कुछ दिन पूर्व डॉ. चिदंबरम् के रूप में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की लडाई में योगदान देनेवाला सेनापति हमने खो दिया है । ४ जनवरी २०२५ को ८८ वें वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ । उनका देश के लिए योगदान अतुलनीय है । भारत के इस वैज्ञानिक के विषय में अब हम जान लेते हैं ।

१. भारत के परमाणु कार्यक्रम में डॉ. चिदंबरम् का अमूल्य योगदान
‘वर्ष १९७० के काल में कुछ चुनिंदा देश ही परमाणु क्षमता से सुसज्जित थे । उस काल में परमाणु क्षेत्र में भारत का सामर्थ्य बढाने में डॉ. चिदंबरम् की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही । वर्ष १९७४ में परमाणु परीक्षण कर भारत ने पूरे विश्व को चौंकाया था । डॉ. चिदंबरम् ने वर्ष १९७४ एवं १९९८ में क्रमशः ‘पोखरण १’ एवं ‘पोखरण २’, इन परमाणु परीक्षणों में परमाणु ऊर्जा विभाग के दल का नेतृत्व किया था । उनके योगदान के कारण भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर पहचान मिली । डॉ. चिदंबरम् केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार तथा वरिष्ठ भौतिक विशेषज्ञ की भूमिकाओं में देश की सेवा करते रहे । भारत की वैज्ञानिक क्षमताएं और वृद्धिंगत हो, इसके लिए नीतिजन्य क्षमता के क्षेत्र में डॉ. चिदंबरम् का बडा योगदान रहा । मूलभूत विज्ञान तथा परमाणु प्रौद्योगिकी, इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में उन्होंने ६ दशकों से भी अधिक कार्य किया, साथ ही अनेक महत्त्वपूर्ण पद भी निभाए ।

२. पोखरण के परमाणु परीक्षण की सफलता में डॉ. चिदंबरम् का महत्त्वपूर्ण योगदान !
डॉ. चिदंबरम् ने वर्ष १९६७ से ही परमाणु हथियारों की निर्मिति के क्षेत्र में अपना योगदान देना आरंभ किया । अत्यंत गुप्त रखे गए ‘पोखरण १’ के परमाणु परीक्षण की सफलता में डॉ. चिदंबरम् का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा । वे मुंबई से राजस्थान के पोखरण तक स्वयं प्लुटोनियम ले गए थे । परमाणु परीक्षण के कार्य में ‘संरक्षण अनुसंधान तथा विकास संस्था’ के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ अत्यधिक परिश्रम किए थे ।
३. अमेरिका के प्रतिबंध को ठुकराकर भारत का परमाणु परीक्षण
भारत परमाणु ऊर्जा का उपयोग शांति तथा वैज्ञानिक प्रगति के लिए करेगा, यह भारत की नीति सदैव ही स्पष्ट थी; परंतु ऐसा होते हुए भी अमेरिका तथा उनके मित्रराष्ट्रों ने भारत पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए थे । भारत ने इन प्रतिबंधों को ठुकराकर अपना परमाणु ऊर्जा का कार्यक्रम जारी रखा । भारत भले ही स्वयं किसी पर परमाणु आक्रमण नहीं करेगा; परंतु तब भी परमाणु सुसज्जित देश बनने के कारण यदि भारत पर आक्रमण हुआ, तो उस स्थिति में भारत परमाणु हथियारों का उपयोग करेगा, यह सभी को ज्ञात है । अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को ठुकराकर भारत ने वर्ष १९९८ में ‘पोखरण २’ परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक संपन्न किया । उस समय ५ परमाणु परीक्षण करने के उपरांत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने पोखरण की यात्रा की थी ।
४. अनेक पुरस्कारों से डॉ. चिदंबरम् सम्मानित
डॉ. चिदंबरम् ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष तथा भारत के परमाणु विभाग के सचिव जैसे विभिन्न दायित्वों का निर्वहन कर विज्ञान क्षेत्र के अध्येताओं की बहुमूल्य सहायता की है । डॉ. चिदंबरम् को पद्मविभूषण, सी.वी. रमन पुरस्कार, लोकमान्य तिलक पुरस्कार, होमी भाभा जीवनगौरव पुरस्कार, मेघनाथ साह पुरस्कार, अभियांत्रिकी क्षेत्र के जीवनगौरव पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।’ (७.१.२०२५)
श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय