भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अधिवक्ताओं का योगदान अतुलनीय है । लोकमान्य टिळक, सरदार वल्लभभाई पटेल, वीर सावरकर, लाला लाजपत राय, न्यायाधीश रानडे, देशबंधु चित्तरंजन दास जैसे अनेक अधिवक्ताओं ने उस काल में स्वतंत्र भारत की लडाई हेतु प्रयास किए तथा भारत को स्वतंत्रता दिलाई । उसके कारण आज जब हम हिन्दुओं को अधिकार दिलानेवाले हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना पर विचार करते हैं, तब भी मुझे यह आश्वस्तता लगती है कि हम सभी अधिवक्ताओं का संगठन यदि सक्रिय बन गया तथा उसमें सभी का सहभाग प्राप्त हुआ, तो आनेवाले समय में इस भूमि में निश्चित ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।
१. अधिवक्ताओं के योगदान का महत्त्व !
हिन्दू राष्ट्र के कार्य में अधिवक्ताओं की सहायता आवश्यक होने का प्रमुख कारण यह है कि हिन्दू राष्ट्र हेतु प्रत्यक्ष लडाई में हमारे जैसे सामान्य कार्यकर्ता सम्मिलित होंगे; किंतु आज जो विरोधियों की ओर से वैचारिक युद्ध आरंभ किया गया है, उसे जीतन के लिए भारतीय कानूनों का अध्ययन रखनेवाले तथा संविधान में समाहित प्रावधानों का उचित अर्थ बताकर कानूनी दृष्टि से हिन्दुओं का पक्ष सक्षम बनाने के लिए वैचारिक योद्धाओं की आवश्यकता है तथा हिन्दू अधिवक्ता ही हिन्दुओं के लिए वैचारिक सफलतापूर्वक योद्धाओं की भूमिका निभा सकते हैं । अतः इस वैचारिक लडाई के लिए आप सभी तैयार हों !
हिन्दू अधिवक्ता अथवा साधक अधिवक्ता क्या होता है ? अधिवक्ताओं को वर्तमान संविधान का ज्ञान है । वर्तमान संविधान में समाहित कौनसा अनुच्छेद अथवा प्रावधान हिन्दू धर्म के विरुद्ध है ? अथवा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने में बाधा बना हुआ है ?, यह बात हिन्दू अधिवक्ताओं के ध्यान में आती है, साथ ही ‘भारतीय परंपरा का न्यायतंत्र स्थापना की दृष्टि से इससे पूर्व लागू किए गए प्रावधान वर्तमान व्यवस्था में कैसे लागू हो सकेंगे ?’, इसका अध्ययन करनेवाले, इसके लिए साधना करनेवाले तथा इसके लिए संतों के आशीर्वाद लेनेवाले अधिवक्ता साधक अधिवक्ता होते हैं ! आप सभी हिन्दू अधिवक्ता तो हैं ही; परंतु अब आपको धर्मसंस्थापना के इस कार्य में योगदान देने हेतु ‘साधक अधिवक्ता’ बनकर भारत में भारतीय न्यायदान परंपरा कैसे स्थापित होगी ?, इसके लिए प्रयास करने आवश्यक हैं ।
१ अ. पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी तथा उनके पुत्र अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का योगदान ! : हिन्दुओं के लिए गर्व का एक प्रतीक है अयोध्या का श्रीराम मंदिर ! पिछले ५०० वर्षों से हिन्दू इस मंदिर की प्रतीक्षा में थे । कानून के आधार पर उच्च न्यायालय में तथा सर्वाेच्च न्यायालय में अभियोग लडना पडा तथा इसमें अनेक अधिवक्ताओं ने वैचारिक योद्धा की भूमिका निभाई । उनमें से पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी तथा उनके पुत्र अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । उनके द्वारा दिए योगदान के कारण आज करोडों हिन्दुओं के सम्मान का प्रतीक श्रीराम मंदिर पूर्णत्व तक पहुंचा तथा २२ जनवरी २०२४ को उस मंदिर में श्री रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा