बंगाल हिंसाचार प्रकरण में उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया आश्‍वासक निर्णय !

पू. (अधिवक्ता) सुरेश कुलकर्णी

     ‘हाल ही में बंगाल के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैैं । इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ । चुनकर आए तृणमूल कांग्रेस दल के कार्यकर्ताओं ने विरोधी दल के लोगों के (हिन्दुओं के) विरोध में बडी मात्रा में हिंसाचार किया । इस हिंसाचार में प्रताडित हुए पीडितों के पक्ष में बंगाल उच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया । इस निर्णय ने हिन्दुओं को आश्‍वासन कर न्याय व्यवस्था पर विश्‍वास अधिक दृढ किया है ।

१. बंगाल के तृणमूल कांग्रेस के लोगों द्वारा विपक्ष के लोगों पर (हिन्दुओं पर) भयानक अत्याचार करना

     विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत मिलने के उपरांत ममता बनर्जी के तृणमूल दल के कार्यकर्ताओं ने विपक्षी दल के लोगों को लक्ष्य बनाया । उनके घर और दुकानें जलाई गईं । उनके घरों से सामान लूटा गया । उन पर प्राणघातक आक्रमण किए गए एवं उनका व्यवसाय बंद किया गया । रास्ते पर बिक्री करनेवाले अनेक विक्रेताओं को बाजार से खदेड दिया गया । अनेक दुकानों के प्रवेशद्वार के सामने अवरोध निर्माण किए गए । उनके द्वारा उठाई गई आपत्तियों की उपेक्षा की गई । कुछ स्थानों पर पीडित परिवाद (शिकायत) ही प्रविष्ट न कर पाएं, इस हेतु प्रयास किए गए । इस कारण सहस्रों पीडित हिन्दू परिवारों ने घर-द्वार छोडकर पडोसी राज्य असम में आश्रय लिया । विशेषत: पीडित लोगों में अधिकतर भाजपा के मतदाता थे ।

२. दंगाइयों के भय के कारण विस्थापित हिन्दुओं द्वारा गांव वापस जाना अस्वीकार करना

     हिंसाचार के कारण इतना भय निर्माण हुआ था कि हिंंसाचार रुकने पर भी विस्थापित पीडित अपने गांव वापस जाने के लिए तैयार नहीं थे । पीडितों ने बताया कि उनके द्वारा किए गए परिवाद (शिकायतें) वापस लेने के लिए उन पर दबाव निर्माण किया जा रहा है । बडी मात्रा में हिंसाचार होते हुए भी पुलिस अथवा प्रशासन ने उसे रोकने का कोई भी प्रयास नहीं किया । पीडितों के परिवाद भी प्रविष्ट नहीं किए गए । इसलिए पीडित नागरिकों ने मानवाधिकार आयोग एवं उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । प्रियांका नामक याचिकाकर्त्री ने बताया कि वह १२ से १५ जिलों में घूमी । प्रत्येक जिले में लोगों पर अत्याचार किए गए हैं तथा अनेक लोग निराश्रित होकर दूसरे राज्य में गए हैं । उनकी उपजीविका समाप्त हो गई है और भय के कारण वे वापस आने के लिए तैयार नहीं हैं ।

३. बंगाल उच्च न्यायालय द्वारा हिंसाचार प्रकरण में समिति नियुक्त करना तथा उसे संपूर्ण राज्य का दौरा कर ब्योरा प्रस्तुत करने का आदेश देना

