Lahore High Court : पाकिस्तान में गैरमुसलमानों को मुसलमानों की संपत्ति में उत्तराधिकारी होने का अधिकार नहीं मिल सकता !

लाहोर उच्च न्यायालय का निर्णय

लाहोर उच्च न्यायालय

लाहोर (पाकिस्तान) – लाहोर उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय में ‘मुसलमानों की संपत्ति उत्तराधिकारी के अधिकार के रूप में किसी गैरमुसलमान व्यक्ति को नहीं मिल सकती’, ऐसा कहा गया है । लाहोर उच्च न्यायालय ने शरिया के आधार पर यह निर्णय दिया है । उसमें कहा गया है कि मुसलमान काफिर से (इस्लाम को न माननेवालों से) उत्तराधिकारी के रूप में मिलनेवाली संपत्ति नहीं लेते तथा काफिर मुसलमान से उत्तराधिकारी के रूप में मिलनेवाली संपत्ति नहीं लेते ।

१. लाहोर उच्च न्यायालय के इस निर्णय के कारण पाकिस्तान के अन्य ऐसे प्रकरण प्रभावित होनेवाले हैं । इसका अर्थ अब पाकिस्तान में रहनेवाले हिन्दू, सीक्ख अथवा कोई भी गैरमुसलमान व्यक्ति किसी भी मुसलमान की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन पाएगा ।

२. यह प्रकरण पाकिस्तान के टोबा टेक सिंग जिले के संपत्ति के विवाद से संबंधित है । यहां रहनेवाले एक मुसलमान व्यक्ति की संपत्ति उसकी मृत्यु के उपरांत उसके ३ बच्चों तथा २ लडकियों में समान रूप से बांटी गई । इस विभाजन को मृत के पोते ने न्यायालय में चुनौती दी । उसने यह दावा कर न्यायालय से यह मांग की थी कि उसके एक चाचा मुसलमान नहीं, अपितु अहमदिया समुदाय के हैं; इसलिए उन्हें इस संपत्ति में अधिकार नहीं मिल सकता । चाचा को दी गई संपत्ति का उत्तराधिकार रद्द किया जाए ।

३. इस प्रकरण में कनिष्ठ न्यायालय ने पोते के पक्ष में निर्णय दिया था, जिसे लाहोर उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई । अब उच्च न्यायालय ने यही निर्णय यथास्थिति में रखा है ।

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय की स्थिति !

अहमदिया समुदाय

इस्लाम में सामान्यतः ७३ जातियां हैं । उनमें से अहमदिया एक जाति है । इस जाति की स्थापना वर्ष १८८९ में मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी । इस्लाम में मोहम्मद पैगंबर एकमात्र पैगंबर हैं; परंतु अहमद ने स्वयं को ही प्रेषित माना था । वे स्वयं को ‘मसीहा’ (विश्वकल्याण हेतु अवतार धारण करनेवाला व्यक्ति) मानते थे । इसके कारण ही अन्य मुसलमान समुदाय अहमदिया जाति के मुसलमानों को ‘मुसलमान’ न मानकर ‘काफीर’ (इस्लाम को न माननेवाले) मानते हैं ।

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को अनेक संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है तथा उन्हें मुसलमानों की श्रेणी नहीं दी जाती । उन्हें मस्जिद में जाकर कुरान पढने का अधिकार नहीं है । उनकी मस्जिदें भिन्न होती हैं तथा उन पर बार-बार आक्रमण भी किए जाते हैं ।

संपादकीय भूमिका 

क्या मूलतः पाकिस्तान में गैरमुसलमानों को नागरिक तो माना जाता है ?, यही प्रश्न है । उसके कारण वहां की मुसलमान जनता, सरकार, प्रशासन, पुलिस तथा अब न्यायालय भी गैरमुसलमान विरोधी हैं, यह पुनः स्पष्ट हुआ है !