हुई । यह बात आज यहां बताने का मुख्य कारण यह है कि अयोध्या के श्रीराम मंदिर की लडाई पूर्णत्व तक पहुंचने पर पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी एवं अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने ‘अब हम विजयी हुए’, ऐसा बोलकर विराम नहीं लिया; अपितु उन्होंने इस लडाई को काशी, मथुरा, भोजशाला, कुतुब मिनार आदि अनेक इस्लामी अतिक्रमणों के विरुद्ध याचिकाएं प्रविष्ट कर और विस्तारित किया है । इससे पूर्व अयोध्या की लडाई में अनेक वर्ष बीत गए; परंतु अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन काशी के श्री विश्वनाथ मंदिर की मुक्ति की लडाई को भी बहुत ही अल्प अवधि में अनेक गुना आगे ले गए हैं । इस लडाई में अब वे केवल वैचारिक युद्ध नहीं लड रहे हैं; अपितु प्रत्यक्ष युद्ध का सामना कर रहे हैं । इसमें उन्हें हमारे ही धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) तथा स्वार्थी हिन्दुओं का विरोध झेलना पड रहा है; परंतु स्वयं के वकालत के व्यवसाय की अनदेखी कर तथा अनेक समस्याओं का सामना कर आज वे देहली से काशी तक की निरंतर यात्रा कर अन्य हिन्दू अधिवक्ताओं के सामने एक आदर्श स्थापित कर रहे हैं । उनकी इस लडाई से हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ताओं को प्रेरणा लेनी चाहिए; क्योंकि इस भारतभूमि के लिए एकाध अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन पर्याप्त नहीं हैं ।
आज हमें प्रत्येक राज्य एवं शहर में विष्णु शंकर जैन चाहिए । यह ध्यान में रखिए कि प्रत्येक राज्य तथा प्रत्येक क्षेत्र में एक अयोध्या तथा काशी आपकी प्रतीक्षा में है । वहां के इस्लामी अतिक्रमण के तले दबे हमारे मंदिर, उनमें स्थित देवता हिन्दुओं को पुकार रहे हैं ।
२. हिन्दुओं का ‘इकोसिस्टम’ (सुनियोजित व्यवस्था) बनाने हेतु अधिवक्ताओं की आवश्यकता !
आज हम यह देखते हैं कि देशविरोधी कृत्य करनेवाले संगठित हैं । एक-दूसरे के कट्टर शत्रु वामपंथी (कम्युनिस्ट) तथा मुसलमान हमारे देश में एकत्रित कार्य करते हुए दिखाई देते हैं । उन्होंने उनका ‘इकोसिस्टम’ बनाया है । उसके कारण हिन्दुओं को अनेक बार न्याय से वंचित रहना पडता है । इसके कुछ उदाहरण यहां दे रहा हूं ।
२ अ. क्या ईद की कुरबानी अंधविश्वास नहीं है ? : न्यायालय ने महाराष्ट्र में चलनेवाली पशुबलि की प्रथा रद्द की । त्रिपुरा, ओडिशा, केरल आदि अनेक राज्यों के उच्च न्यायालयों ने बताया कि मंदिरों के सामने पशुबलि देने की अंधविश्वासी प्रथा बंद हो । उसके कारण वहां चलनेवाली पशुबलि की प्रथा पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया; तो क्या ईद की कुरबानी अंधविश्वास नहीं है ? हिन्दुओं के त्योहारों के विषय में कहा जाए, तो ‘गोपालकाला की ऊंचाई कितनी होनी चाहिए ?’, यह न्यायालय सुनिश्चित करेगा; दीपावली के पटाखों को प्रदूषणकारी प्रमाणित किया जाएगा, नागपंचमी का उत्सव बंद किया जाएगा, तो ईद की कुरबानी को कैसे अनुमति मिलती है ?, इसपर विचारमंथन होने की आवश्यकता है । इसमें हिन्दू समाज को तथा युवकों को न्याय दिलाने की आवश्यकता है । यह भारत के संविधान में समाहित ‘समानता’ के मूलभूत अधिकारों के विरुद्ध है ।
