पाठकों, हितचिंतकों और धर्मप्रेमियों से विनम्र निवेदन तथा साधकों के लिए महत्त्वपूर्ण सूचना !
१. पिंडदान कर श्राद्धविधि करना : ‘आश्विन कृष्ण प्रतिपदा सेआश्विन अमावस्या (१० से २५९.२०२२) की अवधि में पितृपक्ष है । पितृपक्ष के काल में कुल के सभी पूर्वज अन्न एवं जल (पानी) की अपेक्षा लेकर अपने वंशजों के पास आते हैं । पितृपक्ष में पितृलोक पृथ्वीलोक के सर्वाधिक निकट आने से इस काल में पूर्वजों को समर्पित अन्न, जल और पिंडदान उन तक शीघ्र पहुंचता है । उससे वे संतुष्ट होकर परिवार को आशीर्वाद देते हैं । श्राद्धविधि करने से पितृदोष के कारण साधना में आनेवाली बाधाएं दूर होकर साधना में सहायता मिलती है । ‘सभी पूर्वज संतुष्ट हों और साधना के लिए उनके आशीर्वाद मिलें’, इसके लिए पितृपक्ष में महालय श्राद्ध करना चाहिए ।
२. आम / आमान्न श्राद्ध : कुछ कारणवश पूर्ण श्राद्धविधि करना संभव न हो, तो संकल्पपूर्वक ‘आमश्राद्ध’ करें ।‘आमश्राद्ध’ अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार अनाज, चावल, तिल, तेल, घी, गुड, आलू, नारियल, १ सुपारी, २ बीडे के पत्ते, १ सिक्का आदि सामग्री बरतन में रखें । यह सामग्री किसी पुरोहित को दें । पुरोहित उपलब्ध न हों, तो वेदपाठशाला अथवा देवस्थान में उसका दान दें ।
३. ‘हिरण्य श्राद्ध’ : ‘आमश्राद्ध’ करना भी संभव नहीं हुआ, तो संकल्पूर्वक ‘हिरण्य श्राद्ध’ करें अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार उपर्युक्त स्थानों से किसी एक स्थान पर धन अर्पित करें ।
४. श्राद्धविधि करते समय की जानेवाली प्रार्थना ! : भगवान दत्तात्रेय के चरणों में यह प्रार्थना करें कि ‘हे भगवान दत्तात्रेय, आपकी कृपा से प्राप्त परिस्थिति में आमश्राद्ध / हिरण्य श्राद्ध (उक्त में से जो किया जा रहा है, उसका उल्लेख करें) किया है । इसके द्वारा पूर्वजों को अन्न और जल मिले । इस दान से सभी पूर्वज संतुष्ट हों । हम पर उनकी कृपादृष्टि बनी रहे । हमारी आध्यात्मिक उन्नति हेतु उनके आशीर्वाद प्राप्त हों । आपकी कृपा से उन्हें सद़्गति प्राप्त हो ।’
– सनातन पुरोहित पाठशाला, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (८.९.२०२२)