‘७.६.२०२० के दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में ‘आपातकाल की पूर्वतैयारी’ के विषय में लेख प्रकाशित हुआ था । उसमें घर में लगाई जानेवाली सब्जियों की जानकारी दी थी । वह लेख पढकर गुरुकृपा से हमें प्रेरणा हुई कि ‘आज ही कृति आरंभ करेंगे ।’ और हमारे पास रखे गमले और प्लास्टिक के टब में हमने कुछ बीज बोएं । हमें पौधारोपण का कोई अनुभव नहीं था, तब भी भगवान की कृपा से हमारे मन में यह शंका नहीं आई कि ‘क्या हमारे लिए यह करना संभव होगा ?’
१. विविध माध्यमों से सब्जी लगाने का अध्ययन करना और पौधारोपण के विषय में प्रबोधन करनेवाले नाशिक के श्री. संदीप चव्हाण से मार्गदर्शन मिलना
हमने सूचनाजाल पर (इंटरनेट पर) एवं ‘यू ट्यूब’ पर सब्जी बोने के विषय में उपलब्ध जानकारी देखी, साथ ही पौधारोपण प्रक्रिया के विषय में प्रबोधन करनेवाले नाशिक के श्री. संदीप चव्हाण से मार्गदर्शन लिया और उनके अनेक लेख भी पढे । इस कारण धीरे-धीरे हमें समझ में आने लगा कि ‘क्या करें और क्या न करें ?’
२. स्वास्थ्य की दृष्टि से जैविक पद्धति से सब्जी उगाने का निश्चय करना, गोवा की मिट्टी मुरुम होने के कारण उपजाऊ न होना और इसलिए मिट्टी की उर्वरता बढाने के लिए परिश्रम करना
कीटक और इल्लियों की वृद्धि हेतु गोवा की आर्द्र जलवायु पोषक है । इससे समझ में आया कि ‘जैविक पद्धति से (प्राकृतिक साधनों का उपयोग कर और रसायनों का उपयोग न कर) सब्जी उगाना कुछ अधिक परिश्रम का कार्य है ।’ तब भी स्वास्थ्य की दृष्टि से हमने निश्चय किया कि ‘सब्जी उगाने के लिए रसायनों का उपयोग नहीं करेंगे ।’ गोवा की मिट्टी में मुरुम की मात्रा अधिक होने के कारण उसकी उर्वरता अल्प है । इसलिए ‘इस मिट्टी से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए मिट्टी में विविध जैविक घटक (खेत की खरपतवार के अवशेष, गोबर, गोमूत्र इत्यादि) मिलाकर उसे पोषक तत्त्वों से युक्त करने के लिए अत्यधिक परिश्रम की आवश्यकता है ।’ इसलिए हमने पहले मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए परिश्रम किया ।
३. घर का गीला कचरा और बाग के सूखे पत्तों से ‘कंपोस्ट’ खाद तैयार करना
तदुपरांत हमने बाग के सूखे पत्तों और घर के गीले कचरे (सब्जी और फल के छिलकों) से ‘कंपोस्ट’ खाद बनाना प्रारंभ किया । इस खाद का दोहरा लाभ हुआ । बाग से निकलनेवाले सूखे पत्तों और घर का गीला कचरा, इन सभी का ‘कंपोस्ट’ खाद बनाने के लिए उपयोग करने से पौधों के लिए अत्यंत पोषक खाद घर में ही नि:शुल्क तैयार होने लगी । यह खाद पर्यावरण हेतु भी पूरक है ।
४. पौधों को मिट्टी के घटक मिलने हेतु उनमें सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि आवश्यक होना और उस हेतु बनाए जानेवाले ‘जीवामृत’ के लिए आवश्यक देशी गाय का ताजा गोबर एवं गोमूत्र भगवान की कृपा से सहजता से तथा नि:शुल्क मिलना
