‘धार्मिकता के अर्थव्यवस्था पर होनेवाले परिणाम’ के विषय में शोध तथा अध्ययन लोगों के समक्ष प्रस्तुत हों, जिससे देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ हो, यह इस ग्रंथ का उद्देश्य है । किसी की भी धार्मिक भावनाओं को आहत करना अथवा असंतोष निर्माण करना इसका उद्देश्य नहीं ।
शरीयत आधारित ‘इस्लामिक बैंक’ का अनेक देशों ने विरोध किया; परंतु ग्राहक अधिकारों के कारण तथा कट्टर धर्मपालन के आग्रहवश ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ आज फलती-फूलती दिखाई दे रही है । मुसलमान प्रत्येक पदार्थ और वस्तु इस्लाम अनुसार वैध अर्थात ‘हलाल’ हो, इसकी मांग कर रहे हैं । इसके लिए ‘हलाल सर्टिफिकेट’ अनिवार्य हो गया । अचरज की बात तो यह है कि ‘सेक्युलर’ भारत के सरकारी प्रतिष्ठानों में भी ‘हलाल’ अनिवार्य किया गया है । देश के केवल १५ प्रतिशत अल्पसंख्यक मुसलमान समाज को इस्लाम अनुसार ‘हलाल’ मांस का भक्षण करना है, इसलिए शेष जनता पर भी उसे थोपा जा रहा है । आज यह ‘हलाल सर्टिफिकेट’ केवल मांस तक सीमित नहीं है । खाद्यपदार्थ, सौन्दर्य प्रसाधन, औषधियां, चिकित्सालय, गृहनिर्माण संस्था, मॉल, पर्यटन आदि क्षेत्रों में भी यह आरंभ हो चुका है । इस्लामी देशों में निर्यात करनेवालों के लिए तो ‘हलाल सर्टिफिकेट’ अनिवार्य ही हो गया है । आज ‘मैकडोनाल्ड’ जैसे विदेशी प्रतिष्ठान हिन्दूबहुल भारत में १०० प्रतिशत ‘हलाल’ पदार्थ बेचकर हिन्दू ग्राहकों के धार्मिक अधिकारों का अपमान कर रहे हैं ! इस ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ ने पूरे विश्व में दबदबा निर्माण किया है और अल्पावधि में २ ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का चरण भी पा लिया है ।
जब पंथ पर आधारित अर्थव्यवस्था निर्माण हो जाती है, तब देश की विभिन्न संस्थाओं पर उसका निश्चित प्रभाव पडता है । यहां तो ‘शरीयत’ पर आधारित एक अर्थव्यवस्था निर्माण हो रही है । इसलिए उसका ‘सेक्यूलर’ भारत पर भी निश्चित प्रभाव पडेगा । इस दृष्टि से ‘भविष्य में स्थानीय व्यापारियों, परंपरागत उद्योगपतियों तथा अतंतः राष्ट्र पर क्या संकट आ सकते हैं ?’, इसका विचार करना आवश्यक है । ऐसी स्थिति में भारत को समय रहते ही सावधान हो जाना चाहिए ! भारत सरकार को इसकी गहन जांच करनी चाहिए कि ‘हलाल सर्टिफिकेट’ देनेवाली इस्लामी संस्थाएं ‘सर्टिफिकेट’ देने के माध्यम से प्राप्त धन का उपयोग कैसे करती हैं ?’ ‘सेक्यूलर’ भारत में ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण’ (FSSAI) जैसी सरकारी व्यवस्था होते हुए भी ‘हलाल सर्टिफिकेट’ देनेवाली इस्लामी संस्थाओं की क्या आवश्यकता है ? इस लेखन के माध्यम से इस विषय पर प्रकाश डालने का यह प्रयास !
(संदर्भ : हिन्दू जनजागृति समिति पुरस्कृत ग्रंथ : हलाल जिहाद ?)
‘हलाल’ का अर्थ क्या है ?
इस्लाम में ‘हलाल’ और ‘हराम’, ये अरबी भाषा के शब्द प्रसिद्ध हैं । ‘हलाल’ शब्द का अर्थ है, इस्लाम के अनुसार वैध, स्वीकार्य, मान्यता प्राप्त; इस शब्द के विपरीत अर्थ का शब्द है, ‘हराम’ जिसका अर्थ है, इस्लाम के अनुसार अवैध, निषिद्ध अथवा वर्जित । इस्लाम में ‘हलाल’ शब्द मुख्य रूप से खाद्यान्न एवं द्रव पदार्थ के विषय में उपयोग किया जाता है ।
‘हलाल अर्थव्यवस्था’ हेतु ‘हलाल’ संकल्पना का विस्तार !
