२५.९.२०२२ (भाद्रपद (सर्वपित्री) अमावस्या) को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी के ५५ वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में एक समारोह संपन्न हुआ । इस समारोह में उपस्थित श्रीमती अनुराधा निकम (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत, आयु ६५ वर्ष) द्वारा अनुभव किए गए भावक्षण आगे दिए हैं –
१. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने सहज संवाद क माध्यम से उजाकर की श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी की साधनायात्रा !
‘२५.९.२०२२ को श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित भावसमारोह में आदिशक्ति के दो रूपों का अर्थात श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का एक-दूसरे से हुआ संवाद एक अत्युच्च कोटि का भावसंवाद ही था । हम साधकों के लिए उस सत्संग का प्रत्येक क्षण आनंददायक था । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी से बात करते समय श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की उत्कट भावस्थिति थी, जो निःशब्द करनेवाली थी ।
१ अ. गुरुकृपा से ‘परिवार का दायित्व निभाना तथा समष्टि सेवा करना’, इन दोनों का सहजता से समन्वय करना संभव होना
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी : सद्गुरु बिंदा सिंगबाळजी, आप हमें अपनी अब तक की साधनायात्रा के विषय में बताइए ।
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी : सबकुछ शब्दातीत है । मेरी संपूर्ण साधनायात्रा केवल गुरुकृपा से ही संपन्न हो पाई है ।
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी : साधना करते समय आपके पारिवारिक अथवा व्यावहारिक जीवन में क्या कोई कठिन प्रसंग आए ? यदि आए तो आपने उनपर कैसे विजय प्राप्त की ?
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी : कठिन प्रसंग आने पर मुझे कभी नहीं लगा कि ‘यह कठिन प्रसंग है’। साधना करनेवाले साधकों के शब्दकोश में ‘कठिन’ शब्द होता ही नहीं है । आरंभ में मैं अधिकोष की (बैंक की) नौकरी तथा घर का दायित्व निभाकर सेवा करती थी । उसके उपरांत मैंने तथा मेरे पति ने (सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी) पूर्णकालीन साधना आरंभ की । विगत १६ वर्षाें से मेरे पति वाराणसी में पूर्णकालीन सेवारत हैं । तब से लेकर आज तक समष्टि सेवा करते समय मेरे लिए ‘सासूमां (सनातन की ११७ वीं संत पू. (श्रीमती) सुधा सिंगबाळजी (आयु ८३ वर्ष), पति (सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी), पुत्र (श्री. सोहम् सिंगबाळ) तथा संबंधियों से निकटता बनाए रखना’, केवल गुरुकृपा से ही सब संभव हो पा रहा है । गुरुकृपा से मुझे अपने जीवन में कभी आर्थिक समस्या नहीं आई अथवा कभी भी किसी बात का अभाव नहीं रहा ।
(‘उक्त सूत्र सुनकर ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी का परात्पर गुरु डॉक्टरजी से निरंतर आंतरिक सान्निध्य होने के कारण, उनका जीवन गुरुकृपा से ओतप्रोत हो गया है’, ऐसा मुझे लग रहा था ।’ – श्रीमती अनुराधा निकम)
१ आ. चैतन्य के प्रति आकर्षण होने से १ ते ३माह के बच्चे को लेकर गुरुपूर्णिमा महोत्सव में जाना तथा बच्चा ३ माह का होने पर ८ धर्मजागृति सभाओं से संबंधित सेवाएं करना श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी :
सोहम् (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी का पुत्र) जब १ माह का था, तब गुरुपूर्णिमा का चैतन्य मिले; इसके लिए मैं उसे लेकर गुरुपूर्णिमा महोत्सव में गई थी ।
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी : किसी का बच्चा जब तक डेढ-दो माह का नहीं हो जाता, तब तक बच्चा तथा उसकी मां घर से बाहर नहीं निकलते; परंतु सद्गुरु बिंदा सिंगबाळजी में गुरुदेवजी के प्रति दृढ श्रद्धा एवं भाव होने के कारण वे अपने १ माह के बच्चे को लेकर गुरुपूर्णिमा महोत्सव में गईं । उन्हें चैतन्य की आस लगी
थी । सोहम् जब केवल ३ माह का था, उस समय उन्होंने (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी ने) ८ धर्मजागृति सभाओं से संबंधित सेवाएं कीं ।
१ इ. गुरुदेवजी को अपेक्षित कृति करने की लगन होने से साधकों को साधना में स्थापित करना संभव होना
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी : क्या आपको सेवा करते समय तनाव नहीं आता ?
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी : गुरुदेव ही मुझसे सबकुछ करवा लेते हैं तथा वे ही मुझे सेवा करने की शक्ति देते हैं । एक बार ध्वनिचित्रीकरण (ऑडियो-वीडियो) से संबंधित सेवा करनेवाले साधकों की साधना सुचारू रूप से नहीं हो रही थी । उस समय गुरुदेवजी ने मुझसे कहा, ‘‘बिंदा, यदि तुम्हारे लिए यह सेवा संभव नहीं हो रही, तो क्या यह सेवा मैं अन्य किसी को सिखाऊं ?’’ उस समय मैंने गुरुदेवजी से कहा, ‘‘मैं साधकों की साधना सुव्यवस्थित हो इसके लिए प्रयास करती हूं ।’’ उस दिन मुझे रात को नींद नहीं आई । मैं पूरी रात सोचती रही । ‘गुरुदेवजी को अपेक्षित साधकों की साधना सुचारू रूप से चलने के लिए मैं क्या करूं ?’, यही विचार मेरे मन में आ रहे थे । उसके उपरांत गुरुकृपा से ही वह संभव हुआ ।
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी : आप पूरे दिन में कितने समय सेवा करती हैं ?