संविधान में जहां सभी के लिए समान न्याय तथा समता का सिद्धांत होते हुए न्यायदान के समय न्यायालय हिन्दुओं के जिन अधिकारों को अस्वीकार करता है, वही अधिकार वह अल्पसंख्यकों को कैसे दे सकता है ? इसपर गहन विचारमंथन होकर ‘न्यायालय सभी को समान दृष्टि से न्याय देगा’, इसे देखना अधिवक्ताओं का कार्य है ।
२ आ. हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता कहां अल्प पडते हैं ? : संपूर्ण भारत में कोरेगांव-भीमा में हुई दंगे की घटना ज्ञात है । इस प्रकरण में अरुण परेरा, वर्नान गोंसाल्वीस, शोमा सेन, रोना विल्सन, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, सुरेंद्र गडलिंग जैसे ‘शहरी (अर्बन) नक्सलियों को’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया; परंतु विकृत इतिहासकार रोमीला थापर ने इस संदर्भ में सीधे सर्वाेच्च न्यायालय में उन्हें छोडने की मांग करनेवाली याचिका प्रविष्ट की । इस अभियोग में गिरफ्तार समाज के मान्यवर होने से उन्हें कारागृह में न रखकर ‘हाउस एरेस्ट करने का आदेश दिया गया । यहां प्रश्न यह उठता है कि भारतीय दंडसंहिता में किस अनुच्छेद के अंतर्गत ‘हाउस एरेस्ट’ की सुविधा का प्रावधान है ? अर्बन नक्सलियों को यदि यह सुविधा दी जा सकती है, तो कितने गोरक्षकों को तथा हिन्दू साधु-संतों को यह सुविधा दी गई ? हिन्दू आतंकवाद के आरोप लगाकर साध्वी प्रज्ञा सिंह एवं कर्नल पुरोहित का पशुवत उत्पीडन किया गया, साथ ही दाभोलकर, पानसरे एवं गौरी लंकेश, इन प्रकरणों में गिरफ्तार किए गए हिन्दुत्वनिष्ठ युवकों का इसी प्रकार उत्पीडन किया गया । आज भी इन अभियोगों में गिरफ्तार अनेक संदिग्ध युवकों को जमानत न दी जाने से उनके जीवन के महत्त्वपूर्ण वर्ष कारागृह में व्यर्थ हो रहे हैं ।
डॉ. दाभोलकर के अभियोग में निर्दाेष मुक्त डॉ. वीरेंद्र सिंह तावडे तो उच्चशिक्षा प्राप्त ‘ई.एन.टी. सर्जन’ (नाक, कान, गला शल्यचिकित्सक) होते हुए भी उन्हें जीवन के ८ वर्ष कारागृह में बिताने पडे । हिन्दुत्वनिष्ठों के लिए निःशुल्क अभियोग लडनेवाले प्रतिष्ठित अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को भी कारागृह में रहना पडा, तो उनके लिए ‘हाउस अरेस्ट’ की सुविधा क्यों नहीं ? इसलिए ‘ऐसे प्रकरणों में हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ता कहां अल्प पडते हैं ? तथा वे संगठित होकर इस संदर्भ में न्यायालयों से स्पष्टीकरण क्यों नहीं पूछते ?’, इस पर विचार करने की आवश्यकता है ।
२ ई. ‘विद्वेषपूर्ण भाषण’ देने के विरोध में अन्य धर्मियों पर अपराध पंजीकृत क्यों नहीं ? : देश में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं ही ‘विद्वेषपूर्ण भाषण’ (हेट स्पीच) देने के आधार पर याचिका प्रविष्ट कर स्वामी नरसिंहानंद सरस्वती, कालीचरण महाराज से लेकर काजल हिन्दुस्थानी, टी. राजा सिंह, सुरेश चव्हाणके, विहिप के शंकर गायकर जैसे अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों के विरुद्ध अपराध पंजीकृत करने के लिए बाध्य किया । उनमें से सुरेश चव्हाणके ने तो केवल हिन्दवी स्वराज की शपथ ली; इसलिए उनके विरुद्ध अपराध पंजीकृत किया गया । ये सभी अपराध पंजीकृत हों; इसके लिए तिस्ता सेटलवाड के द्वारा संचालित ‘सीजेपी’ नामक संस्था स्वयं प्रयास कर रही थी; परंतु जब यह सबकुछ हो रहा था, उस समय नुपूर शर्मा के विरोध में ‘सर तन से जुदा’ के (सिर को शरीर से अलग करने के) नारे लगानेवाले कितने मुसलमानों के विरोध में ‘हेट स्पीच’ का अपराध पंजीकृत किया गया ? तमिलनाडु में हिन्दू धर्म के विरुद्ध ‘सनातन धर्म हा डेंगू-मलेरिया है तथा वह एच.