मांस को छोड, अन्य क्षेत्रों में हलाल की संकल्पना मुसलमानों के धर्मग्रन्थों में स्पष्ट रूप से प्रस्तुत न की जाने के कारण, वह स्थानीय स्थिति के अनुसार निर्धारित की जा रही है और उसके द्वारा ‘हलाल’ संकल्पना का विस्तार किया जा रहा है ।
१. ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ को व्यापक बनाने के लिए ‘हराम’ बातों को भी ‘हलाल’ निश्चित करना
हलाल संकल्पना को अर्थव्यवस्था से जोडने के कारण कुछ वर्ष पूर्व हराम मानी जानेवाली बातें भी आज हलाल घोषित की जा रही हैं । ‘हराम’ वस्तुओं को ‘हलाल’ घोषित किए जाने का उत्तम उदाहरण है, कुछ वर्ष पूर्व अजान की पुकार ईश्वर की पवित्र ध्वनि मानी जाती, इसके लिए मानव-निर्मित ध्वनिवर्धक यंत्रों द्वारा देना ‘हराम’ माना जा रहा था । बढती जनसंख्या एवं अन्य धर्मियों द्वारा हो रहे उपयोग को ध्यान में रखते हुए इसी ध्वनिवर्धक यंत्र को बाद में ‘हलाल’ घोषित किया गया । आज मस्जिदों पर उसी ध्वनिवर्धक यंत्र की ऊंची आवाज के कारण सामाजिक शांति भंग हो रही है । इसी प्रकार कुछ वर्ष पूर्व सौंदर्यप्रसाधनों का उपयोग कर ‘मेकअप’ करना हराम माना जाता था; परंतु अब सौंदर्यप्रसाधनों को ही हलाल प्रमाणपत्र दिया जा रहा है । हलाल अर्थव्यवस्था निर्माण करने के लिए इस प्रकार नियम तोड-मरोडकर हलाल संकल्पना व्यापक की जा रही है ।
२. शुद्ध शाकाहारी खाद्य पदार्थ भी ‘हलाल’ प्रमाणित करना
अब मांसाहारी पदार्थ ही नहीं, अपितु सुप्रसिद्ध ‘हल्दीराम’ के शुद्ध शाकाहारी नमकीन भी हलाल प्रमाणित हो गए हैं । अनाज, खाद्य तेल, गेहूं का आटा, मेवे, मिठाई, चॉकलेट, शीतपेय आदि को भी ‘हलाल’ प्रमाणित किया गया है ।
‘हलाल’ अभियान का उद्देश्य !
१. मांस व्यापार पर नियंत्रण करना
‘हलाल’ मांस से जुडे नियम से यह स्पष्ट होगा कि पशुहत्या करनेवाला मुसलमान हो, यह पहली शर्त है ।
इस कारण जो मुसलमान नहीं है, उसके द्वारा की गई पशुहत्या को ‘हलाल’ नहीं माना जाता । वह भले ही ‘बिस्मिल्लाह’ का उच्चारण कर पशुहत्या करे, तब भी वह ‘हलाल’ नहीं होता । इस कारण ‘हलाल’ मांस की मांग में वृद्धि होने पर, मांसबिक्री का पूरा व्यवसाय केवल मुसलमानों के नियंत्रण में रहता है और उनका आर्थिक लाभ कराता है । भारत में यह मांस का व्यापार कोई छोटा-मोटा व्यापार नहीं है । वर्ष २०१९ के आंकडों के अनुसार यह लगभग ३ लाख करोड रुपयों का बहुत भारी व्यापार है । अनुमान है कि मांस की बढती मांग के कारण वर्ष २०२४ तक यह व्यापार बढकर ४.५ लाख करोड रुपयों तक पहुंचने का अनुमान है ।
२. ‘हलाल’ अभियान के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर राज करना
‘मुसलमानों द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था पर राज करने के लिए नेतृत्व करने की शक्ति ‘हलाल अभियान’ में है । इसलिए पश्चिम के लोगों द्वारा आर्थिक समृद्धि के साधन के रूप में उपयोग किया जानेवाला तकनीकी ज्ञान छोडकर मुसलमान समाज को अन्न उत्पादन का शक्तिशाली आधार विकसित करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए; क्योंकि अनाज प्रत्येक मानव की मूलभूत आवश्यकता है । मलेशिया, तुर्कस्तान तथा ईरान जैसे देश आज ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ के केंद्र के रूप में वैश्विक स्तर पर परिचित हैं । वैश्विक स्तर पर इस्लामी देशों को ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ का महत्त्व समझना आवश्यक है ।’
– डॉ. मुस्तफा सेरिक, ग्रैंड मुफ्ती, बोस्निया. (१२.१२.२०१० को कराची (पाकिस्तान) में किया भाषण)
३. इस्लामी देशों में उत्पाद निर्यात करने के लिए ‘हलाल प्रमाणपत्र’ लेना अनिवार्य करनेवाला ‘ओआईसी (OIC)’ का प्रस्ताव !
ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC)’ वैश्विक स्तर पर कार्यरत इस्लामी देशों का संगठन ‘उम्माह’ अर्थात देश-सीमा रहित धार्मिक बंधुत्व की संकल्पना मानकर चलता है । हलाल अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाने के लिए उन्होंने प्रस्ताव पारित किया कि इस्लामी देशों में उत्पाद निर्यात करने हों, तो प्रथम उन देशों के अधिकृत इस्लामिक संगठन से ‘हलाल’ प्रमाणपत्र लेना बंधनकारक है । इस बंधन के कारण सभी इस्लामी देशों में निर्यात करनेवाले पूरे विश्व के उद्योगपतियों को ‘हलाल’ प्रमाणपत्र लेने के लिए इस्लामी संस्थाओं को शुल्क देना ही पडता है ।
(संदर्भ : हिन्दू जनजागृति समिति पुरस्कृत ग्रंथ : हलाल जिहाद ?)