बुराई में भी अच्छाई छिपी होती है’ इसका वर्तमान का उत्तम उदाहरण है ‘हिन्दुत्व का वैश्विक स्तर पर उच्चाटन’ करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर एकत्र आए संसारभर के धर्मनिरपेक्षतावादी, उदारमतवादी एवं समाजवादी ‘विद्वानों’ की परिषद ! १० से १२ सितंबर २०२१ को संपन्न हुए ‘डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ नामक इस परिषद में विद्वानों ने हिन्दू धर्म के संदर्भ में अपनी विद्वत्ता से संसार को परिचित करवाया । जगत के अनेक देशों में हिन्दू समाज वहां के अल्पसंख्यकों में अल्पसंख्यक हैं, वहां ये स्वयंघोषित विद्वान हिन्दुत्व के ‘वैश्विक’ स्वरूप से भयभीत होकर उसके उच्चाटन हेतु आगे बढे हैं । इससे पहले ही यह ध्यान में आ गया था कि उनके ज्ञान का स्तर क्या है ।
हिन्दूद्वेषियों द्वारा प्रशंसा !
इस परिषद में विद्वानों ने भले ही अप्रत्यक्षरूप से ही क्यों न हो, स्पष्ट किया कि ‘हिन्दू धर्म और उसके समर्थक जगत के सर्वाेत्तम लोग हैं ।’ परिषद में डॉ. बानू सुब्रह्मण्यम् ने कहा, ‘‘जहां ईसाई मूलतत्त्ववादी विज्ञान का विरोध करते हैं, वहां हिन्दू राष्ट्रवादी विज्ञान का समर्थन करते हैं । हिन्दू धर्म और विज्ञान, आधुनिकतावाद एवं पुरातनवाद, पूर्व और पश्चिमी तत्त्वज्ञान के गठबंधन से हिन्दू एक भयानक षड्यंत्र रच रहे हैं ।’’ आज के युग में सकारात्मक बातें स्वीकारनेवाले को आधुनिक कहा जाता है । हिन्दुत्व के आलोचक स्वीकार कर रहे हैं कि उसमें भी हिन्दू सबसे आगे हैं । आज पूरे जगत में हिन्दू धर्म, हिन्दुओं का तत्त्वज्ञान एवं धर्मग्रंथों की स्वीकारार्हता बढती जा रही है । सहस्रों लोग आज हिन्दू धर्मानुसार आचरण कर रहे हैं । इस विद्वान को उनका ही भय लग रहा है और इसलिए वह हिन्दुओं की भूमिका की ओर संदेह की दृष्टि से देख रहा है । आज अनेक हिन्दू अज्ञानवश हिन्दू धर्म की आलोचना करते हैं, उन्हें भी इन विद्वान का बोलना समझ लेना चाहिए और स्वधर्म की श्रेष्ठता अनुभव करने के लिए उचित पद्धति से उसका अध्ययन करना चाहिए ।
वैचारिक भ्रम !
इस परिषद में ब्राह्मणों का वर्चस्व, आर्य-द्रविड संघर्ष, आर्य आक्रमण सिद्धांत आदि काल्पनिक संकल्पनाओं पर चर्चा की गई । ‘हिन्दुत्व उच्चवर्णीय हिन्दुओं द्वारा चलाया जा रहा षड्यंत्र है’, ऐसा नया शोध किया गया । इसके साथ ही परिषद के आयोजक एवं समर्थक बता रहे थे कि वे हिन्दू धर्म के विरोध में नहीं अपितु उसका राजकीय उपयोग करने के लिए ‘हिन्दुत्व’ नामक ‘षड्यंत्र’ के विरोध में हैं । मूलत: इन सभी हिन्दू विरोधकों का इतिहास देखा जाए, तो उन्होंने कभी भी हिन्दू धर्म की महानता को स्वीकार नहीं किया । इसके विपरीत येनकेन प्रकारेण हिन्दू धर्म और उनके अनुयायियों के विरोध में आधारहीन आरोप लगाने में उनकी आपस में स्पर्धा ही रही है । इसलिए ‘हिन्दू धर्म का विरोध नहीं’, ऐसा कहना भी कोरी गप है । अर्थात परिषद के कुछ वक्ताओं ने बोलने के प्रवाह में व्यासपीठ पर से कह भी दिया कि यह गप है । आकांक्षा मेहता नामक किसी वक्ता ने कहा, ‘हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म, इन्हें अलग-अलग समझना भयानक है । उससे हमें अपेक्षित भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता । ये दोनों एक ही हैं ।’ इससे इस कार्यक्रम का संपूर्ण आयोजन हिन्दुत्व का उच्चाटन नहीं, अपितु हिन्दू धर्म किंबहुना हिन्दुओं का द्वेष करने के लिए होता है, यह ध्यान में आता है । इन सभी वैचारिक भ्रम में भाजपा के नेता और प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ कपिल मिश्रा ने ‘हिन्दुत्व क्या है ?’ इस पर अत्यंत विद्वत्तापूर्ण प्रकाश डाला है । उन्होंने कहा, ‘‘हिन्दुत्व का स्वाद शबरी के झूठे बेरों में है । हिन्दुत्व अर्थात प्रभु श्रीराम की मर्यादा, सीता की तपस्या, हनुमान की भक्ति, लक्ष्मण की शक्ति और राजा दशरथ के वचन ! हिन्दुत्व सत्य और सनातन विज्ञान है । जितनी गहराई में उतरेंगे, वहां हिन्दुत्व से पहचान होगी । जितने ऊंचे उठोगे, हिन्दुत्व से ही जोडे जाओगे !’’ अब पूर्वाग्रहदूषित इन दिशाहीन वैचारिक आतंकवादियों को कौन बताएगा ? संक्षेप में इस परिषद के वैचारिक भ्रम से सर्व ‘विवेकवादी’ विद्वानों का बौद्धिक दिवालियापन ही उजागर हुआ है और उनका वैचारिक उच्चाटन हो गया । दूसरी ओर आज करोडों हिन्दू धर्मशिक्षा के अभाव में वैचारिक रूप से भ्रमित हैं । इनमें से कुछ भ्रमित हिन्दू इन हिन्दूद्वेषियों के विषैले प्रचार की बलि चढ रहे हैैं । इसलिए हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है । इस परिषद का विरोध करने के लिए जागतिक स्तर पर अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने अनेक कार्यक्रम लेकर जागृति करने का प्रयत्न किया । इससे हिन्दुत्वनिष्ठों को उनके बल और संगठन का महत्त्व व व्यापकता ध्यान में आई । आधुनिक काल में ‘धर्म की रक्षा’ के लिए इतनी भारी मात्रा में हिन्दुओं का ‘ग्लोबल’ एकत्रीकरण प्रथम ही देखने के लिए मिला, यह एक अच्छा प्रसंग है । इससे आए समान अनुभव हिन्दुओं को प्रेरणा देते रहेंगे । इसलिए यह परिषद हिन्दुओं के लिए एक प्रकार से वरदान ही सिद्ध हुई है । हिन्दूद्वेषियों द्वारा हिन्दुओं के विरोध में विषवमन करने के उपरांत हिन्दू-संगठन अधिक बलवान होने के लिए अब हिन्दुओं को अपना पद, पक्ष, संप्रदाय, संगठन आदि को एक ओर रखते हैं और हिन्दू-संगठन की व्याप्ति वृद्धिंगत करते हुए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए कटिबद्ध होते हैं !