     इस हिंसाचार प्रकरण में बंगाल उच्च न्यायालय में १० जनहित याचिकाएं प्रविष्ट की गई । सभी याचिकाएं न्यायालय ने सुनवाई के लिए स्वीकार की । तृणमूल कांग्रेस दल ने न्यायालय में आरोप लगाया कि ‘परिवाद झूठें हैं । अत्याचार हुआ ही नहीं । हिंसाचार हुआ; किन्तु उसका कारण धार्मिक और जातीय द्वेष नहीं था । उसे भाजपा धार्मिक रंग दे रही है ।’ इस प्रकरण में उच्च न्यायालय ने समय-समय पर सुनवाई की । उच्च न्यायालय ने केंद्रीय और राज्य मानवाधिकार संगठन के कार्यकर्ता एवं सरकार के प्रतिनिधियों की समिति स्थापित की । इस समिति को हिंसाचारग्रस्त क्षेत्र का सत्यपरक दौरा कर उसका ब्योरा प्रस्तुत करने के लिए कहा । यह ब्योरा प्राप्त होने पर उच्च न्यायालय द्वारा बंगाल सरकार और प्रशासन को विविध सूचनाएं दी गईं । कुल मिलाकर बंगाल सरकार और प्रशासन की भूमिका यही थी कि ‘किसी पर भी अत्याचार नहीं हुए हैं । ये सभी याचिकाएं भाजपा द्वारा राजनीतिक उद्देश्य से और चुनकर आए सत्ताधारी दल की मानहानि करने के उद्देश्य से प्रविष्ट की गई हैं ।’ राज्य सरकार और मानवाधिकार समिति द्वारा दिए गए आंकडों में भी अंतर था ।

४. उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किए गए मानवाधिकार आयोग के ब्योरे के कारण बंगाल सरकार द्वारा किया गया हिंसाचार न्यायालय के समक्ष आना और इस कारण सरकार का भेद खुलना

     एक याचिकाकर्ता ने बताया कि उपद्रवियों ने उसका घर जलाया, साथ ही उसका व्यवसाय बंद करवाया गया । इसके विरोध में वह पुलिस के पास गया; परंतु पुलिस ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की । पीडितों की उपजीविका नष्ट की गई । इसलिए यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद २१ के अनुसार अन्याय है । इस अन्याय के विरोध में पुलिस में किया गया परिवाद वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया । पुलिस ने इन सभी परिवादों की ओर ध्यान नहीं दिया । न्यायालय में जनहित याचिका प्रविष्ट की गई । तब पुलिस ने पीडितों को स्पष्ट रूप से बताया कि ‘अब न्यायालय में गए हो न ? फिर तुम्हें न्यायालय ही न्याय देगा । हमारे पास मत आओ !’ उसी समय राज्य के महाधिवक्ता उच्च न्यायालय में बता रहे थे कि ‘पीडितों को राज्य सरकार सहायता कर रही है ।’ तदुपरांत न्यायालय ने मानवाधिकार कार्यालयों का ब्योरा मांगा । ब्योरे में स्पष्ट रूप से लिखा है कि हिंसाचार भयानक था और राज्य सरकार कोई भी सहायता नहीं कर रही थी ।

५. मानवाधिकार समिति द्वारा पीडितों पर हुए भयानक अत्याचार बताना

     केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित की गई मानवाधिकार समिति द्वारा ब्योरा प्रस्तुत किया गया । उसके अनुसार बंगाल में चुनाव के उपरांत राज्य में बडी भयानक मात्रा में अत्याचार हुए हैं ।

अ. नागरिकों की संपत्ति लूटी गई और उनकी हानि की गई ।

आ. दंगाखोरों ने बहुत भय निर्माण किया । इसलिए नागरिकों को घर छोडकर जाना पडा ।

इ. पीडित नागरिक अन्य राज्यों में स्थलांतरित हुए । तदुपरांत उनकी महिलाओं के साथ शारीरिक मारपीट की गई, साथ ही उन पर लैंगिक अत्याचार भी किए गए ।

ई. हिन्दुओं की संपत्ति छीनी गई अथवा उन पर बलपूर्वक अतिक्रमण किया गया । दंगाखोरों ने बलपूर्वक पीडितों की दुकानें और व्यवसाय बंद कराए, साथ ही उनसे रुपए भी ऐंठे ।

६. बंगाल पुलिस द्वारा पीडितों पर हुए अत्याचार छिपाने का प्रयास करना

     १० जून को उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किए गए ब्योरे के अनुसार पीडितों की कुल संख्या ३ सहस्र २४३ थी । उनके परिवाद केंद्र और राज्य मानवाधिकार आयोग के पास आएं । तदुपरांत केंद्रीय मानवाधिकार की ओर से इन परिवादों की प्रति स्थानीय पुलिस और प्रत्येक जिले के पुलिस अधीक्षक को दी गई । तब पुलिस ने भूमिका अपनाई कि ‘ऐसे कोई भी परिवाद हमें प्राप्त नहीं हुए हैं । राज्य में किसी पर भी अत्याचार नहीं हुए हैं । इसके विपरीत पुलिस लोगों कीसहायता कर रही है । ’

