पृष्ठभूमि – गत कुछ दिनों से मुझे एक दूरभाष से मेरे चल-दूरभाष पर कॉल आ रहा है । जब मैं चल-दूरभाष पर वह संपर्क लेता हूं, तब ध्वनिमुद्रित किया संदेश आता है कि ‘आपका फेडेक्स पार्सल (फेडेक्स कुरिअर कंपनी) प्रतीक्षा कर रहा है । उसे लेने के लिए दिए गए क्रमांक पर दूरभाष करें !’
तदुपरांत ‘फेडेक्स ग्राहक सेवा कक्ष’ से दूरभाष कर रहा हूं, ऐसा कहते हुए व्यक्ति का दूरभाष आता है । वह व्यक्ति चल-दूरभाष लेनेवाले से कहता है, ‘‘आपका आधार कार्ड क्रमांक से जुडा (लिंक्ड) एक पार्सल है और उसमें अवैध वस्तु होने से जप्त कर लिया गया है ।’’ पीडित व्यक्ति को इस प्रकार के किसी भी पार्सल के विषय में पता न होते हुए भी दूरभाष करनेवाला व्यक्ति कहता है, ‘‘वह पार्सल मुंबई से भेजा गया है और उसमें अमली पदार्थ है । अभी वह पार्सल ‘सीमा शुल्क कार्यालय’ में फंसा है ।’’ ‘अपने आधार कार्ड का उपयोग भारत के बाहर अमली पदार्थाें की तस्करी करने के लिए किया जा रहा है’, इस विचार से पीडित व्यक्ति एकदम घबरा जाता है ।
‘यह प्रकरण गंभीर है और तुरंत सुलझाना है’, ऐसा आभास निर्माण कर वह कहता है कि ‘यह ‘कॉल’ (संपर्क) मुंबई पुलिस के ‘साइबर सेल’ को (संगणक और इंटरनेट का उपयोग कर किया जानेवाले अपराधों का अन्वेषण करनेवाला पुलिस पथक) हस्तांतरित करता हूं ।’ जब पीडित व्यक्ति कहता है कि ‘मैं इस विषय में स्थानीय पुलिस थाने में परिवाद (शिकायत) करूंगा’, तो वह व्यक्ति कहता है कि ‘‘यह अपराध मुंबई में हुआ है । इसलिए यह मुंबई पुलिस थाने के अधिकार के अंतर्गत आता है । इसलिए आपको शिकायत करने के लिए मुंबई आना होगा ।’’ फिर वह दूरभाष करनेवाला व्यक्ति पीडित व्यक्ति से संपर्क कर कहता है कि वह इस प्रकरण को ‘मुंबई अपराध अन्वेषण विभाग को हस्तांतरित कर रहा है ।’ तत्पश्चात स्वयं को पुलिस अधिकारी कहलवानेवाले व्यक्ति को संपर्क हस्तांतरित हो जाता है । वह तथाकथित पुलिस अधिकारी पीडित को मुंबई अपराध जांच विभाग के अधिकृत ‘स्काइप’ अथवा ‘वॉॅट्सएप’ क्रमांक पर आने के लिए कहता है । इससे वह घबराया हुआ पीडित व्यक्ति भयवश उसकी बातों में आ जाता है और उसके अनुसार सब करने लगता है ।
तदुपरांत वह तथाकथित पुलिस अधिकारी उस पीडित व्यक्ति से ‘आधार कार्ड और पैनकार्ड (आयकर विभाग का कार्ड) की जांच करनी है’, ऐसा कहते हुए उसकी जानकारी देने के लिए कहता है । उस समय वह पीडित व्यक्ति से ‘वीडियो कॉल’ करने के लिए कहता है । साथ ही यह भी बताता है कि वीडियो कॉल के समय उस कक्ष में दूसरा कोई न हो । इस संपर्क से वह अधिकारी ऐसा आभास निर्माण करता है कि वह पीडित व्यक्ति के सामने, एक ओर (साइड) से एवं पीछे की ओर से छायाचित्र लेने के साथ, उसका कथन रेकॉर्ड कर रहा है ।
तत्पश्चात वह व्यक्ति कानूनी परिणामों का भय दिखाकर कि ‘इस अवैध धंधे का अपराध प्रविष्ट (दर्ज) होगा ।’ फिर वह पीडित व्यक्ति से पैसे हस्तांतरित करने के लिए कहता है और आश्वासन देता है कि ‘आपके पैसे पुन: मिल जाएंगे’; जबकि वे पैसे कभी नहीं मिलते । इस प्रकार के घोटालों से बेंगळूरु में ५ करोड रुपयों की हानि हुई । वर्ष २०२३ में पुलिस ने इस संदर्भ में १६३ प्रकरण प्रविष्ट किए हैं ।
– एक धर्मप्रेमी