‘सात्त्विकता एवं धर्माचरण’ के बिना शाश्वत विकास असंभव ! – शॉन क्लार्क

  • देहली में संपन्न ‘ग्रामीण आर्थिक परिषद’ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से शोध कार्य का प्रस्तुतीकरण 

  • इस शोध कार्य के मार्गदर्शक हैं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

केंद्रीय वस्त्र मंत्री श्री. गिरिराज सिंह की भेंट लेते (बाईं ओर) श्री. शॉन क्लार्क

नई देहली – महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय एवं ‘स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन’ के संयुक्त आयोजन में नई देहली में हाल ही में संपन्न ‘ग्रामीण आर्थिक परिषद’ में (‘रूरल इकोनॉमिक फोरम’ में प्रस्तुत शोध में कहा गया है कि प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों में ‘सात्त्विकता’, धर्माचरण, भारतीय गाय का महत्त्व तथा नामजप ही वास्तव में शाश्वत विकास के मुख्य घटक हैं । केवल पर्यावरणपूरक प्रौद्योगिकी के कारण नहीं, अपितु आध्यात्मिक शुद्धता पर आधारित विचारधारा के बिना मानव जीवन तथा पृथ्वी का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा !’ इस शोध का प्रस्तुतीकरण महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोधकार्य समूह के सदस्य श्री. शॉन क्लार्क ने किया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी इस शोध के मार्गदर्शक हैं ।

केंद्रीय वस्त्र मंत्री श्री. गिरिराज सिंह ने शोध की प्रशंसा की !

केंद्रीय वस्त्र मंत्री श्री. गिरिराज सिंह ने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के प्रयासों की, साथ ही ‘भारत के समृद्ध आध्यात्मिक स्रोतों की सहायता से प्रतिबंध एवं उपायाभिमुख स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित करने तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उससे मिलनेवाले लाभ’ पर आधारित शोध की प्रशंसा की ।

श्री. शॉन क्लार्क ने कहा कि

श्री. शॉन क्लार्क

१. औद्योगिक क्रांति से लेकर आज तक के विकास के पथ पर चलते समय पर्यावरण का बहुत कुछ नहीं हुआ । वर्ष १९७२ में स्टॉकहोम परिषद में ‘शाश्वत विकास’ की संकल्पना रखी तो गई; परंतु उसके ५० वर्ष उपरांत भी उसका प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हुआ है ।

२. वर्तमान समय के पर्यावरणीय संकटों का कारण है मानव की मनोवृत्ति में समाहित असात्त्विकता । इसीलिए ‘विकास’ की संकल्पना केवल भौतिक संकल्पना न रहकर वह आध्यात्मिक दृष्टि से भी सात्त्विक होनी चाहिए, यह इस शोधकार्य का निष्कर्ष है ।

३. ‘जीडीवी बायोवेल’ प्रौद्योगिकी का उपयोग कर किए गए प्रयोग से यह ध्यान में आया कि स्नान के पानी में गोमूत्र की कुछ बूंदें डालने पर व्यक्ति की देह में स्थित सप्तचक्र ६५से ७८ प्रतिशत संतुलित रूप से कार्यरत होते हैं, जबकि गोमूत्र की कुछ बूंदें प्राशन करने पर वे ९० प्रतिशत तक संतुलित पद्धति से कार्यरत होते हैं । गाय जहां विचरण करती है, उस परिसर में सकारात्मक स्पंदन २२ प्रतिशत से बढते हैं । गोमूत्र के उपयोग से चर्मरोग तथा स्वास्थ्य पर सकारात्मक परिणाम दिखाई दिए । उसके कारण गाय से मिलनेवाले उत्पाद ग्रामीण भारत के लिए समृद्धि का रहस्य सिद्ध हो सकते हैं ।

४. अनेक बीमारियों तथा व्यसनाधीनता का उद्गम आध्यात्मिक कारणों से होता है, यह बात शोधकार्य से रेखांकित होती है । ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप के कारण व्यसनमुक्ति, मानसिक स्थिरता तथा प्रारब्धजन्य विकारों पर नियंत्रण रखना संभव होता है । नियमितरूप से ३ घंटे ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप करने से २० वर्ष पुराना एक्जिमा (चर्मरोग) ठीक हुआ, इसका उदाहरण इस शोध में दिया गया ।

५. कुल मिलाकर वर्तमान समय में अध्यात्मशास्त्र के अनुसार विश्व में पर्यावरणीय परिवर्तन तथा उसके भयंकर दुष्परिणाम टालने के लिए किए जानेवाले उपाय ऊपरी हैं । विश्व में असात्त्विकता बढने से उसका विपरीत परिणाम पूरे विश्व के जलवायु का संचालन करनेवाले पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश, इन पंचमहाभूतों पर होता है । वातावरण में सात्त्विकता बढाने का सर्वोत्तम उपाय है साधना करना !