मिट्टी में कार्यरत सूक्ष्म जीवाणू पौधों को आवश्यक सभी घटक प्रदान करते हैं । मिट्टी में कितनी भी खाद डाली जाए, तब भी पौधों को मिट्टी के घटक मिलने के लिए उनमें सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होना आवश्यक है । इसलिए जैविक खेती में देशी गाय के ताजे गोबर और गोमूत्र से बनाए गए ‘जीवामृत’ का उपयोग करते हैं । हमने सूचनाजाल से यह जानकारी समझ ली । तदुपरांत हमारे घर दूध देने के लिए आनेवाले व्यक्ति से देशी गाय का गोबर और गोमूत्र के संदर्भ में पूछा । उन्होंने वह नि:शुल्क देना आरंभ किया । इस प्रकार पौधों के लिए जो आवश्यक है, वह भगवान उपलब्ध करवाते रहे । साथ ही ‘मैं तुम्हारे साथ हूं’, इसकी भी अनुभूति भगवान देते रहे । इस प्रक्रिया में हमें देशी गाय का महत्त्व भी समझ में आया ।
(‘जीवामृत’ बनाने की पद्धति : एक प्लास्टिक की बालटी में १० लीटर पानी, आधा किलो देशी गाय का ताजा गोबर, आधा लीटर गोमूत्र, किसी भी दाल का १०० ग्राम आटा, १०० ग्राम प्राकृतिक गुड और १ मुठ्ठी मिट्टी, यह सभी एकत्रित कर अच्छे से मिला लें । उसे सूती कपडे से अथवा बोरी से ढकें । यह मिश्रण ३ दिवस, प्रतिदिन सुबह-सायंकाल लकडी से २ मिनट हिलाएं । इस प्रकार ‘जीवामृत’ तैयार होता है । तदुपरांत १ लीटर जीवामृत और १० लीटर पानी, इस अनुपात में मिलाकर वह वृक्षों को दें ।)
५. अग्निहोत्र की विभूति का उपयोग करने पर उसके अत्यधिक सकारात्मक परिणाम मिलना
मेरे पिता श्री. प्रकाश करंदीकर विगत कुछ वर्षाें से नियमित अग्निहोत्र कर रहे हैं । हमने अग्निहोत्र की विभूति (राख) मिट्टी में मिलाई और उसका कीटनाशक के रूप में उपयोग किया । हमें उसके भी सकारात्मक परिणाम अनुभव हुए ।
६. ऋतु के अनुसार सब्जियां लगाना और पूर्वानुभव न होते हुए भी सब्जियों का अच्छा उत्पादन होना
इस पूरे वर्ष में हमने भिंडी, ककडी, बैंगन, मिर्ची, टमाटर, मूली, पालक, मेथी, धनिया, लाल भाजी, लोबिया, फूलगोभी, अदरक, हलदी, प्याज, पुदीना, ग्वार, कद्दू, लौकी, तुरई, ये सब्जियां विशिष्ट ऋतु के अनुसार लगाई और गुरुकृपा से उसमें हमें अत्यधिक सफलता मिली । सूचनाजाल के लोग विगत १० – १२ वर्ष से पौधारोपण कर रहे हैं । उनके चलचित्र (वीडियो) देखकर हम कृति करते थे । उनके यहां होनेवाला उत्पादन और हमारा उत्पादन लगभग एक समान ही था । हमारे पास केवल कुछ मास का ही अनुभव था, तब भी हमें उनके जितना ही सब्जियों का उत्पादन मिला । तब ‘भगवान के लिए कुछ भी असंभव नहीं’, यह अनुभव होने से हमारा मन कृतज्ञता से भर गया ।
७. सब्जियों के साथ औषधि वनस्पतियों का रोपण करना
सब्जियों के साथ ही आपातकाल हेतु उपयुक्त कुछ औषधि वनस्पतियों का भी हमने रोपण किया है, उदा. तुलसी, नींबू घास, घृतकुमारी (ग्वारपाठा), पान के पत्तों की बेल, दूर्वा (दूब), बेल, ऐरावती (पत्थरचट्टा), ब्राह्मी, कृष्णवसा, मंडूकपर्णी, सर्पगंधा, शतावरी, अजवाईन, पिप्पली, गिलोय, हलदी, नीम इत्यादि ।
८. घर के बाग की सब्जियों के विषय में ध्यान में आए विशेषतापूर्ण सूत्र
अ. घर के बाग की सब्जियां बाजार की सब्जियों की तुलना में अत्यधिक स्वादिष्ट बनती हैं ।
आ. यह ताजी सब्जियां तत्काल अर्थात केवल १० मिनट में पक जाती हैं ।