     इस पर उच्च न्यायालय ने कहा कि यह प्रश्‍न एक मतदाता क्षेत्र का न होकर संपूर्ण राज्य के जनता की सुरक्षा का है । इसलिए प्रत्येक पीडित को पुलिस सुरक्षा मिलनी चाहिए और अपराधियों को दंड दिया जाना चाहिए । इस सुनवाई के समय राज्य के महाधिवक्ता ने न्यायालय को एक ‘इमेल’ पता देकर कहा कि इस पर जो पीडित परिवाद प्रविष्ट करेंगे, उन पीडितों के परिवाद पर विचार कर कार्यवाही की जाएगी ।

७. उच्च न्यायालय द्वारा बंगाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाना, साथ ही राज्य में कानून-सुव्यवस्था नियंत्रित करने का आदेश देना

     बंगाल में दंगाइयों ने किए हिंंसाचार के प्रकरण में न्यायालय ने अपने निर्णय में अनेक बार रोष व्यक्त किया । न्यायालय ने कहा कि जब जनता की रोजीरोटी छीनी जा रही है और उनकी संपत्ति नष्ट की जा रही है, तब सरकार की निष्क्रियता उचित नहीं है । इस प्रकार हम सरकार को कार्य नहीं करने देंगे । लोगों पर हुए अत्याचार की तत्काल जांच कर पीडितों को न्याय मिलना चाहिए । लोगों में विश्‍वास निर्माण होगा और उनके मन का भय दूर होगा, इस प्रकार जागृति करें । पीडितों को पुन: उनकी मातृभूमि में स्थापित करें । दंगाखोरों के विरुद्ध कार्यवाही करें ।’

     इस निर्णय में न्यायालय ने मानवाधिकार समिति स्थापित करने के लिए बताया । साथ ही कहा कि ‘यह समिति प्रत्येक जिले का दौरा कर पीडितों पर हुए अत्याचारों का ब्योरा न्यायालय को दे ।’ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को इस समिति की सहायता करने का स्पष्ट आदेश दिया । ‘जनता में विश्‍वास निर्माण हो, इस प्रकार राज्य सरकार कानून-व्यवस्था नियंत्रित करें’, ऐसा भी उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा ।

     जब जनता पर अत्याचार हो रहे थे, उनकी रोजीरोटी छीनी जा रही थी और उनकी महिलाआें पर अत्याचार हो रहा था, तब पुलिस और प्रशासन मूक दर्शक बनकर देख रहे थे, यह न्यायालय को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा । इसलिए न्यायालय ने अपने निर्णय में सरकार पर गंभीर आरोप लगाए । इस प्रकरण की अगली सुनवाई ३० जून को रखी गई । ३० जून को हुई सुनवाई में न्यायालय ने केंद्रशासन, बंगाल सरकार और केंद्रीय चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है ।

८. न्यायालय का निर्णय !

     इस निर्णय के कारण बंगाल की ममता बनर्जी सरकार की भय के कारण नींद उड गई । राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष याचिका प्रविष्ट की और इस आदेश को चुनौती दी । इस याचिका की सुनवाई न होने के कारण राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में यह आदेश ‘रिकॉल’ (पुनःविचारार्थ) हेतु आवेदन दिया । इस आवेदन में ‘हमें पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया । इसलिए हम कागजात प्रस्तुत नहीं कर पाए । इसलिए यह आदेश वापस लें’, ऐसी विनती की गई । जैसे अपेक्षित था, उच्च न्यायालय ने यह आवेदन निरस्त किया ।

     यह निर्णय पीडित हिन्दुआें के लिए आश्‍वासक है । इसीलिए देश की १०० करोड जनता का आज भी न्यायव्यवस्था पर विश्‍वास है । उन्हें स्वयं पर हुए प्रत्येक अन्याय के विरुद्ध न्यायालय, मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग, ऐसी प्रत्येक संवैधानिक संस्था से न्याय मांगना चाहिए ।

‘श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।’

– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद और अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय. (२३.६.२०२१)