२० वर्षाें की प्रदीर्घ कालावधि के उपरांत अंततः अमेरिकी सेना की अंतिम टुकडी ने ३० अगस्त की मध्यरात्रि अफगानिस्तान छोडा । सेना की अंतिम टुकडी को लेकर अमेरिकी विमान के उडते ही तालिबानी आतंकवादियों ने हवा में बंदूक की गोलियों की तीव्र आतिशबाजी कर ‘स्वतंत्रता’ का आसुरी आनंद मनाया । साथ ही साथ तालिबान ने अफगानिस्तान पूर्ण स्वतंत्र होने की घोषणा की । वास्तव में अमेरिका ने स्वयं पर हुए जिहादी आक्रमण का, साथ ही तालिबानियों से प्रतिशोध लेने के लिए अफगानिस्तान में प्रवेश किया था । २० वर्ष अमेरिका का वहां अधिपत्य होते हुए भी आज इतनी विशाल संख्या में तालिबानी आतंकवादी जीवित क्यों हैं ? वे केवल जीवित ही नहीं हैं, अपितु उन्होंने अमेरिका की सेना को सिर पर पांव रखकर भागने के लिए विवश कर पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण प्राप्त किया है । अमेरिकी सेना के घातक शस्त्र भी तालिबानी आतंकवादियों को प्राप्त हुए हैं । ‘वे उनके नियंत्रण में कैसे आएं ?’ ‘२० वर्षाें के उपरांत भी आज अफगानिस्तान क्यों धधक रहा है ?’ ‘अमेरिका ने इतने वर्ष वहां क्या किया ?’ इत्यादि प्रश्न अंत तक अनुत्तरित ही रहे । अमेरिका की इस संदेहास्पद भूमिका के कारण विश्व के अन्य देशों का उस पर से विश्वास पूर्णत: समाप्त हो सकता है ।
भारत के समक्ष उपस्थित संकट !
अमेरिका अफगानिस्तान छोडकर गई; परंतु जाते हुए उसने अनेक प्रश्न, समस्याएं और संकट निर्माण किए हैं । वर्तमान काल में अफगानिस्तान का प्रत्येक घटनाक्रम भारत की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि उसका सीधा परिणाम भारत पर होगा । अफगानिस्तान में तालिबानी अर्थात जिहादी राज्य लागू हुआ है । गैर इस्लामियों को जीने का अधिकार ही नहीं, ऐसी जिहादी आतंकवादियों की मानसिकता है । इसलिए जहां-जहां वे बहुसंख्य हैं वहां अल्पसंख्यकों को तथा जहां वे अल्पसंख्यक हैं वहां बहुसंख्यकों को मरने तक प्रताडित करना उन्हें अपना धर्मपालन लगता है । इसीलिए पूरा विश्व इन जिहादी आतंकवादियों से पीडित है । स्वतंत्रता के काल से पाकिस्तान के जिहादी भारत में आतंकवादी गतिविधियां कर रहे हैं । हाल ही के कुछ दशकों में इन गतिविधियों को निरंतर चीन का समर्थन प्राप्त हुआ है । चीन की बढती दादागिरी भारत के लिए सिरदर्द है । तथापि भारत से गलवान घाटी में जमकर मार खाने के उपरांत भारत से प्रत्यक्ष युद्ध की तुलना में छुपे युद्ध का सरल विकल्प चीन ने चुना है । इसलिए पैसों के बल पर नेपाल, श्रीलंका इत्यादि भारत के पडोसी राष्ट्रों को भारत से तोडने का यथासंभव प्रयास चीन कर रहा है । इसमें अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान से की वापसी चीन के लिए स्वर्णिम अवसर सिद्ध हुआ है । अमेरिका के जाने से चीन तालिबान को स्वयं के षड्यंत्र में सहभागी कर उसका उपयोग भारत के विरुद्ध तो करेगा ही; परंतु अफगानिस्तान में विपुल मात्रा में उपलब्ध खनिज संपत्ति, जिसका अंतरराष्ट्रीय बाजार में मूल्य आज लगभग २०० लाख करोड रुपएसे भी अधिक है, उस पर भी सहजता से हाथ साफ कर सकता है । इस संपत्ति का उपयोग कर यूरोप, अफ्रीका तक पहुंचकर व्यापारवृद्धि करना और उसके माध्यम से महासत्ता बनने का स्वप्न साकार करना, ऐसी चीन की आसुरी महत्त्वाकांक्षा है । चीन को शक्ति प्रदान करनेवाला अफगानिस्तान का घटनाक्रम भारत हेतु कितना संकटदायी है, यह समझ में आता है ।
भारत के समक्ष आक्रमकता ही एकमात्र विकल्प !
हमें ध्यान में रखना होगा कि अमेरिका के लिए भले ही यह युद्ध समाप्त हो गया हो; परंतु भारत के लिए युद्ध आरंभ हो गया है । पाक आतंकवाद का समर्थन करता है, यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिद्ध करने में हमें अनेक दशक की कालावधि लगी, इतना समय चीन के संदर्भ में हमें नहीं मिलेगा; क्योंकि आज के समय में अनेक बडे देशों की निरंतर परिवर्तित होनेवाली भूमिका देखते हुए कौन-सा देश किसे समर्थन करेगा, यह सटीकता से नहीं बता सकते । रशिया की चीन के संदर्भ में परिवर्तित होनेवाली भूमिका इसका उत्तम उदाहरण है । इसलिए चीन ‘आतंकवादियों का समर्थन करनेवाला देश है’, ऐसा वैश्विक स्तर पर सिद्ध करने तक कदाचित तीसरा वैश्विक महायुद्ध आरंभ हो जाएगा । अत: शस्त्र उठाकर शत्रु का नाश करना, ऐसी कठोर नीति ही भारत को अपनानी होगी । एक ही समय चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल इत्यादि देशों से लडते हुए भारत को आंतरिक शत्रुओं का नाश करने की विशाल और कठिन चुनौती का भी सामना करना होगा । यह सरकार की खरी परीक्षा होगी ।
देश के सुरक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी हाल ही में ‘अफगानिस्तान की घटना सुरक्षा की दृष्टि से देश के समक्ष नए प्रश्न निर्माण करनेवाली है’, ऐसा वक्तव्य किया है । आगे उन्होंने ‘भारत विरोधी शक्तियों को अफगानिस्तान की परिस्थिति का अनुचित लाभ उठाकर भारत विरोधी गतिविधियां करने नहीं देंगे’, ऐसी चेतावनी भी दी है । इससे तालिबानी संकट की तीव्रता ध्यान में आती है । अब तक भारत ने पाक समर्थित आतंकवाद के संदर्भ में जो ढुलमुल नीति अपनाई, वह क्रूर तालिबानी आतंकवादियों के संदर्भ में नहीं अपना सकते । अमेरिका के अफगानिस्तान से वापस जाने के उपरांत उन्मत्त हुए तालिबानरूपी असुर को भस्मसात करने के लिए सरकार अभी कठोर निर्णय ले । इसी में राष्ट्रहित है !