राज्य में एक ओर हिन्दी भाषा को अनिवार्य किया जा रहा है, वहीं ‘मातृभाषा’ के रूप में अनिवार्य मराठी भाषा की उपेक्षा की जा रही है !
श्री प्रीतम नाचणकर, मुंबई

मुंबई – आगामी शैक्षणिक वर्ष से कक्षा १ से आगे हिन्दी को अनिवार्य कर दिया गया है। राज्य में मराठी भाषा प्रेमी इस पर अप्रसन्नता व्यक्त रहे हैं, वहीं मनसे ने इसके विरोध में प्रदर्शन आरंभ कर दिया है । इसलिए, वर्तमान में राज्य में इस विषय पर बडी चर्चा हो रही है । राज्य में एक ओर हिन्दी भाषा को अनिवार्य किया जा रहा है, वहीं ‘मातृभाषा’ के रूप में अनिवार्य मराठी भाषा की उपेक्षा की जा रही है । वर्ष २०२३ तथा २०२४ में मराठी भाषा निदेशालय ने यह जांच की कि कार्यालयों में मराठी का उपयोग किया जा रहा है अथवा नहीं । यह पाया गया कि ४० सरकारी कार्यालयों में अधिकारियों के हस्ताक्षर, नामपट्टिकाएं एवं स्टाम्प अंग्रेजी में थे । इस प्रकार की बात कमोबेश सभी कार्यालयों में पाई गई । ये सभी रिपोर्ट दैनिक ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि श्री. प्रीतम नचनकर को सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मिली है ।

१. मराठी भाषा निदेशालय ने जिन सरकारी कार्यालयों की जांच की वहां मराठी भाषा का उपयोग औसतन ७५ से ९० प्रतिशत है । मराठी भाषा के प्रयोग के बारे में यह एक बहुत अच्छा पहलू है ।
२. यह पाया गया कि लगभग सभी कार्यालयों में नियमित पत्राचार, विभिन्न आवेदन, भुगतान, बैठकों के मिनट और आने-जाने वाले लेन-देन के रिकॉर्ड मराठी में किए जा रहे थे; किन्तु, कई कार्यालयों में यह पाया गया कि अधिकारियों तथा कर्मचारियों के हस्ताक्षर, कार्यालयों के नाम के साथ रबर स्टैम्प एवं कार्यालयों में अधिकारियों के नामवाली नामपट्टी अधिकतर अंग्रेजी में थीं ।
राज्य सरकार का स्पष्ट आदेश, लेकिन गंभीरता से नहीं हो रही कार्रवाई !
जब भूषण गगरानी राज्य सरकार के प्रधान सचिव थे, तब ७ मई २०१८ को एक सरकारी आदेश जारी किया गया था, जिसमें सरकारी लेन-देन में आधिकारिक भाषा मराठी का १०० प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया था । इस सरकारी आदेश में आदेश दिया गया था कि सभी कार्यालय वार्तालाप तथा पत्राचार, जिसमें अधिकारियों के नाम-प्लेट, हस्ताक्षर, कार्यालयों के नाम के साथ रबर स्टाम्प आदि सम्मिलित हैं, १०० प्रतिशत मराठी में होने चाहिए । आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘बांद्रा’, ‘सायन’ आदि शब्दों के स्थान पर क्रमशः – ‘वांद्रा’ तथा ‘, शीव’ शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश कागद पर है !
राज्य सरकार को स्पष्ट आदेश है कि उन सरकारी कार्यालयों में अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए जहां मराठी भाषा का प्रयोग बार-बार और जानबूझकर नहीं किया जाता है । लिखित चेतावनी जारी करना, गोपनीय अभिलेख में दर्ज करना, फटकार लगाना, एक वर्ष के लिए पदोन्नति रोकना, एक वर्ष के लिए वेतन वृद्धि रोकना आदि अनुशासनात्मक उपाय अपनाने का सरकार का स्पष्ट आदेश है । वास्तविकता यह है कि मराठी भाषा निदेशालय की ओर से बार-बार निर्देश दिए जाने पर भी उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है । सरकार के आदेश पर कार्रवाई तो दूर रही; लेकिन मराठी भाषा संचालनालय द्वारा जिन शासकीय कार्यालयों की जांच कर उनके बारे में रिपोर्ट मराठी भाषा विभाग को भेजी गई हैं, उनके अनुसार परिवर्तन करके संबंधित शासकीय कार्यालयों ने कार्रवाई की अनुपालन रिपोर्ट मराठी भाषा विभाग को भेजनी अपेक्षित है; लेकिन ये रिपोर्ट ही मराठी भाषा विभाग को नहीं भेजी जा रही हैं । ऐसी मराठी भाषा की अनिवार्यता की राज्य में स्थिति है ।
संपादकीय भूमिका
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