समरसता की सामर्थ्यशील भूमि पर कुंभ मेला उत्सव – स्वामी चिदानन्द सरस्वतीजी महाराज

स्वामी चिदानन्द सरस्वतीजी महाराज

आध्यात्मिकता, साधना, भारतीय दर्शन, संस्कृति और संस्कारों का प्रत्यक्ष समन्वय, जहां सद्भाव, समरसता और समानता की त्रिवेणी निरन्तर प्रवाहमान है, वही पावन आध्यात्मिक उत्सव है कुंभ मेला । दुनिया का सबसे बडा धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव जिसे यूनेस्को ने ग्लोबल इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थान दिया, यह भारत के लिए गर्व का विषय है । कुंभ मेला, मानवता और सार्वभौमिकता का संदेश प्रसारित करता है ।

१. भारतीय जीवन शैली में पर्यावरण चेतना सहज स्वाभाविक रूप में प्रवाहित होती है । कुंभ भी धार्मिक स्नान मात्र नहीं होता । यह नदियों के प्रति सम्मान भाव जागृत करता है । नदियां अविरल निर्मल होंगी, वन-वृक्ष-पर्वत सबका संरक्षण और संवर्धन होगा, तभी मानवजीवन का कल्याण और भविष्य सुनिश्चित होगा । हमारे ऋषि त्रिकालदर्शी थे । इसलिए उन्होंने प्रकृति के न्यूनतम उपभोग का सिद्धांत दिया ।

२. पाश्चात्य सभ्यता ने प्रकृति का बेहिसाब दोहन किया, जिससे प्रकृति कुपित हो रही है । मानवता के सामने संकट है । इससे बाहर निकलने के लिए सबकी नजर भारत की ओर लगी है; परंतु इस भूमिका के लिए पहले भारत को अपनी विरासत को पहचानना और उसके अनुरूप आचरण करना होगा ।

प्रयागराज

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के उपरांत प्रयागराज में प्रथम यज्ञ किया था, जिसकी वजह से इस नगरी का महत्त्व बहुत बढ जाता है ।

– (साभार : ‘युगवार्ता’, १३ जनवरी २०१९)