श्राद्ध तीर्थक्षेत्र में करने की तुलना में घर पर करना अधिक लाभदायक

ऐसा क्यों कहा गया है कि अपने घरमें श्राद्ध करने से, तीर्थक्षेत्र में श्राद्ध करने की तुलना में आठ गुना पुण्य मिलता हैै ?

पितृपक्ष में महालय श्राद्ध कर पितरों का आशीर्वाद प्राप्‍त करें !

पितृपक्ष में पितृलोक पृथ्‍वीलोक के सर्वाधिक निकट आने से इस काल में पूर्वजों को समर्पित अन्‍न, जल और पिंडदान उन तक शीघ्र पहुंचता है । उससे वे संतुष्‍ट होकर परिवार को आशीर्वाद देते हैं । श्राद्धविधि करने से पितृदोष के कारण साधना में आनेवाली बाधाएं दूर होकर साधना में सहायता मिलती है ।

हिन्दू धर्म में छोटे बच्चों का श्राद्धकर्म न करने के कारण

छोटे बच्चों की (१० वर्ष आयुतक के बच्चों की) मृत्यु होने के संदर्भ में धर्मशास्त्र द्वारा की गई व्यवस्था !

अन्य पंथ तो पूर्वजों के लिए कुछ नहीं करते, फिर उन्हें कष्ट नहीं होता है क्या ?

हिन्दू हो, मुसलमान हो अथवा ईसाई । जो भी शास्त्रों का पालन करेगा, उसे लाभ होगा । जो नहीं करेगा, उसकी हानि निश्‍चित है; परंतु अनेक पंथों में हिन्दू धर्म में वर्णित बातें अलग-अलग पद्धति से अपनायी जाती हैं ।

पितृपक्ष में श्राद्ध !

हिन्दू धर्मशास्त्र में बताए गए ईश्वरप्राप्ति के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है – ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, ये चार ऋण चुकाना’ । इनमें से पितृऋण चुकाने के लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है ।

श्राद्धकर्म में देवताओं को नैवेद्य दिखाना

श्राद्ध-जैसे अशुभ कर्म कनिष्ठ प्रकार के पृथ्वी और आप तत्त्वों से संबंधित होते हैं । इसलिए, इसमें नैवेद्य दिखाने की क्रिया अधिकांशतः भूमि (पृथ्वीतत्त्व) से संबंधित होती है । पितृकर्म (श्राद्ध) में कनिष्ठ देवताओं की तरंगें भूमि की ओर गमन करती हैं, इसलिए उस दिशा को मुख्य मानकर यह क्रिया की जाती है ।

अन्य पंथ तो पूर्वजों के लिए कुछ नहीं करते, फिर उन्हें कष्ट नहीं होता है क्या ?

हिन्दू हो, मुसलमान हो अथवा ईसाई । जो भी शास्त्रों का पालन करेगा, उसे लाभ होगा । आज विदेशों में अधिकतर लोग मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं । अमेरिका में ही ५ में से १ व्यक्ति मानसिक रोगी है ।