‘स्वघोषित बुद्धिजीवियों का उत्कर्ष क्यों ?’ विषय पर विशेष परिसंवाद

मुंबई – कॉ. पानसरे, डॉ. नरेंद्र दाभोलकर जैसे तथाकथित प्रगतिवादियों की हत्या के मामलों में जांच एजेंसियों पर भारी दबाव डाला गया । जांच एजेंसियों द्वारा की जा रही जांच पर ध्यान दिए बिना, सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की बार-बार मांग की गई । डॉ. दाभोलकर हत्या मामले में ५ युवक, कॉमरेड पानसरे हत्या मामले में १२ युवकों को बंदी बना गया, गौरी लंकेश हत्या प्रकरण में १८ युवकों को बंदी बनाया गया तथा कलबुर्गी हत्या प्रकरण में ६ युवकों को बंदी बनाया गया । तथाकथित प्रगतिवादी उन सभी को जमानत मिलने से बचाने और जेल में सड़ने से बचाने का प्रयास कर रहे थे । महाराष्ट्र में, इस तथ्य के बावजूद कि ‘सनातन संस्था’ एक आध्यात्मिक संगठन है, दुष्प्रचार द्वारा इसे ‘आतंकवादी संगठन’ करार देने का झूठा ‘आख्यान’ तैयार किया गया । प्रगतिवादियों ने षड्यंत्र के माध्यम से सनातन संस्था को समाप्त करने का प्रयास किया । विशेषकर सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री.अभय वर्तक ने आरोप लगाया कि पानसरे हत्याकांड में न्याय की मांग कर रहे पानसरे परिवार ने ही मुकदमा आगे न बढने देने का सबसे अधिक प्रयास किया ।
वे ‘स्वघोषित बुद्धिजीवियों का इतना महिमामंडन क्यों ?’ और ‘कॉमरेड की हत्या और वास्तविक स्थिति’ विषयों पर आयोजित विशेष ऑनलाइन संगोष्ठी में बोल रहे थे । इसमें हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय सचिव अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर, तथा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री.रमेश शिंदे उपस्थित थे ।
कॉमरेड पानसरे के विचारों का वास्तविक स्वरूप क्या है ? – एडवोकेट संजीव पुनालेकर
कॉमरेड पानसरे ने पूर्व पुलिस अधिकारी शमशुद्दीन मुश्रीफ की पुस्तक ‘किसने करकरे को मारा ?’ का प्रचार किया । इस पुस्तक में भारतीय खुफिया एजेंसियों पर संदेह जताकर कसाब जैसे आतंकवादियों का समर्थन करने का प्रयास किया गया है । फिर ऐसी पुस्तक के प्रचारक श्री. पानसरे के विचार क्या थे ? आरोप है कि डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की संस्था को विदेश से धन मिल रहा है । उनके अपने कार्यकर्ता अविनाश पाटिल ने उनके ट्रस्ट में चल रहे भाई-भतीजावाद के विरुद्ध विद्रोह किया; लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं करता । दाभोलकर के ट्रस्ट में घोटाले का बार-बार उल्लेख होने पर भी इसकी कभी जांच नहीं की गई । डॉ .दाभोलकर अथवा कॉमरेड पानसरे ने यह कभी स्पष्ट नहीं किया कि किस व्यवस्था के विरुद्ध लड रहे थे । इसलिए, उनकी प्रगतिशीलता निराधार थी ।
देशद्रोहियों का समर्थन करना, लेकिन हिन्दुत्वनिष्ठों को आतंकवादी करार देने का प्रयास करना ! – रमेश शिंदे

पानसरे और डॉ. दाभोलकर की हत्या को भारतीय संविधान पर आक्रमण के रूप में चित्रित किया गया है; लेकिन दूसरी ओर, देश पर आक्रमण करने वाले जिहादी कसाब से लेकर याकूब मेमन तक, सभी को वकील दिये जाते हैं। कोल्हापुर में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कहा गया कि स्थानीय वकील दबाव में आकर हिन्दुत्व के समर्थकों का मुकदमा नहीं लड़ेंगे । आतंकवादियों के लिए भी मानवाधिकार हैं; लेकिन क्या वे हिन्दुत्व भक्तों के लिए नहीं हैं? देश विरोधी गतिविधियों में सहभागी शरजील को जमानत दी जाती है ; लेकिन हिन्दुत्ववादियों को आतंकवादी करार देने का प्रयास किया जा रहा है । अतः यह देशद्रोहियों और देशद्रोहियों का समर्थन करने तथा हिन्दुत्ववादियों को आतंकवादी करार देने का कम्युनिस्ट षड्यंत्र है ।