इ. सामान्यतः बाजार की भिंडी पकाते समय उसमें तार आते हैं जिससे वह थोडी लिजलिजी होती है । ‘भिंडी से तार न निकले’, इसके लिए उसमें कुछ खटाई डालना आवश्यक है । घर के बाग की नरम ताजी भिंडी की सब्जी बनाने पर वह लिजलिजी नहीं होती ।
ई. बाजार की लौकी को कद्दूकस करने पर वह काली पडने लगती है; परंतु घर के बगीचे में जैविक पद्धति से उगाई गई लौकी कद्दूकस करने पर वह हरा रहता है ।
उ. बाजार से लाई मूली की सब्जी पकाने पर उसकी विशिष्ट तीव्र गंध पूरे घर में फैलती है; परंतु घर के बाग की ताजी मूली की सब्जी बनाने पर ऐसी गंध नहीं आती ।
ऊ. घर के बाग में उगाए टमाटर और बैंगन हमने आश्रम में भेजे । वह सब्जी सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी को दिखाने पर उन्होंने कहा, ‘सब्जियों से सात्त्विक स्पंदन प्रक्षेपित हो रहे हैं ।’
९. पौधों से सीखने के लिए मिले सूत्र
अ. हमने विज्ञान की पुस्तक में पढा था, ‘प्रदूषण न्यून करने में पौधे सहायक होते हैं’; परंतु ‘पौधों के साथ मन सकारात्मक रहना, मन प्रसन्न होना और नया उत्साह मिलना’, ऐसा अनुभव भी इस पूरे वर्ष हमें हुआ ।
आ. सीखने के लिए मिला कि धूप, हवा अथवा वर्षा ऐसी किसी भी स्थिति में पौधे दृढता से खडे रहते हैं, उसी प्रकार ‘हमें किसी भी स्थिति में स्थिर रहना चाहिए ।’
इ. पौधे किसी से भी कोई अपेक्षा न रख निरंतर अन्यों को देते रहते हैं, उसी प्रकार हमारा हाथ भी निरंतर देनेवाला और अन्यों की सहायता करनेवाला होना चाहिए ।
ई. एक बार ककडी की बेल को ३ – ४ ककडियां फली थीं । तब हमें अत्यधिक आनंद हुआ; परंतु २ दिनों के उपरांत उनमें से एक ककडी गिलहरी ने खा ली । तब मुझे बहुत बुरा लगा । इस प्रसंग का चिंतन करने पर मेरे ध्यान में आया ‘जिस बेल ने यह ककडी निर्माण की, उसकी ककडी किसी ने भी खाई, तो भी उसे कोई आपत्ति नहीं । इसका तात्पर्य, ‘प्रकृति द्वारा निर्मित बाग का सबकुछ मेरा है’, ऐसा मैं नहीं कह सकती । ‘उसमें कीटक, पशु और पक्षियों का भी कुछ भाग है’, यह स्वीकार करने पर हमें बुरा नहीं लगा ।
१०. ‘तत्परता से गुरु आज्ञापालन करने से ईश्वर का संकल्प कार्यरत होता है’, ऐसी सीख मिलना
दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में ‘सब्जियों का रोपण करें !’, ऐसी सूचना प्रकाशित होने पर तत्काल सब्जियों का रोपण करने का विचार भगवान ने हमारे मन में उत्पन्न किया और हमसे वैसी कृति भी करवाई । इस प्रसंग से सीखने के लिए मिला कि ‘तत्परता से गुरु आज्ञापालन करने पर ईश्वर का संकल्प कार्यरत होता है ।’
११. कृतज्ञता एवं प्रार्थना
कोई भी पूर्वानुभव न होते हुए भी अल्प कालावधि में हम अनेक प्रकार की सब्जियों का सफलतापूर्वक रोपण कर पाएं और २ परिवार हेतु पर्याप्त सब्जियां मिलने लगीं । ‘भगवान ने हमें माध्यम बनाकर यह नई सेवा सिखाई और गुरुकृपा की अनुभूति भी दी’, इसलिए गुरुदेवजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ! ‘आगामी आपातकाल में साधकों को घर में किए रोपण से अन्न उपलब्ध हो, यह श्री गुरुचरणों में प्रार्थना !’
– श्री. मयूरेश कोनेकर और श्रीमती राघवी कोनेकर, ढवळी, फोंडा, गोवा. (१.५.२०२१)