आई.वी. जैसी भयंकर बीमारी है; इसलिए उसे नष्ट करना चाहिए’, इस प्रकार से अपमानजक वक्तव्य देनेवालों के विरुद्ध ‘हेट स्पीच’ के कितने अपराध पंजीकृत किए गए ? हमारे इतने हिन्दू अधिवक्ता होते हुए भी अपराध पंजीकृत क्यों नहीं किए गए ?, इसपर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए । इसमें विशेष बात यह कि हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित सोलापुर की सभा में भाषणों में लव जिहाद का विषय रखा गया; इसलिए सर्वाेच्च न्यायालय में ‘हेट स्पीच’ की याचिका प्रविष्ट की गई । अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शाहीन अब्दुल्ला नामक छात्र ने यह याचिका प्रविष्ट की थी । इसमें उसके वकील कौन थे ? वे थे कांग्रेस के नेता तथा देश के सबसे महंगे वकीलों में से एक कपिल सिब्बल ! अब सोलापुर की सभा में मराठी भाषा में दिया गया भाषण ‘अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ के इस छात्र ने कब सुना ?, तथा उसे मराठी भाषा कैसे समझ में आई ? तथा उसके लिए कपिल सिब्बल सर्वाेच्च न्यायालय में उसके समर्थन में कैसे खडे रहे ? अर्थात इसपर विचार कीजिए कि हिन्दू संगठनों के कार्यक्रम बंद कराने के लिए यदि कपिल सिब्बल जैसा अधिवक्ता सर्वाेच्च न्यायालय में खडा रहता है, तो हिन्दू संगठनों तथा हिन्दू कार्यकर्ताओं के लिए हिन्दू अधिवक्ता समय क्यों नहीं निकाल सकते ?
अधिवक्ताओं ने यदि हिन्दू संगठनों को तथा हिन्दू कार्यकर्ताओं को इस प्रकार से कानूनी संरक्षण दिया, तो मैं इसकी आश्वस्तता देता हूं कि कोई भी हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ता कानूनी समस्याओं को, साथ ही पुलिस के अन्याय का बिना डरे सामना करेगा तथा ऐसा हुआ तो कोई भी हिन्दू राष्ट्र के कार्य को रोकने का साहस नहीं दिखाएगा । इसमें अच्छी घटना यह कि सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णय के उपरांत विधायक टी. राजा सिंह की सार्वजनिक सभा की अनुमति अंतिम क्षणों में रद्द कर उन्हें वहां आने के लिए प्रतिबंधित किया गया था; परंतु हिन्दू विधिज्ञ परिषद के पू. अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णीजी ने, साथ ही भाईंदर के अधिवक्ता खुश खंडेलवाल ने सरकार द्वारा उनकी सभाओं पर लगाए प्रतिबंधों के विरुद्ध मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर न्यायालय के माध्यम से ही प्रतिबंध हटाने के लिए सरकार को बाध्य किया । उसके कारण टी. राजा सिंह की सभा अच्छे ढंग से संपन्न हुई । इससे यह ध्यान में आता है कि हिन्दुओं पर होनेवाले अन्याय के विरोध में तथा मूलभूत अधिकारों के हनन के विरुद्ध कानून लडाई लडने हेतु हमारे अधिवक्ताओं की सहायता की बहुत आवश्यकता है ।
३. हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता
