स्वस्थ जीवनयापन हेतु व्यायाम की आवश्यकता, उसका महत्त्व एवं उस संदर्भ में शंका निवारण !
विश्व के आधुनिकीकरण के साथ उद्भव हुई शारीरिक समस्याओं के समाधान के रूप में ‘व्यायाम’ एक प्रभावी माध्यम बना है । आजकल इस विषय में प्रचुर मात्रा में चर्चा हो रही है तथा उस विषय मेंजागृति का भी निर्माण हुआ है, तथापि व्यायाम करनेवालों की मात्रा अल्प ही दिखाई देती है । अब भी अनेकों के मन में व्यायाम के विषय में कुछ शंकाएं पाई जाती हैं । वर्तमान में हो रही अनेक शारीरिक समस्याओं पर, उदा. रीढ की हड्डी की बीमारी, मधुमेह, स्थूलता आदि पर उपचार के रूप में औषधोपचार, आहार, उपवास, इस प्रकार के अनेक विकल्पों का चयन करते हैं; परंतु व्यायाम के बिना ये सभी उपाययोजनाएं अपूर्ण सिद्ध होती हैं । प्रस्तुत लेख के द्वारा हम व्यायाम करने के संदर्भ में जागृति का निर्माण करनेवाले हैं, इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व ज्ञात कर लेंगे, साथ ही व्यायाम के विषय में शंकाओं का निवारण करनेवाले हैं ।
‘वर्तमान आधुनिक विश्व में अनेक लोग बैठी जीवनशैली के जाल में फंसे हैं । आधुनिक जीवन की सुविधाएं, चल दूरभाष से उपलब्ध हुईं ‘ऑनलाइन’ सुविधाएं आदि को देखते हुए विश्व ने एक नए युग में प्रवेश किया है, जो एक वास्तव है ! भगवान द्वारा हमें दी हुई देह को चलता-फिरता रखना आवश्यक है । जब हम इस मूलभूत आवश्यकता की अनदेखी करते हैं, तब हमें अपने स्वास्थ्य का मूल्य देना पडता है ।
निष्क्रिय एवं बैठी जीवनशैली के कारण शारीरिक श्रम अल्प होने लगे हैं । ‘अनेक घंटे बैठकर संगणक पर काम करना, साथ ही चल दूरभाष का असीमित उपयोग’, इन कारणों से हमारी देह की रचना बिगडकर जोड एवं स्नायुओं से संबंधित कष्टों में वृद्धि होने लगी है । साथ ही अनेक लोगों को मोटापा, हृदय विकार, मधुमेह जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड रहा है ।
बैठी जीवनशैली से निर्माण होनेवाले इन शारीरिक विकारों की शृंखला ओं से मुक्त हों एवं अपना शारीरिक स्वास्थ संजोने हेतु अभी से प्रतिदिन व्यायाम हेतु न्यूनतम ३० मिनट का समय दें !’
– श्रीमती अक्षता रूपेश रेडकर, भौतिकोपचार विशेषज्ञ (फिजिओथेरपिस्ट), फोंडा, गोवा. (११.८.२०२४)