आपातकाल में प्राणरक्षा हेतु करने योग्य तैयारी

मानसिक स्तर की पूर्वतैयारी

     आपातकाल में अनेकों को मन अस्थिर होना, चिंता होना, निराशा आना, भय लगना आदि कष्ट होते हैं । ये कष्ट न हों तथा प्रतिकूल परिस्थिति का धैर्यपूर्वक सामना कर पाने के लिए पहले से ही मन को स्वसूचना दें ।

आध्यात्मिक स्तर की पूर्वतैयारी

     आपातकाल में सुरक्षित रहने हेतु व्यक्ति अपने बल पर कितनी भी तैयारी करे, महाभीषण आपदा से बचने हेतु अंत में पूर्ण विश्वास ईश्वर पर ही रखना पडता है । मानव यदि साधना कर ईश्वर की कृपा प्राप्त करे, तो ईश्वर किसी भी संकट में रक्षा करते ही हैं ।

तैयारियां शीघ्र आरंभ करें !

     सभी अभी से कृत्य करें, तो आपातकाल सहनीय बनेगा ।

संकलनकर्ता : परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

(संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक व्यवस्था’)

शारीरिक स्तर पर करने योग्य पूर्वतैयारी

     जीवित रहने के लिए ‘भोजन’ मनुष्य की एक मूलभूत आवश्यकता है । आपातकाल में हम पर भूखे रहने का समय न आए, इसके लिए पहले ही पर्याप्त अनाज खरीदकर रखना आवश्यक है । वर्तमान पीढी को विविध प्रकार का अनाज संग्रह करने तथा उन्हें दीर्घकाल तक टिकाने की पद्धतियां ज्ञात नहीं होतीं । अनाज का कितना भी संग्रह करें; वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है । ऐसे में अनाज की कमी न हो, इसके लिए तैयारी स्वरूप अनाज का रोपण करना भी आवश्यक है । चावल, साबुत दालों जैसे अनाज का रोपण करना सब के लिए संभव नहीं; परंतु कंदमूल, कम पानी में अधिक उत्पादन देनेवाली बारह माह उगनेवाली सब्जियां और बहुपयोगी फलों के पेडों का रोपण घर के परिसर और सदनिका के (‘फ्लैट’ के) छज्जे में भी कर सकते हैं । आपातकाल में भोजन पकाने के लिए ‘गैस’ आदि उपलब्ध न होने पर चूल्हा, ‘सोलर कुकर’ आदि का भी उपयोग कर सकते हैं । मनुष्य पानी के बिना नहीं जी सकता और बिजली के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता । इसके लिए पानी की व्यवस्था करना, पानी के संग्रहण और शुद्धीकरण की पद्धतियां तथा बिजली के विकल्पों का भी उपयोग करना चाहिए ।

     स्वयं की आवश्यकता, स्थान की उपलब्धता, आर्थिक परिस्थिति, हम जिस स्थान पर रहते हैं, वहां की जलवायु और भौगोलिक स्थिति आदि का विचार कर स्वयं के लिए सुविधाजनक तैयारी करें ।

आपातकाल में मन स्थिर रहने के लिए साधना करें !

     ‘कोरोना महामारी’ आगे आनेवाली आपातकालीन स्थिति की एक झलक है । आगे काल कितना भीषण स्वरूप धारण करेगा, तब स्थिति कैसी होगी, इसका अनुमान लगाना भी कठिन है । इस आपातकाल से पार होने के लिए साधना ही एकमात्र पर्याय है । वर्तमान में सर्वत्र फैलनेवाले रोग, महंगाई, युद्ध समान परिस्थिति, बढते अपराध आदि सहित सभी समस्याओं की जड तथा समाधान ‘कालचक्र’ ही है । इस कालचक्र में स्थिर रहकर परिस्थिति का सामना करने के लिए, साथ ही मन की स्थिरता बनाए रखने के लिए साधना महत्त्वपूर्ण है । ईश्वर अथवा गुरु के प्रति श्रद्धा ही संकट का सामना करने के लिए व्यक्ति को बल देकर निर्भय बनाती है ।