आज समाज में हिन्दुत्व का कार्य करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ता सामान्य परिवारों से आए हैं । उन्हें संविधान, भारत का कानून आदि के विषय में कोई भी जानकारी नहीं है, साथ ही ‘वामपंथीय व्यवस्था’ के सभी को जैसे ‘कानून का उपयोग कैसे करना चाहिए ?’, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है, वैसे हिन्दुत्वनिष्ठों के संदर्भ में नहीं होता । इसलिए हम अधिवक्ताओं ने यदि इन कार्यकर्ताओं को थोडासा प्रशिक्षित किया, तो उनके कार्य की प्रभावकारिता अनेक गुना बढेगी । इसलिए हिन्दू जनजागृति समिति ऐसे कार्यकर्ताओं के लिए कानूनी प्रशिक्षण आयोजित कर सकती है । उसके लिए आपने समय दिया, तो कार्यकर्ताओं को कानूनों की प्राथमिक जानकारी, सूचना का अधिकार आदि का प्रशिक्षण देकर उन्हें ‘सक्षम कार्यकर्ता’ बनाने में आपकी सहायता अपेक्षित है । आज अनेक स्थानों पर अवैध मजारों, दरगाह तथा अवैध निर्माण कार्य कर वहां की भूमि हडपने के लिए ‘भूमि जिहाद’ चल रहा है । इसे रोकने के लिए हमने संबंधित कानूनों की तथा करने योग्य शिकायतों की जानकारी दी, तो उसमें अधिवक्ताओं को समय देने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी । हिन्दुत्वनिष्ठ युवकों के संगठन ही यह संपूर्ण कार्य करने में प्रधानता लेंगे । हिन्दू जनजागृति समिति ने पिछले वर्ष इस अधिवक्ता संगठन की दृष्टि से मुंबई, साथ ही जळगांव में ‘प्रांतीय अधिवक्ता अधिवेशन’ लिया था । उसके उपरांत कुछ अधिवक्ताओं को ‘तनाव निर्मूलन हेतु साधना’ शिविर के लिए भी आमंत्रित किया गया था । आगामी समय में भी हमें इसी प्रकार के अधिवक्ता अधिवेशन तथा शिविर लेने हैं । हम सभी को यथासंभव उक्त सूत्रों के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में अधिवक्ताओं का संगठन बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए । उससे हम ‘कानून का राज’ के रूप में नहीं, अपितु ‘न्याय का राज’ के रूप में पहचाने जानेवाले हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु संगठित रूप से प्रयास करेंगे ।
– सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति
मंदिरों को सरकारी नियंत्रण स मुक्त कराने हेतु सहायता की आवश्यकता !आज हिन्दुओं के ४ लाख से भी अधिक मंदिर ‘सेक्युलर’ (धर्मनिरपेक्ष) सरकारों के नियंत्रण में हैं तथा वहां अनेक अनियमितताएं तथा भ्रष्टाचार चल रहा है । इन मंदिरों को वापस लेने हेतु जिस प्रकार बडे आंदोलन की आवश्यकता है, उसी प्रकार से कानूनी लडाई की भी आवश्यकता है । उस दृष्टि से वहां का भ्रष्टाचार बाहर निकालने हेतु हिन्दुत्वनिष्ठों को सूचना के अधिकारों का उपयोग कैसे करना है, यह सिखाने की आवश्यकता है । इस संदर्भ में तुळजापुर के श्री भवानी मंदिर में दानपेटी घोटाला करनेवाले १६ लोगों के विरुद्ध अनेक वर्ष बीतकर भी अपराध पंजीकृत नहीं किया जा रहा था । उसके संदर्भ में पू. अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णीजी के द्वारा याचिका प्रविष्ट किए जाने पर मुंबई उच्च न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक की श्रेणी के अधिकारी की नियुक्ति कर संपूर्ण जांच करने का, साथ ही तुरंत अपराध पंजीकृत करने का आदेश दिया । मुक्ति के संदर्भ में यह बडी सफलता है । – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे |