#Datta Datta #दत्त दत्त #श्रीदत्त श्रीदत्त #ShriDatta ShriDatta #mahalaya mahalaya #महालय महालय #pitrupaksha pitrupaksha #पितृपक्ष पितृपक्ष #shraddha shraddha #श्राद्ध श्राद्ध #ShraddhaRituals Shraddha rituals #श्राद्धविधी श्राद्धविधी #Shraddhavidhi Shraddha vidhi
१. पितृदोष
पितृदोष देवताओं के कोप जितना ही दृढ माना जाता है । देवता का कोप हो, तो अकाल आता है; परंतु पितरों का कोप हो जाए, तो घर में अन्न का अकाल, रोग, अकारण चिडचिडाहट, भोजन करते समय झगडा होना एवं अन्न सेवन करने न देना, जैसे कष्ट होते हैं । घर का कोई व्यक्ति मनोरोगी हो जाता है । संतान नहीं होती अथवा तीव्र पितृदोष हो, तो विकलांग बच्चे पैदा होते हैं । बच्चों का बर्ताव अच्छा नहीं होता । बच्चे माता-पिता की बात नहीं सुनते इत्यादि कष्ट भी होते हैं । ऐसे कष्ट न हो, इस हेतु प्रत्येक व्यक्ति को बिना भूले वर्ष में एक बार पितरों के नाम श्राद्ध करना चाहिए । श्राद्ध करना संभव न हो, तो नदी के बहते जल में दही-चाँवल छोडें अथवा घर में ही भोजन से पूर्व अन्न का एक निवाला निकालकर रखें और विनम्रता से हाथ जोडकर प्रार्थना करें ।
हमारी हिन्दू संस्कति में मातृ-पितृ पूजन का बडा महत्त्व है । पिछली दो पीढियों का भी स्मरण रखें । पितृवर्ग जिस लोक में रहते हैं, उसे पितरों का विश्व अथवा पितृलोक कहते हैं । पितर सदा मुक्ति की प्रतीक्षा करते हुए पितृलोक में विचरण करते हैं । वे अपनी आगे की पीढी का कर्तृत्व एवं जय-पराजय देखते रहते हैं । उनका स्मरण रखकर श्राद्धानुसार जो अन्नदान करते हैं, उनका कल्याण होता है । माता-दादी-परदादी इनके लिए किसी वृद्ध स्त्री को अन्न तथा साडी-चोलीवस्त्र दान में दें और गोग्रास दें (गाय को खिलाएं) । किसी पूर्वज ने किसी का मन दुखाया रहता है । उनका घर-बार, खेती-बाडी अथवा धन हडप करना, स्त्री पर अत्याचार करना, किसी को धोखा देकर कंगाल करना, किसी की नानी या दादी की अन्न-जल तथा औषध के बिना तडप कर मृत्यु होना, इस प्रकार के कष्ट दिए होते हैं । ऐसे सभी शाप आगे की पीढी को कष्ट तथा भोग के रूप में प्राप्त होते हैं । कुल में किसी की पानी में डूब कर मृत्यु हुई हो, किसी ने फांसी लगाई हो, किसी की हत्या अथवा दुर्घटना घटी हो, ऐसे व्यक्तियों के घर में एक पीढी छोडकर आगे की पीढी को भयंकर कष्ट भुगतने पडते हैं । ये सभी पितृदोष हैं । वे कर्म बनकर आडे आते रहते हैं तथा प्रगति में बाधक बनते हैं । सत्यनिष्ठ व्यक्तियों का अंतरंग पितरों को दिखता है । इस कारण उनकी बुराई न करें । किसी व्यक्ति पर पितर प्रसन्न हो, तो उसे सुख-समृद्धि मिलती है ।
२. जन्मकुंडली में पितृदोष के लक्षण
नीचे बताए लक्षण हो, तो समझें कि, व्यक्ति को पितृदोष है ।
२ अ. शारीरिक
१. असाध्य रोग व्याधि होना, घर में किसी ना किसी का सदैव रोगग्रस्त रहना
२. विषैले सर्प का दंश होना
२ आ. मानसिक
१. मन एवं शरीर अस्वस्थ रहना
२. मन अशांत रहना, भय लगना, रात में चिल्लाकर जागना, बडबडाना, विभ्रम होना
३. नदी अथवा समुद्र को देखकर कष्ट होना
४. बुरे सपने आना, निद्रानाश होना, रात के समय डरना
५. पूजापाठ, दानधर्म, कुलधर्म, कुलाचार इनमें बाधा आना, उनमें मन न लगना, उन पर विश्वास न होना
२ इ. पारिवारिक
१. घर में जल की आपूर्ति न्यून होना
२. दंपति सुखी एवं समाधानी न लगना
३. घर में शुभकार्य न होना अथवा विवाह कार्य मेें बाधाएं आना
४. उत्तराधिकार न मिलना
५. लोगों के साथ झगडे अथवा विवाद होना
६. कोर्ट-कचहरी का कष्ट चालू होना
७. परिवार के किसी व्यक्ति को अचानक बाधा, भूत-प्रेत के कष्ट का अनुभव होना
२ ई. आर्थिक
१. नौकरी अथवा व्यवसाय में स्थिरता न होना, उसमें बार-बार परिवर्तन होना
२. कर्जा चढना, धन पूरा न पडना, घर में अनाज न्यून होना
३. परिवार के पोषण की चिंता होना
३. पितृ उपासना कैसी करें ?