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी : सेवा करते समय मुझे ऐसा लगता है, ‘रात ही न हो’ । उस समय गुरुदेवजी निरंतर मेरे साथ ही होते हैं ।
(‘यह सूत्र सुनकर मेरे मन में विचार आया, ‘समष्टि के प्रति अपार प्रीति, व्यापकता तथा गुरुकार्य से एकरूपता’ के कारण ही ऐसा लगना संभव है । इसके कारण ही गुरुदेवजी ने श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी से ध्वनिचित्रीकरण से संबंधित साधकों की साधना सुचारू करवाई । समष्टि के साथ यह कितनी एकरूपता है !)
– श्रीमती अनुराधा निकम (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत, आयु ६५ वर्ष), फोंडा, गोवा. (३०.९.२०२२)
स्वयं अध्यात्म के उच्च पद पर विराजमान होते हुए भी वात्सल्यभाव एवं अहंशून्य श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के प्रति मन में कृतज्ञता का भाव रखनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी !श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी, आपको आपके पति सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी से पूर्व ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर, संत पद तथा सद्गुरु पद प्राप्त हुआ है । क्या इस विषय में सद्गुरु नीलेशजी के मन में आपको कभी ईर्ष्या अथवा नकारात्मकता प्रतीत हुई ? श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी : कभी नहीं ! (उक्त सूत्र सुनकर मुझे लगा, ‘ईश्वरप्राप्ति’, इस एकमात्र ध्येय हेतु अखंड तडपनेवाले इस दंपति के (सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के) अहं का लय गुरुकृपा एवं समर्पण के कारण ही हो पाया ।’ – श्रीमती अनुराधा निकम) सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी : जब मैं गोवा में अपने घर आता हूं, उस समय सद्गुरु दीदी (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी) अपने हाथों से भोजन बनाकर मुझे परोसती हैं । (‘यह सुनने पर श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में विद्यमान वात्सल्यभाव प्रतीत होकर मेरे शरीर पर रोमांच आ गए । स्वयं अध्यात्म के उच्च पद पर विराजमान होते हुए भी यह कितना वात्सल्यभाव एवं अहंशून्यता है ! जब सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का उल्लेख ‘सद्गुरु दीदी’, ऐसा करते हैं, उस समय वे शब्द हमारे अंतर्मन को भेद देते हैं । उस समय मुझे एक भिन्न ही भावविश्व का अनुभव हो रहा था । सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी जब श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के विषय में बोल रहे थे, उस समय गुरुदेवजी एवं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के प्रति मुझे अपार कृतज्ञभाव अनुभव हो रहा था ।’ – श्रीमती अनुराधा निकम) |
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पुत्र श्री. सोहम् ने अपनी मां के विषय में निम्न सूत्र बताए‘मन में कुछ प्रश्न उठे, तो तुम गुरुदेवजी को अनुभव करने का प्रयास करो’, मां का ऐसा बताना एक बार मैंने (श्री. सोहम्) मां से पूछा, ‘मां आप तो सेवा में होती हो तथा पिताजी गुरुसेवा के लिए वाराणसी में रहते हैं । ऐसे में यदि मेरे मन में कोई प्रश्न उठा, तो मैं किससे पूछूं ?’ तब मां ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में तुम गुरुदेवजी को अनुभव करने का प्रयास करना ।’’ बचपन में मां मुझे (श्री. सोहम् को) विद्यालय छोडने के लिए आती थीं । उस समय वे मुझसे कहती थीं, ‘‘तुम्हारी बाजू की बेंच पर गुरुदेवजी ही बैठे हैं’, इसकी तुम अनुभूति लेना ।’’ मां का निरंतर सीखने की स्थिति में रहना एक बार मां ने मुझे अपनी सेवा के संदर्भ में एक प्रसंग बताकर मुझसे पूछा, ‘‘इसमें मुझसे कहां चूक हुई ? इस प्रसंग में मुझे क्या करना चाहिए था ?’’ उसपर मैंने कहा, ‘मुझे तो इस विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है, तो आप यह मुझसे क्यों पूछ रही हैं ?’ उसपर मां ने कहा, ‘‘भगवान किसी प्रसंग से कुछ सिखाने के लिए किसी के भी माध्यम से सहायता करते हैं ।’’ (‘श्री. सोहम् की वाणी में अत्यंत सहजता एवं चैतन्य था । वे अत्यंत ओजस्वी पद्धति से बोल रहे थे । वे जब बोल रहे थे, उस समय ‘उनकी वाणी तथा उनका स्वरूप तो केवल गुरुलीला है’, ऐसा मुझे लग रहा था ।’ – श्रीमती अनुराधा निकम) |