फासिस्ट’ होने का आरोप लगाते हैं; वे स्वयं लेनिनवादी और मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और अभी भी हैं । शब्दों में बताया जाए, तो सावरकर यह ‘वास्तववादी’ और ‘राष्ट्रवादी’ थे । (‘फासिस्ट’ अर्थात वर्ष १९४० के दशक में इटली का तत्कालीन तानाशाह मुसोलिनी द्वारा चालू किए गए आंदोलन में सहभागी होने वाले)

स्वातंत्र्यवीर सावरकर मुसलमानों के शत्रु नहीं थे ! – संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत

स्वातंत्र्यवीर सावरकर मुसलमानों के शत्रू नहीं थे । उन्होने उर्दू में गज़ल लिखी है । सावरकर के विषय में आज भी गलत जानकारी समाज में है, ऐसा प्रतिपादन संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने इस समय किया ।

संघ प्रमुख द्वारा रखे सूत्र

१. स्वतंत्रता से लेकर वीर सावरकर के विषय में लोगों में जानकारी का अभाव है; लेकिन लोग इस पुस्तक के द्वारा वीर सावरकर को पहचान सकते हैं । सावरकर के समान ही स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद हैं । उनके विषय में भी सही जानकारी लोगों को उपलब्ध कराई जाएगी ।

२. जो भारत में एकता के विरोधी हैं, उनको सावरकर अच्छे नहीं लगते हैं । सावरकर का ऐसा विश्वास था कि, ‘राष्ट्रीयता , यह लोगों की उपासना के आधारपर उनमें भेदभाव नहीं करता । यही हिन्दू राष्ट्रीयता है । यहां सभी लोग समान हैं, इसलिए विशेषाधिकारों के विषय में ना बोलें ।’ हिन्दुत्व के ‘सावरकर का हिन्दुत्व’, ‘विवेकानंद का हिन्दुत्व’, ऐसा वर्णन करना यह अब एक फैशन है । हिन्दुत्व एक था, है और अंत तक रहेगा ।