३ अ. श्राद्ध करना
श्रद्धया क्रियते तत् श्राद्धम् । अर्थात श्रद्धा सहित पितरों के उद्देश्य से विधिवत् हविर्युक्त पिंडप्रदान आदि कर्म करने को ही श्राद्ध कहते हैं । श्राद्ध में प्रधानता से समंत्र पिंडदान तथा सज्जन व्यक्ति को भोजन कराना ये कर्म होते हैं ।
३ आ. नारायण नागबलि, त्रिपिंडी एवं तीर्थश्राद्ध
लगातार ५ वर्ष घर में पूर्वजों के लिए श्राद्ध न किया हो, तो नारायण-नागबलि, त्रिपिंडी (तीन पीढियों का श्राद्ध विधि) तथा तीर्थश्राद्ध करने पर पितृदोषों की शांति होकर पितृगणों के शुभ आशीर्वाद एवं पुण्य प्राप्त होते हैं ।
३ इ. नियमित श्राद्धादि कर्म करने के लाभ
जो कोई नियमित रूप से श्राद्धादि कर्म करते हैं, उन्हें पितरों की संतुष्टता के कारण आयु, कीर्ति, बल, तेज, धन, संतति, संसारसुख, आरोग्य, सम्मान इत्यादि की प्राप्ति होती है । आधिभौतिक स्थूल राज्य के संचालक तथा कुल के नित्यरक्षक पितर ही हैं । इस कारण पितरों की तृप्ति से ऐहिक सुखों की प्राप्ति होती है । पितरों के आशीर्वाद के बिना आध्यात्मिक प्रगति एवं इष्ट देवताआें की कृपाप्राप्ति में भी बाधाएं निर्माण होती हैं; इसलिए पितरों की तृप्ति को प्रधानता दी है । प्रथम पितरों को, पश्चात कुलदेवी-कुलदेव, तत्पश्चात इष्टदेवता की कृपा, ऐसा क्रम है । संक्षेप में कहें, तो पारलौकिक सुख देने में मूलतः पितर ही कारणभूत होते हैं ।
३ ई. ऋण
देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण, मनुष्यऋण एवं भूतऋण.
३ ई १. पंच महायज्ञ
प्रत्येक व्यक्ति (जीवात्मा) ये ५ ऋण लेकर ही जन्म लेता है । इस जन्म में इन ५ ऋणों से मुक्त होना होता है । इन ५ ऋणों से मुक्त होने के लिए पंच महायज्ञ करने होते हैं । पंच महायज्ञ यहां बताए अनुसार करने होते हैं । परिवार की स्त्री, पुरुष अथवा बेटा कोई भी पूरे परिवार के लिए यह पंच महायज्ञ कर सकता है ।
३ ई १ अ. देवयज्ञ
प्रतिदिन प्रातः एक चम्मच गाय के शुद्ध घी का नीरांजन अथवा दीपक (नंदादीप) देवता के समक्ष जलाएं, मृत व्यक्ति के छायाचित्र के समक्ष लगाएं अथवा गाय के गोबर का कंडा, घी, कर्पूर, धूप, ऊद थोडे से चावल इत्यादि से छोटा यज्ञ करें ।
३ ई १ आ. ऋषियज्ञ
नियमितता से मंत्रजप, नामस्मरण, भजन, हरिपाठ का पठण, श्लोकपाठ, ग्रंथों का पारायण करें । प्रतिदिन गाय को घास एवं अन्न का निवाला दें ।
३ ई १ इ. पितृयज्ञ
एक वर्ष प्रतिदिन भोजन से पूर्व दोपहर में १२ बजने से पहले कौवा, गाय अथवा कुत्ते को एक निवाला अन्नदान करें । भूखे को अन्नदान करें ।
३ ई १ ई. मनुष्ययज्ञ
घर पधारे अतिथि को जल-पान कराएं अथवा अन्न दें ।
३ ई १ उ. भूतयज्ञ
पशु-पक्षी, चींटियां, चिडियां, कबुतर इत्यादि को अन्न-अनाज दें ।
यह सब यज्ञ करने पर सर्व दोष घटते हैं । प्रतिदिन पितृ उपासना होती है । जन्मलग्न अथवा राशिकुंडली में पंचम (पांचवें) या नवम (नौवें) स्थान में केतु, अष्टम (आठवें) स्थान में अथवा द्वादश (बारहवें) स्थान में गुरु या पीडित रवि अथवा चन्द्रमा ये प्रकाशित ग्रह, कुंडली में रवि-केतू से, गुरु-राहू से पीडित इत्यादि लक्षणों से जन्मकुंडली में पितृदोष है, यह सुनिश्चित होता है । प्रखर पितृदोष के कारण मुख अनाकर्षक बनता है । आंखों के नीचे काला दिखता है । होंठ निस्तेज अथवा काले से दिखाई देने लगते हैं । अमावस्या के १-२ दिन आगे-पीछे अपने घर में एक प्रकार की बेचैनी, उदासी अथवा अस्वस्थता प्रतीत होती है । दोपहर १२ से १ बजे की कालावधि में घर के आसपास कौए अति कांवकांव कर द्वार के सामने आते हैं । ऐसे में पितृदोष निवारण हेतु उपासना करें ।
४. पितृदोष निवारण हेतु उपासना करने के लाभ
पितृदोष के कारण होनेवाले कष्ट दूर होते हैं । किसी सीधीसादी, सुंदर, सुशिक्षित लडकी के माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी होते हुए भी और भरसक प्रयासों के बाद भी विवाह होने में रुकावटें आतीं हैं, कुलदेवी की सेवा करने पर भी मार्ग नहीं मिलता, ऐसे में मुख्यतः पितृदोष कारणभूत होता है । इस पितृदोष का नारायण, नागबलि से निवारण करते ही बेटी को उत्तम वर प्राप्त होता है और अल्प व्यय में विवाह भी होता है । प्रतिदिन रामरक्षा, मारुतिस्तोत्र, श्लोक, प्रार्थना, हरिपाठ, ग्रंथपाठ करें । इससे मानसिक समाधान और उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है ।’
५. गया में श्राद्ध करने के उपरांत क्या पितृदोष से मुक्ति मिलती है ?
गया तीर्थ के बारे में गरुड पुराण में कहा गया है –
‘गयाश्राद्धात् प्रमुच्यन्ते पितरो भवसागरात्। गदाधरानुग्रहेण ते यान्ति परमां गतिम्॥
अर्थात केवल गया श्राद्ध करने से ही पितर अथवा परिवार में जिनकी मृत्यु हो चुकी है वह संसार-सागर से मुक्त होकर गदाधर अर्थात भगवान विष्णु की कृपा से उत्तम लोक (विष्णुलोक) में जाते हैं ।
गया तीर्थ के महत्त्व को भगवान श्रीराम ने भी स्वीकार किया है और स्वयं वे भी अपने पितर का तर्पण एवं पिण्डदान करने के लिए माता सीता और भाई सहित गया आए थे ।
यहां पर केवल हमें ध्यान में रखना है कि पितृदोष से मुक्त होने के लिए केवल तीर्थ में शास्त्रोक्त विधि होना ही आवश्यक नहीं, अपितु उस विधि को करनेवाला आचार्य भी सात्त्विक हो, विधि के लिए किसी महापुरुष का संकल्प भी आवश्यक होता है । इसके साथ ही हमारे और पितरों में लेन-देन का हिसाब भी समाप्त होना चाहिए । इसकारण किसी भी तीर्थक्षेत्र में विधि करते समय पितृदोष से मुक्ति का प्रारंभ होता है । पितृदोष से पूर्ण मुक्ति के लिए हमें नित्यकर्मों में भी नियमित श्राद्ध और भगवान दत्तात्रेय की साधना (नामजप) करनी आवश्यक है ।
– ज्योतिषी ब.वि. तथा चिंतामणी देशपांडे (गुरुजी) (संदर्भ : श्रीधर संदेश)